न खुदा मिला, न विसाले सनम,
न इधर के रहे, न उधर के रहे,
नवीन जैन, वरिष्ठ पत्रकार
इंदौर (म.प्र.) M 9893518228
इन दिनों देश भर में मद्ययप्रदेश की पूर्व सिंधिया रियासत ,जो गुलाम भारत की सबसे बड़ी रियासत थी ,की अगली पीढ़ी के राजनेता ज्योतिरादित्य सिंधिया सबसे ज़्यादा खबरों में हैं। जान लें कि कुछ महीने पहले ही सिंधिया ने लम्बी कशमकश के बाद कांग्रेस त्यागकर भाजपा ज्वॉइन कर ली थी,जिसके चलते कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ की 15 महीने चली राज्य सरकार गिर गई थी। सियासत में सेवा भावना की बातें करना फ़ालतू की बात है। वैसे भी न जाने कब से माना जाता रहा है कि दुनिया में ऐसा कोई काम नहीं होता, जिसे कहा जा सके कि यह तो निःस्वार्थ भावना से किया गया कार्य है। इसीलिए सिद्ध हो चुका का था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में पद प्रतिष्ठा को लेकर कमलनाथ के अलावा आला कमान को अपने विश्वस्तों के साथ लगातार निशाने पर ले रहे थे।
वे चूँकि इस सूबे में कांग्रेस की सरकार बनवाने में अपने विशेष प्रभाव वाली ग्वालियर चंबल की 16 सीटों को कांग्रेस को दिलवाने में मुख्य भूमिका निबाह चुके थे, इसलिए या तो मुख्यमंत्री, या पार्टी प्रदेश अध्यक्ष या राज्य सभा में कांग्रेस की तरफ़ से जाने को लेकर कोई भी रिस्क उठाने को तैयार थे। सिंधिया की सबसे बड़ी पीड़ा थी कि वे परम्परागत गुना की लोकसभा सीट पिछले चुनाव में हार बैठे थे, वह भी अपने एक पुराने वफादार से और पूरे एक लाख वोटों से ज़्यादा से। आज भी माना जाता है कि सिंधिया को अध्यक्ष पद के साथ ही राज्यसभा में ले लिया जाता तो कमलाथ की सरकार आसानी से चल रही होती, लेकिन कमलनाथ और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह ने सिंधिया के रास्ते में हरदम रोड़े डाले। सिंधिया ने स्वाभिमान, प्रतिष्ठा और उनकी कार्य कुशलता की इसे सीधी अनदेखी माना।
सिंधिया ने इसी बीच मीडिया में एक शेर पढ़कर आला कमान को चेताया था कि,जब ऊसुलो पर आ जाए तो टकराना पड़ता है, अगर जिंदा हो तो जिंदा बताना पड़ता है।बस,सिंधिया का यह छोटा सा टारपीडो था ,जिससे कमलनाथ सरकार के जहाज में हल्के हल्के पानी भरने लगा। सनद रहे कि सिंधिया भी अपने स्व. पिताश्री की तरह रेश यानी सरपट कार भगाने के शौकीन हैं। इसलिए उनसे अपनी अपनी अनदेखी और नहीं सही जा रही थी ।इसी बीच उन्होंने किसानों, स्कूल टीचर्स को लेकर बयान जारी कर दिया कि उक्त मांगे नहीं मांगी गई तो वे सड़कों पर उतर आएँगे। उनकी जिदों से अघाए कमलनाथ का पारा भी चढ़ना ही था। उन्होंने सिंधिया के खिलाफ हुंकार भर दी कि यदि ऐसा ही है तो उतर जाएँ सड़को पर। मुहावरे में कहें तो पक्की सड़क कमलनाथ सूबे में बनाकर आदर विश्वास के पात्र बन रहे थे, तो उस राजनीतिक सड़क में दरारें आने लगीं क्योकि आखिरकार दलबदल का यादगार कारनामा पुनः हुआ। खुद कमलनाथ को इस्तीफा देना पड़ा,क्योंकि पूरे 25 मन्त्रियों तथा विधायकों ने रातों रात गले में भगवा दुप्पटा डाल लिया।
इस प्रदेश के कई राजनीतिक पण्डित मानते हैं कि सिंधिया अपने आपको प्रधानमंत्री पद का भी भविष्य में दावेदार मानते रहे हैं। उनके स्व. पिताजी के बारे में भी यही कहा जाता रहा है। वो तो बीच में ही विमान दुर्घटना में उनका आकस्मिक निधन हो गया, जिसके कारण तब विदेश से ज्योतिरादित्य सिंधिया को रातों रात भारत लौटना पड़ा था। विदेश में ही प्रबंधन की उच्च शिक्षा प्राप्त सिंधिया ने निजी दुख तथा पीड़ा को चुनौती माना, और जैसे ही वे केन्द्रीय मंत्रिमंडल में लिए गए उनके मेटल,सामाजिक, राजनीतिक एवं वैदेशिक ज्ञान का हाउस में डिबेट के तहत दबदबा दिखने लगा। दूसरी तरफ उनमें संगठन से जुड़ी कमी यह देखने में आई कि उनका खास प्रभाव उनकी अपनी पूर्व सिंधिया रियासत में ही देखा गया। बाकी अंचलों पर उनकी पकड़ तकरीबन बीस सालों में भी मजबूत नहीं हो पाई। कदाचित इसी बौखलाहट में इन उपचुनाव के दौरान सिंधिया ने बयान जारी कर दिया है कि सभी गाँव वालों से कह दो, यह महाराजा सिंधिया का चुनाव है। वोट महाराज सिंधिया के लिए देना है। उक्त बयान में कहा गया है कि यह मैसेज में समी में फैला दो।
भाजपा के अंडरखानों की खबरें रखने में माहिर लोगों का कहना है कि सिंधिया ने उक्त बयान देकर चूक कर दी। कारण की इसे विशेषकर नई नस्ल राजा रजवाड़ों के समय में होने वाली मुनादी या डुगडुगी भी मान सकती है। आलम यह है कि जिन सिंधिया पर भाजपा की कई उम्मीदें टिकी हुईं थीं, उन्हीं सिंधिया का फ़ोटो तक पार्टी ने चुनाव प्रचार रथ से हटा दिया है। हाँ, उनकी स्व.दादी माँ विजयाराजे सिंधिया का चित्र ज़रूर लगा दिया गया है। पिछले दिनों स्व.विजयाराजे की स्मृति में 100 रुपये का सिक्का भी जारी किया गया था। माना जा रहा है कि चूँकि विजयाराजे सिंधिया भाजपा की मुख्य शिल्पकारों में से और अयोध्या आन्दोलन का प्रमुख चेहरा रहीं, इसलिए उनकी स्मृति हिंदू वोटर्स पूरे सूबे की 28 सीटो पर हो रहे उप चुनाव में फ़िर हिन्दुत्व का तड़का लगा सकती है। जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा ज्वाइन की थी, तभी से इस पार्टी का बड़ा वर्ग अंदर ही अंदर सिंधिया की मुखालफत करने लगा था ,क्योकि यह पार्टी है तो कॉडर बेस है। आयातित नेताओं को उक्त दल बहुत कम स्वीकार कर पाया है।
मद्ययप्रदेश के बड़े मीडिया वर्ग ने अभी से ,यानी 10 नवम्बर को घोषित होने वाले चुनाव परिणामों के पहले ही लिखना शुरू कर दिया है कि भाजपा को तो बैठे बिठाए बिन मांगे मन माफिक मुराद मिल गई। इन उप चुनावों को मद्ययप्रदेश पॉलिटिकल लीग बताते हुए लिखा जा रहा है कि अब तो हो सकता है भाजपा को खानापूर्ति या औपचारिकता भर पूरी करनी हो। भाजपा के नेताओं ने सोशल मीडिया पर पोस्ट डालनी शुरू कर दी है कि अगर गरीब होना गुनाह है तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ,,,,,,,,! मतलब, सिंधिया को गद्दार कहने का चुनावी गुब्बारा लम्बे समय तक तो हवाओ से बातें करता रहा ,मग़र अचानक अपने आप फूट कर ऐसा कही जा गिरा कि इसका पता तो शायद दुनिया की कोई जासूसी एजेंसी भी न लगा सके।
मुम्बई में सन 1971 की 01 जनवरी को जन्मे ज्योतिरादित्य सिंधिया कुर्मी मराठा खानदान से वास्ता रखते हैं। जब सन 2001 के कलमुए दिन उनके पिताजी कांग्रेस के तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया का विमान दुर्घटना में आकस्मिक निधन हुआ था, तब ज्योतिरादित्य विदेश में थे। वे तत्काल अपने वतन लौटे। उन्हें पहली मर्तबा डॉ. मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था। उनकी पत्नी भी बड़ौदा के पूर्व गायकवाड़ राजघराने से ताल्लुक रखती हैं, जिनका नाम प्रियदर्शिनी है। वे कभी सार्वजनिक जीवन में दिखाई नहीं दीं। (वरिष्ठ पत्रकार के अपने विचार हैं)