(लेखक डा. रक्षपाल सिंह जाने-माने शिक्षाविद व धर्म समाज कालेज, अलीगढ़ के पूर्व विभागाध्यक्ष हैं)
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अलीगढ। औटा के पूर्व अध्यक्ष डा. रक्षपाल सिंह ने कहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2 निर्मित एवं 72 निर्माणाधीन राजकीय महाविद्यालयों का संचालन प्रदेश के विभिन्न विश्व विद्यालयों की कार्य परिषदों के हवाले करने का निर्णय एक ओर जहाँ योगी सरकार की अक्षमता का द्योतक है, वहीं दूसरी ओर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में निर्मित एवं निर्माणाधीन इन 74 महाविद्यालयों के आसपास की क्षेत्रीय जनता के साथ विश्वासघात है।
डा. सिंह ने कहा है कि किसी एक व्यवस्था का दूसरी बेहतर व्त्रवस्था में परिवर्तन बेहतरी के लिये हो तो परिवर्तन किया जाना चाहिये,लेकिन यदि दूसरी व्यवस्था पहले से ही खामियों से ग्रस्त हो, जर्जर हो तो ऐसे परिवर्तन से आसमान से गिरे खजूर पर लटके वाली कहावत ही चरितार्थ होती है। यह तो सच्चाई है कि 21वीं सदी में यूपी में रहीं राज्य सरकारों के कार्यकाल में राजकीय महाविद्यालयों के पठन पाठन में गिरावट का दौर रहा है। गिरावट को रोकने में फ़ेल योगीजी की सरकार इन महाविद्यालयों को अब विभिन्न विश्व विद्यालयों के कुलपतियों एवं कार्य परिषदों को सौंपने जा रही है जिनके पास इन महाविद्यालयों में शिक्षकों व कर्मचारियो की भर्तियां करने का भी अधिकार रहेगा तथा स्ववित्त स्कीम के तहत इन कालेजों का संचालन होगा। लेकिन प्रदेश के अधिकांश विश्व विद्यालयों की कार्य परिषदों की संचालन व्यवस्था पर कुलपतियों के हावी रहने के कारण परिषदों के निर्णयों पर उन्हीं का एकाधिकार रहता है और उनकी मनमानी के कारण अधिकांश विश्व विद्यालयों के पीजी विभागों में भी पढ़ाई का गुणवत्तापरक वातावरण सृजित नहीं हो सका है। ऐसी स्थिति में एक ओर जहाँ प्रदेश के 74 राजकीय कालेजों का संचालन विश्व विद्यालयों के हवाले करने से उनके बेहतर संचालन की उम्मीद बेमानी होगी ,वहीँ दूसरी ओर इन कालेजों में संविदा पर शिक्षकों व कर्मचारियों की नियुक्तियों के अधिकार प्राचार्य तथा कुलपतियों पर होने से भ्रष्टाचार का बोलबाला होगा।
गौरतलब है कि विगत समय में विश्व विद्यालयों में होने वाली नियुक्तियां सदैव गम्भीर आरोपों के घेरे में रहीं हैं तथा कई कुलपतियों पर कठोर कार्रवाई भी हुई हैं। डा. सिंह ने कहा है कि 74 राजकीय महाविद्यालयों को प्रदेश के विभिन्न विश्व विद्यालयों से संचालित करने का यह निर्णय सरकार की अक्षमता का द्योतक तो है ही, साथ ही विद्यार्थियों द्वारा प्रति वर्ष लगभग 3गुना शिक्षण शुल्क अदा करने पर भी बेहतर उच्च शिक्षा के न मिलने का पछ्तावा भी उनको रहेगा। यूपी सरकार का उक्त निर्णय न तो राज्य सरकार की छवि व राजकीय महाविद्यालयों के हित में ही है और न वहां की क्षेत्रीय जनता के बच्चों की उच्च शिक्षा के हित में। बेहतर यही होगा कि सरकार उक्त निर्णय को वापिस ले। (लेखक के अपने विचार एवं अपना नज़रिया है)