उम्मीदों का द्वार ‘प्रेम’

 वैलेंटाइन डे पर विशेष:


लेखिका : रश्मि अग्रवाल

नजीबाबाद, 9837028700

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प्रेम का न कोई रूप न स्वरूप, ये निश्छल भावनाओं की वो अभिव्यक्ति, जिसमें देने की शक्ति निहित होती पर तुलनात्मक दृष्टिकोण नहीं। हाँ, कभी-कभी बाहरी संबंधों में स्तर, अहंकार, स्वार्थ गलतफ़हमियाँ, सामाजिक भय या वार्तालाप की न्यूनता, उन्हें चटकने या टूटने के कग़ार पर ले आती है। इसलिए ‘प्रेम दिवस’ प्रतिदिन क्यों न मनाये? क्यों प्रतिक्षा की जाये सिर्फ एक ही दिन की, वो भी भौतिक आडम्बरों के साथ। समझें तो हर रिश्ता, हर पल, ये कहता है... ईश्वर का उपहार मानव का अधिकार। उम्मीदों का द्वार, प्रेम ही तो है!!