संत रविदास सामाजिक न्याय आंदोलन के एक आदर्श व्यक्तित्व थे

लेखक : कमलेश मीणा

सहायक क्षेत्रीय निदेशक, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय इग्नू क्षेत्रीय केंद्र जयपुर, राजस्थान। Mobile:9929245565 Email:kamleshmeena@ignou.ac.in & rajarwalkamlesh1978@gmail.com

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संत रविदास जात-पात के विरोधी थे। रविदास का यह दोहा कहता है कि वह समाज में जातिवाद के सख्त खिलाफ थे- "जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात, रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।" महान आध्यात्मिक गुरु संत रविदास जी ने अपनी कविता, जप और मान्यताओं के माध्यम से तत्कालीन समाज की पीड़ा,जाति, रंग, धर्म, पंथ और भाषा आधारित भेदभाव को सामने रखा था। हम आपको महान आध्यात्मिक गुरु संत रविदास जी की जन्मदिन की शुभकामनाएं देते हैं। रविदास समानता, न्याय और सम्मान के प्रतीक थे। 


उन्होंने समाज में अपने साहित्यिक योगदान के माध्यम से समानता के लिए वकालत की। उन्होंने मानवता के लिए समूह और जाति मुक्त समाज पर जोर दिया और हमेशा तर्कसंगत चर्चा,वैज्ञानिक साहित्य,तार्किक विचार-विमर्श के लिए वकालत की। उन्होंने मानव समाजों में किसी भी व्यक्ति के खिलाफ जाति, रंग, धर्म, पंथ और भाषा आधारित भेदभाव का विरोध किया। अपने साहित्यिक अनुभव, ज्ञान, कविता, तर्कसंगत विश्वास और समानता, न्याय, सम्मान और स्वतंत्रता की समझ के माध्यम से उन्होंने हमेशा उत्पीड़ित, दबे, हाशिए, गरीब लोगों की आवाज़ उठाई। उन्होंने घृणा का प्रतिकार घृणा से नहीं, बल्कि प्रेम से किया। हिंसा का हिंसा से नहीं, बल्कि अहिंसा और सद्भावना से किया। 

इसलिए वे प्रत्येक व्यक्ति के प्रेरणास्त्रोत बने। उन्होंने निर्भीकता से अपनी बात कही। समाज को नई राह दिखाई और कुरीतियों को दूर करने के लिए सच और साहस को आधार बनाया। संत रविदास को वेदों पर अटूट विश्वास था। वे सभी को वेद पढ़ने का उपदेश देते थे। वह मानव अधिकारों के पैरोकारों थे। संरक्षक और शांति, प्रगति और समृद्धि के एजेंट के रूप में समान भागीदारी, पहुंच और अवसरों के माध्यम से सभी को सामाजिक न्याय आंदोलन का रास्ता दिखाया। हम राष्ट्र के आध्यात्मिक गुरु स्वर्गीय संत रविदास जी की महान आत्मा को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उन्होंने हमें साहित्यिक योगदान और बातचीत के ज्ञान कौशल के माध्यम से समान रूप से हमारे लोगों को समान अधिकार और भागीदारी देने के लिए सामाजिक न्याय आंदोलन का रास्ता दिखाया।


महामना रविदास जी उस समय के समाज के एक महान इंसान थे जिन्होंने समानता, न्याय, सम्मान और लोगों के शासन में समान भागीदारी के लिए सामाजिक न्याय के आंदोलन का नेतृत्व किया। आडंबरों का विरोध करने के कारण उनकी निंदा-आलोचना भी की गई,लेकिन उन्होंने इसकी कभी परवाह नहीं की। उन्होंने धार्मिक एकता स्थापित करने के प्रयास किए। संत रविदास ने जिसे समाज, राष्ट्र और संस्कृति के उन्नयन में नुकसानदायक पाया, उसका खुलकर विरोध किया। इस तरह एक साधक, साधु, योगी, समाज सुधारक, कवि और सिद्ध के रूप में संत रविदास आज भी मानव समाज के लिए प्रेरक, शिक्षक, उपदेशक, मानव मूल्यों के रक्षक के रूप में दिखाई पड़ते हैं।

रविदास का यह दोहा कहता है कि वह समाज में : "ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिले सबन को अन्न, छोट-बड़ो सब सम बसे, रविदास रहे प्रसन्न। 'जाति -जाति मेंं जाति है, जो केतन के पात। रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति ना जात।" (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)