संविधान दिवस पर देश के भाग्य विधाता का दमन








लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत

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यह विडम्बना नहीं तो और क्या है कि आज देश के संविधान दिवस जैसे ऐतिहासिक, महत्वपूर्ण और पुण्य अवसर पर देश के भाग्य विधाता अन्नदाता किसान की आवाज के दमन की प्रक्रिया पूरे देश में जारी है। कहीं उसे गिरफ्तार किया जा रहा है, कहीं उसे बीच रास्ते दिल्ली जाने से रोका जा रहा है। दुख इस बात का है कि सरकार काले कानून के जरिये उसी अन्नदाता किसान जो पूरे देश का पेट भरता है, को तबाह करने पर तुली हुयी है। 





सरकार के मुखिया यह नहीं सोचते कि जब किसान ही नहीं  रहेगा तो खेती कौन करेगा। उस दशा में देश तो भूखों मरने की नौबत आ जायेगी। क्या देश पुन : ईस्ट इंडिया कंपनी के दौर की ओर जा रहा है। यह कैसा लोकतंत्र है। क्या इसी की कल्पना बाबा साहब अम्बेडकर, डा. राजेन्द्र प्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल आदि देश के कर्णधारों ने की थी। क्या संविधान की रचना करने वाले बाबा साहब और देश के महान नेताओं की आत्मा आज रो नहीं रही होगी जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व होम कर दिया। आज यह विचार का विषय है कि देश कहां जा रहा है। (लेखक के अपने विचार हैं)