लेखक : वरिष्ठ पत्रकार लोकपाल सेठी
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केरल देश का छठा तथा दक्षिण को दूसरा राज्य है जो सीबीआई को अपने यहाँ बिना अनुमति के किसी मामले की जाँच नहीं करने देगा। कुछ दिन पूर्व सत्तारूढ़ सीपीआई (एम) के पोलिट ब्यूरो ने अपनी सरकार को कहा है कि वह इस बारे में वह केंद्र को पत्र लिख कर राज्य सरकार के निर्णय से अवगत करवा दे। अभी यह नहीं सामने आया है कि राज्य में वाम मोर्चे की सरकार किन कारणों से सीबीआई को अपने यहाँ नहीं घुसने नहीं देना चाहती। माना जा रहा है कि राज्य में अगले साल के मध्य तक होने वाले विधान सभा चुनावों को मद्दे नज़र रखते हुए वाम सरकार नहीं चाहती उनके कार्यकाल में हुए कथित घोटालों की जाँच सीबीआई करने लग जाये।
केंद्रीय जाँच एजेंसी के रूप में सीबीआई का गठन देहली स्पेशल पुलिस कानून के अंतर्गत किया गया था। कानून के अनुसार राज्यों द्वारा अपने यहाँ जाँच की अनुमति देना एक औपचारिकता मात्र है। वैसे भी किसी भी राज्य में किसी भी मामले की जाँच करने का अधिकार उसे है। उसे उस राज्य की सरकार की अनुमति कोई जरूरत नहीं। सामान्यत कुछ वर्ष तक राष्ट्रीय स्तर के मामलों को छोड़ कर अगर कोई अपराध का मामला एक से अधिक राज्यों में फैला हुआ हुआ तो ऐसे मामलों की जाँच सबंधित राज्यों की सरकारें सीबीआई को सौपें जाने की सिफारिश केंद्र सरकार को करती थी। मोटे तौर पर यह एक फ़ेडरल व्यवस्था जिसे सभी राज्य मानते थे। लेकिन धीरे राज्य सरकारे अपने यहाँ विवादास्पद अपराधिक मामलों के जाँच सीबीआई से करवाये जाने के लिए केंद्र कहने लगी। कुछ अपवादों और आरोपों को छोड़ दिया जाये तो इस एजेंसी की छवि सही तरीके से मामले के तह तक पहुचने की है। यद्पी यह केंद्रीय गृह मत्रालय के अधीन है फिर भी कुल मिलाकर इसे निष्पक्ष माना जाता है, हालांकि बीच बीच में यह आरोप भी लगते रहे है कि वह केंद्र में सत्तारूढ़ दल के इशारों पर काम करती है। लेकिन इसके बावजूद जब जब कोई बड़ी अपराधिक घटना होती है तब तब पीड़ित पक्ष इसकी जाँच सीबीआई से करवाए जाने की मांग करता है। कभी कभी न्यायालय अपनी ओर से घटना की जाँच सी बी आई को सौपने का आदेश देते है।
लेकिन जब से दिल्ली में वर्तमान एनडीए सरकार आई है तब से कुछ गैर बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों ने इस व्यवस्था को चुनौती देना शुरू किया है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी इस मामले में सबसे आगे आई.वहां लगभग 500 करोड़ के शारदा चिट फण्ड घोटले की जाँच विपक्ष की मांग पर सीबीआई को सौपी गई थी। जाँच के दौरान जब उसने कुछ ऐसे पुलिस अधिकारिओं से पूछताछ शुरू की, जो ममता दीदी केखास थे, तो वे भड़क उठीं। सीबीआई और केंद्र के खिलाफ धरने तक पर बैठ गई। वो अलग बात है कि न्यायालय ने जाँच जारी रखने का निर्देश दिया। इसके बाद दीदी की सरकार ने केंद्र को एक कड़ा पत्र लिख कर कहा कि वह बिना राज्य सरकार की अनुमति को उनके यहाँ किसी मामले की जाँच नहीं कर सकती। इसके बाद एक एक करके तीन राज्यों, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम ने अलग घटनाओ के मद्दे नज़र इस तरह की अनुमति देने से इंकार कर दिया। बाद में ऐसा ही राजस्थान की सरकार ने किया। कुछ सप्ताह पहले महाराष्ट्र, जहाँ कांग्रेस सहित तीन दलों की सरकार है, ने भी यही किया।
असल में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार शुशात सिंह राजपूत के संदिग्ध मौत का मामला सीबीआई कसौपने जाने से नाराज़ चल रही थी। अब हम आते है केरल सरकार के रुख पर। यहाँ कुछ महीने पूर्व कूटनीतिक जरिये से सोने की की स्तर पर तस्करी का मामला सामने आया था, जिसकी जाँच प्रवर्तन निदेशालय कर रहा था। धीरे धीरे यह बात सामने आई कि इसमें राज्य सरकार के कुछ वरिष्ठ अधिकारी भी कथित रूप से लिप्त थे। इसमें मुख्यमत्री के प्रमुख सचिव शिवशंकर भी एक थे। प्रवर्तन निदेशालय ने जब उन पर शिकंजा कसना शुरू किया तो मुख्यमत्री विजयन पिनराई ने उन्हें उनके पद से हटा दिया। जाँच में जब कुछ और बातें सामने आई तो सरकार ने उनको निलंबित कर दिया। अब उनको प्रवर्तन निदेशालय ने उसे हिरासत में ले लिया है। यह माना जाता है कि वे कुछ ऐसा उगल सकते है जिसे वाम मोर्चे के कुछ नेता संकट में फंस सकते है। वैसे भी शिवशंकर मुख्यमत्री के बहुत करीब माने जाते थे। चूँकि अपनी पूछताछ के बाद प्रवर्तन निदेशालय सामान्य प्रकिर्या के अनुसार मामले सीबीआई को सौप देता है। जबकि सरकार ऐसा नहीं होने देना चाहती। राज्य तो दो और बड़े स्कैम हो चुके है। जिसकी जाँच कभी भी सीबीआई के पास आ सकती है। चूँकि चुनाव नज़दीक आ रहे है इसलिए वाम मोर्च सरकार घोटालों की जाँच को टालने के लिए नहीं चाहती कि सीबीआई इसमें लग जाये।
लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि जहाँ, छत्तीसगढ़, राजस्थान तथा महाराष्ट्र जैसे राज्यों, जहाँ कांग्रेस की सरकारें है ने अपने यह तो सीबीआई के आने पर रोक लगाने के कदम उठाये है वही केरलमें कांग्रेस पार्टी वाम सरकार के इस कदम का विरोध कर रही है। (लेखक के अपने विचार हैं)