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उत्तर कर्नाटक के तटीय जिले मंगलुरु में एक छोटा सा शहर है भटकल। इसे “मिनी दुबई” भी कहा जाता है। राज्य में जब भी कोई कट्टरपंथी इस्लामिक घटना होती है तो पुलिस और ख़ुफ़िया एजेंसियों की नज़र सबसे पहले इस इलाके या यों कहिये इस शहर की ओर जाती है, इसका कारण यह है कि देश के सबसे पहले इस्लामिक आंतकवादी संगठन इंडियन मुजाहीद्दीन के सह संस्थापक अहमद सिद्दिबापा उर्फ़ यासीन भटकल इसी जगह का ही रहने वाला है।
उसने ही यहाँ के मुस्लिम युवकों को कट्टर इस्लाम अपनाने के लिए प्रेरित किया था। फिर उन्हें अपने संगठन का सदस्य बनाकर यहाँ कजंगलों में उनके ट्रेनिंग कैंप लगाये थे जहाँ उन्हें बम्ब बनाने, विस्फोट करने और हथियार चलाने के लिए तैयार किया गया था। बाद में इन्हीं युवकों राज्य में तथा देश के कुछ अन्य भागों में आतंकवादी हमलों को अंजाम दिया था। उनमे से कई, यहाँ तक की खुद यासीन भटकल को गरिफ्तार भी किया गया था।
बड़ी संख्या में यहाँ मुस्लिम युवक खाड़ी के देशो में काम करते है तथा अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा वे यहाँ रह रहे अपने परिवारों के सदस्यों को भेजते है। यहाँ के अधिकांश मुस्लिम नवाथ समुदाय के हैं। देश के विभाजन के समय काफी संख्या में इस समुदाय के मुस्लिम पाकिस्तान चले गए थे। यहाँ के इन मुसलामनों के अभी भी पाकिस्तान में रह रहे उन मुसलमानों से अभी भी रिश्ते बने हुए है। दोनों ओर के परिवारों में शादी विवाह भी होते रहते है। यहाँ ईद उसी दिन मनाई जाती है जिस दिन सऊदी अरब में चाँद दिख जाता है। जबकि सामान्य तौर पर देश के अन्य भागों तीज के दिन अगर चाँद नहीं दिखता तो सऊदी अरब में ईद के अगले दिन ईद मनाई जाती है। यह माना जाता है कि यहाँ के मुस्लिम सदियों पहले अरब देशों से यहाँ घोड़ो का व्यापार करने के लिए इस तटीय इलाके में पहुंचे थे। उनमें कई यही बस गए और समय के साथ उनकी आबादी भी बढ़ती गयी और वे पूरी तरह यहीं रस बस गए।
इस साल के शुरू में जब-जब दिल्ली सहित देश के कई भागो में मुसलमानों ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ बड़ा आन्दोलन शुरू किया तो राज्य की राजधानी बैंगलुरु, जहाँ काफी बड़ी मुस्लिम आबादी है, से भी बड़ा आन्दोलन मंगलुरु में हुआ था। एक समय ऐसा था जब लगभग बीस हज़ार मुसलमान इस कानून के विरोध में यहाँ जुटे थे। कड़ी पुलिस व्यवस्था के बावजूद आन्दोलन हिंसक हो गया। आखिर में भीड़ पर काबू पाने क लिए पुलिस को गोली चलानी पडी जिसमें दो मुस्लिम युवक मारे गए। काफी लोग घायल भी हुए। पुलिस ने बड़ी संख्या में उन लोगों को गिरफ्तार किया जिन पर हिसा भड़काने का आरोप था।
इस घटना के बाद पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों ने यहाँ कड़ी नज़र रखना शुरू कर दिया। पर इन सबके केबावजूद लगभग दस दिन पूर्व एक बार नहीं बल्कि दो बार शहर की दीवारों पर इस्लामिक कट्टरपथी नारे लिखे पाए गए। ये नारे अंग्रेज़ी लिपि में थे पर इनकी भाषा उर्दू थी। यह नारा सबसे बड़े इस्लामिक आतंकवादी संगठन लश्करे -ऐ- तैयबा के समर्थन में लिखा गया था। पूरा नारा था “हमें संघियों और मनु वादियों से निपटने के लिए लश्करे - ऐ- तैय्यबा को बुलाने के लिए मजबूर ना करो“। नीचे लिखा गया था “लश्कर जिंदाबाद“। यह नारा शहर के एक बहुमंजिला ईमारत की बाहरी दीवार पर लिखा गया था।
संभवत यह नारा रात के समय लिखा गया हो। सूचना मिलने पर पुलिस ने इस नारे को पोत दिया। फिर इस नारे को लिखने वालों की धर पकड़ के लिए तीन टीमों का गठन कर दिया। आस पास लगे सीसीटीवी केमरों को खगाला गया। लेकिन पुलिस संदिग्धों को पकड़ने में सफल नहीं हुयी। उनको पकड़ने की कोशिशें अभी चल रही कि जल्दी ही एक और दीवार पर ऐसा ही नारा लिखा पाया गया। मज़े की बात यह कि यह नारा उस ईमारत की दीवार पर लिखा पाया गया जहाँ कुछ समय पहले तक पुलिस की चौकी थी। यह नारा था “गुस्ताखे -ऐ- रसूल एक ही सजा, सर तन से जुदा”।
यह घटना तब हुयी जब पुलिस ने शहर के अधिकांश इलाकों में रात की गश्त को पहले से कहीं अधिक बढ़ा दिया। इस नारे को भी पुलिस ने आनन फानन में पोत लेकिन इसके साथ ही कई और टीमों का गठन कर दिया ताकि इन तत्वों को जल्दी से जल्दी पकड़ा जा सके। ऐसा समझा जाता है कि पुलिस इन ऐसे मुस्लिम युवकों को चिन्हित कर रही है जो कभी प्रतिबन्धित संगठन इस्लामिक स्टूडेंट मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (सिमी) से जुड़े हुए थे या फिर बाद में फिर पोपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया सक्रिय हो गए। इस संगठन का गठन सिमी पर प्रतिबन्ध लगाये जाने के बाद ही हुआ था। इसका मुख्यालय केरल में है तथा इसकी लगभग सभी राज्यों में इकाईयां हैं। (लेखक के अपने विचार हैं)