लेखक : लोकपाल सेठी वरिष्ठ पत्रकार
(बेंगलुरु से)
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केरल शायद देश का पहला ऐसा राज्य है जहाँ समय से बरसों पूर्व जेल से रिहा किये गए राजनीतिक अपराधियों को अपनी बची हुई सजा को काटने के लिए फिर से जेल जाना होगा। केरल हाईकोर्ट के निर्णय के मद्दे नज़र राज्य की वाममोर्चा सरकार को अपनी इच्छा के विरुद्ध होते हुए तथा अदालत की अवमानना से बचने के लिया अधिकारियों की एक उच्चस्तरीय समिति का गठन करना पड़ा था। जिसने पिछले सप्ताह रिहा किये गए एक एक राजनीतिक अपराधी के केस की समीक्षा की तथा लगभग 30 ऐसे मामले तय किये जिनमें समय से पहले रिहा किये गए राजनीतिक अपराधियों को, जिनमें से कई को उम्र कैद की सजा मिली थी, फिर से जेल में बंद होकर अपने बची हुई सजा पूरी करनी होगी।
सबसे दिलचस्प बात यह है इन सब राजनीतिक अपराधियों को लगभग दो दशक पूर्व अचुत्यानंदन के नेतृत्व वाली वाममोर्चा सरकार के काल ही में किया गया था और अब 20 साल बाद फिर विजयन पिनराई के नेतृत्व वाली वर्तमान वाममोर्चा सरकार के कार्यकाल में उन्हें फिर से जेल की हवा खानी होगी। यह अलग बात है कुल रिहा किये गए राजनीतिक अपराधियों में कईयों की मृत्यु भी चुकी है। यह कहना गलत नहीं होगा की तब रिहा किये 209 राजनीतिक अपराधियो में से अधिकांश मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और वाममोर्चे से जुडी पार्टिओं के ही कार्यकर्त्ता थे। केरल देश का ऐसा राज्य है जहाँ कई बार राजनीतिक दलों से जुड़े लोग विरोधी दल के लोगों की हत्या तक करवा देते हैं। ऐसा सभी दलों से जुड़े लोग करते आये हैं। वाममोर्चे की सरकार ने इन सबको 2011 राज्य में होने वाले विधान सभा चुनावो से ठीक पहले सजा पूरी होने से पूर्व ही रिहा किया दिया था। इसको लेकर तब मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने वाम सरकार पर बड़े हमले किये थे। लेकिन वाम सरकार का कहना था कि इन सब को नियमो और कानून के प्रावधानों के अनुसार ही जेल से सजा पूरी किये जाने से पूर्वरिहा किया गया है। नियमों के अनुसार, अगर सजा के दौरान कैदी का व्यवहार ठीक होता है तो उनको उनकी सजा में छूट दी जा सकती है। इसके लिए जेल के अधिकारियों तथा जिलों के वरिष्ठ अधिकारियों की समितिया समय-समय पर कैदियों के व्यवहार की समीक्षा करती रहती है। कैदी को उसके समक्ष अपना आवेदन देना होता है, जिसमे वह कहता है उसे समय से पूर्व क्यों न रिहा कर दिया जाये। छूटने से पहले कैदी को यह शपथ पत्र देना होता है कि वह बाहर जाकर भी अपना व्यवहार ठीक रखेगा तथा किसी तरह की अवांछित गतिविधियों में संलिप्त नहीं होगा। सरकार का कहना था कि सभी रिहा किये गए कैदियों के मामलों में सारी प्रक्रिया नियमानुसार करने के बाद ही उन्हें रिहा करने का फैसला किया गया।
2011 के विधान सभा चुनावों में वाममोर्चा हार गया तथा कांग्रेस के नेतृत्व वाला लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार में आया। इसी बीच कुछ संगठनो ने वाममोर्चा सरकार के इस निर्णय को केरल हाई कोर्ट में चुनौती दी। मामला कोर्ट के अधीन होने के कारण नई सरकार इस मामले की समीक्षा नहीं का सकी। लम्बी सनुवाई के बाद 2019 कोर्ट ने अपना फैसला सुनते हुए वाम सरकार ने इस निर्णय को गलत बताते हुए रद्द कर दिया। इसके साथ ही सरकार को ये निदेश दिया कि इन सभी 209 मामलों की समीक्षा की जाये। अगर यह पाया जाये की उनकी रिहाई गलत थी तो उन्हें अपना बची हुए सजा पूरी करने के लिए फिर से जेल में बंद का दिया जाये।
इस समिति ने पाया कि 209 लोंगों, जिन्हें समय से पूर्व रिहा किया था, में से 22 की मृत्य जो चुकी है।160 मामलों में पाया गया कि इन सभी को नियमों का पालन करते हुए ही रिहा किया गया। छूटने से पूर्व उन्होंने जो शपथ पत्र दिया था उसका सही ढंग से पालन किया गया। वे किसी तरह की अवांछित गतिविधिओं में लिप्त नहीं पाए गए बाकी बचे 27 लोग सजा पूरी किये जाने से पूर्व जेल से छूटने के बाद भी अवांछनीय गतिविधिओं में फिर लिप्त पाए गए। समिति ने इन सब के फिर से हिरासत में ले जेल में डाले जाने की सिफारिश की है।
सरकार समिति की इन सिफारशों के अपने स्तर पर समीक्षा करेगी तब यह तय होगा कि इन फिर जेल में डाला जाये या नहीं। सरकार अपने निर्णय की कोई समय सीमा तय नहीं की है। राज्य में विधान सभा चुनाव अगले साल के मध्य में होने वाले है। इसलिए बात की संभावना कम है कि वाम सरकार ऐसा कोई निर्णय करेंगी जो उनकी पार्टी के नेताओ और केडर पंसंद ना आये। अधिक संभावना यह है कि इस समिति की रिपोर्ट की समीक्षा करने के लिए सरकार एक और उच्च स्तरीय समिति का गठन कर दे जो अगले चुनाव तक अपनी रिपोर्ट सरकार को दे ही नहीं सके। (लेखक का अपना अध्ययन एवं विचार है)