पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्विद्यालय, राजस्थान
http//daylife.page
मनुष्य के आचरण, जीवन पद्धति, स्वभाव, गुण, कर्म, विचार आदि के अनुसार ही सामाजिक संरचना का निर्माण होता है। हिन्दू धर्म दर्शन में आरंभ से ही आचार की प्रधानता रही है। मूल्य शब्द का सामान्य शाब्दिक अर्थ कीमत अथवा मजदूरी होता है। परन्तु मूल्य शब्द का भिन्न-भिन्न विषयों में अलग-अलग अर्थ प्रयुक्त किया गया है। धर्मशास्त्र, दर्शनशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, समाज शास्त्र एवं मानव शास्त्र में मूल्य शब्द की भिन्न-भिन्न व्याख्या की गई है। समाजशास्त्र में मूल्य को सामाजिक संरचना के अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है जबकि धर्मशास्त्र में मूल्य शब्द नैतिक कार्यप्रणाली के लिए प्रयुक्त होता है। विषय, परिस्थिति और परिक्षेत्र के अनुसार मूल्य शब्द अनेक दृष्टिकोणों से प्रयोग में लाया जाता है।
आज मूल्य शब्द का संदर्भ किसी निश्चित एवं विशिष्ट अर्थ बोध से सम्पृक्त नहीं है। मानवीय व्यवहार में तो मूल्य शब्द सहज जीवन, शुद्ध आचरण, आत्मसंयम, इंद्रियनिग्रह, आत्मशुद्धि के अर्थ में प्रयोग में लिया जाता है। मानवीय गुणों में शील, संतोष, लोकमंगल और लोक कल्याण की भावना सन्निहित रहती है, जो कि मानवीय आवश्यकता की इच्छा की संतुष्टि के लिए प्रयोग में आता है। अतः मूल्य शब्द का संबंध केवल अध्यात्म से न होकर सत्य, अहिंसा, अच्छाई एवं सौंदर्य से भी है। सारांशतः हम कह सकते है कि मूल्य में लोकमंगल एवं जनकल्याण की भावना अन्तर्निहित रहती है जो मनुष्य को उन्नति की ओर प्रेरित करती है। लोककल्याण की भावना को केन्द्र मंे रखकर जो कार्य किया जाता है वे कार्य ही वास्तविक मूल्य है।
ऐसी भावना रखने वाला मनुष्य अपना कल्याण तो करता ही है, साथ ही इस जगत् का भी कल्याण करता है। मानव जीवन को युक्तिपूर्ण जीना और मृत्यु के उपरांत मुक्ति प्राप्त करना ही प्रमुख लक्ष्य है। ये ही मूल्य मानव को सतपथ पर अग्रसर करते हैं। मूल्यों पर आधारित जीवन पद्धति से समाज सुसंस्कृत, सभ्य और परिष्कृत होता है और साथ ही राष्ट्र भी समृद्ध होता है। चूंकि मानवीय मूल्यों का उन्नति से सीधा संबंध होता है अतः ये मानव मूल्य व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के लिए बहुउपयोगी माने जाते हैं। मानव इन मूल्यों को अपनाकर अपनी अनेक समस्याओं का सहज समाधान पा सकता है। किन्तु आजकल उपरोक्त सभी नैतिक मूल्यों का ह्रास दिखलायी दे रहा है। भ्रष्टाचार शिष्टाचार बन गया है। दूसरों को धोखा देना आजकल बहुत ही आम बात हो गयी है। प्रतिदिन पत्र और पत्रिकाओं में बलात्कार, लूट, चोरी, डकैती, अपहरण जैसी घटनाएं सामान्य बात हो गयी है।
ऐसा लगता है कि मानव, मानव न रह करके पशु से भी बुरी हालत में पहुंच गया है। विद्यालयों, स्कूलों, कालेजों में छात्राओं का पढ़ना मुश्किल हो गया है। जब बालिकाएं विद्यालय जाती है तो रास्ते में उनके साथ छेड़-छाड़ की घटनाएं बढ़ती जा रही है। इससे उनकी पढ़ाई में बाधा उत्पन्न हो रही है। समाज कंटक बलात्कारी और भ्रष्ट आचरण वाले लोगों पर यदि कानूनी सिकंजा नहीं कसा गया तो समाज में अव्यवस्था फैल सकती है। समाज में गलत कार्य करने वाले लोगों के विरूद्ध बोलने का साहस भी सबमें नहीं होता। क्योंकि ऐसे अनैतिक आचरण करने वाले लोग हिंसा का सहारा लेते है और जो भी उनके विरूद्ध आवाज उठाता है उसेे डरा धमका करके शांत कर देते है।
अनैतिक आचरण करने वालोें में केवल सामान्य लोग ही नहीं है, बल्कि बड़े-बड़े राजनेता, अधिकारी और कर्मचारी भी सम्मिलित है। समाज का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी जिनके ऊपर है यदि वहीं भ्रष्ट आचरण करने लगेंगे तो सामान्य जनता से क्या आशा की जा सकती है। समाज का नेतृत्व करने वाले लोग यदि भ्रष्ट आचरण करते है तो उन्हें शख्त सजा मिलनी चाहिए। जिससे इसका गलत संदेश समाज में न जाये। लोग धनबल और बाहुबल का उपयोग कर न्याय को भी प्रभावित करने का प्रयास करते है। भारत की न्यायिक प्रक्रिया इतनी लम्बी ओर खर्चीली है कि सामान्य आदमी इसका भार ही नहीं उठा सकता और वह बेचारा न्याय से वंचित रह जाता है।
अतः सरकार की तरफ से ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि गरीब से गरीब व्यक्ति को भी न्याय मिल सके और न्याय पर सबका अडिग विश्वास हो। आज प्रायः यह देखा जाता है कि जो भ्रष्ट आचरण वाले व्यक्ति है यदि उनके पास धन है तो लोग उन्हीं का सम्मान करते है। राजनीति में प्रायः बाहुबली लोग ही जाते है। सामान्य और शिष्ट व्यक्तियों में यह विश्वास हो गया है कि वे चुनाव लड़कर जीत ही नहीं सकते। क्योंकि चुनाव में धनबल और बाहुबल काम करता है। प्रत्येक दल के उम्मीदवार पैसे और शराब का वितरण कर रातों रात जनता को अपने पक्ष में कर लेते है। ऐसी स्थिति में एक साधारण आदमी चुनाव लड़कर के कैसे जीत सकता है। यदि समाज में मानवीय मूल्यों की पुनस्र्थापना नहीं हुई तो सामाजिक परम्पराएं ही नष्ट हो जायेगी।
पुनरूत्थान कार्यक्रम में प्रोफेसर (डाॅ.) सोहनराज तातेड़ ने गिरते हुए सामाजिक मूल्यों पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है। उनका मानना है कि यह कार्यक्रम पतन से उत्थान की ओर जाने का एक बहुत ही सुंदर माध्यम है। मानव को यह प्रयास करना चाहिए कि वह अच्छे विचारों को सुने और सुनकरके अपने में अच्छाई को उतारने का प्रयास करें। तभी सदाचार और अच्छाई समाज में बढे़गी। बुराई और कदाचार कम होगा। व्यक्ति में जब तक साहस की कमी रहती है तब तक वह समाज को कुछ दे नहीं सकता। अतः गिरते हुये मानवीय मूल्यों के उत्थान का प्रयास करना अत्यन्त आवश्यक है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)