सामूहिकता सबसे बड़ी शक्ति


प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़ 
पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्विद्यालय, राजस्थान


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सबको साथ लेकर चलना ही जीवन है। कोई भी प्राणी किसी से द्वेष न करे। 


मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और आज तक संसार में जो कुछ उन्नति की है वह सहयोग और सामूहिकता की भावना के द्वारा ही की है। अकेला व्यक्ति किसी प्रकार की उन्नति कर सकने में असमर्थ होता है। यदि मनुष्य इन विशेषताओं को त्याग कर दे तो उसमें और जंगल में फिरने वाले पशु में कुछ भी अंतर न रह जायेगा। इसलिए मनुष्य को अपनी हित की दृष्टि से भी सदा सामूहिकता की भावना को बढ़ावा देना चाहिए और इस बात का प्रयत्न करते रहना चाहिए कि समाज में जहां तक संभव हो सहयोग की भावना निरंतर बढ़ती रहे। किसी व्यक्ति को उत्तेजना में आकर या क्रोध में आकर समझाना नहीं चाहिए। यदि उत्तेजना पूर्ण शब्दों से काम लिया तो किया हुआ काम फिर से दुहराया जा सकता है। उत्तेजित व्यक्ति समझता है कि वह अपराधी को अपशब्दों और ताड़ना द्वारा सुधार रहा है किन्तु वह नहीं जानता कि ऐसा करके वह स्वयं अपने प्रति अन्याय कर रहा है। अपराधी स्वयं आपकी बात मानने की बजाय लड़ने-झगड़ने लग जायेगा। इस अनर्थकारी प्रवृत्ति के कारण फूट पड़ सकती है। अपने प्रतिद्वन्दियों के प्रति ईष्र्या और द्वेष करना छोड़ देना चाहिए। 



प्रकृति द्वारा मनुष्य को गुण अवगुण मिलते है। इससे स्पष्ट है कि कोई व्यक्ति किसी से न तो छोटा है न हीन है। सामूहिकता की भावना के द्वारा प्रगति होती है। भारत सदियों से गुलाम रहा गुलामी का मुख्य कारण यह था कि यहां के राजा लोग आपस में ही लड़ते रहते थे और बाहरी आक्रमणकारियों को बुलाकर अपनी प्रतिद्वन्दी पर आक्रमण कराते थे और बाहरी शक्तियों का सहयोग करते थे। इसका परिणाम यह रहा कि भारत बहुत दिनों तक गुलाम रहा। फूट डालों और राज्य करो की नीति अपना करके विदेशी शासकों ने भारत पर शासन किया। महात्मा गांधी ने विदेशियों की इस नीति को समझा और भारत के लोगों में एकता और अखंडता की भावना भरने का प्रयास किया। उनका कहना था कि सहयोग के बिना कोई भी बड़ा कार्य नहीं किया जा सकता। इसलिए उन्होंने भारत के लोगों को संगठित करने का प्रयास किया और उनके दिमाग में यह बात डाल दी की कोई भी आंदोलन तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक राष्ट्र के पूरे लोगों का सहयोग न मिले। 



इसलिए उनका यह मानना था कि स्वतंत्रता आंदोलन में भी भारत के सभी नागरिक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित होकर के सहयोग करे। उनकी बात का जनता पर प्रभाव पड़ा और भारत के सभी नागरिकों के दिमाग में सहयोग और राष्ट्रीयता की भावना प्रबल होने लगी और एक दिन ऐसा आया जब अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा। सामूहिकता की भावना हमारे प्राचीन शास्त्रों में भी वर्णित है। वेदों, उपनिषदों और पुराणों में भी सबको साथ लेकर चलने का दृष्टांत दिया गया है। वहां कहा गया है हम लोगों को साथ मिलकर के चले, साथ मिलकर के भोजन करे, साथ मिलकर के शक्ति का प्रयोग करे, हम लोगों के द्वारा धारण किया गया तेज शक्तिशाली हो और हम लोग किसी से द्वेष न करे। इसी प्रकार सबके प्रति कल्याण की भावना व्यक्त की गयी है। हम सब सुखी होवें, हम सब निरोग होवें, हम सब कल्याण का दर्शन करे और कोई भी प्राणी किसी से द्वेष न करे। सामूहिकता सबसे बड़ी शक्ति है- संघे शक्तिः कलियुगे अर्थात् कलयुग में संघ में शक्ति विराजती है। किसी कार्य को करने के लिए अगर दस हाथ एक साथ लग जाये तो वह कार्य जल्दी समाप्त हो जाता है। अकेला आदमी उसको दस दिन में पूरा करेगा। इसीलिए कहा गया है अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है। 



आज हम सभ्यता और संस्कृति में जितनी उन्नति देख रहे है और जिसके कारण हमारा जीवन सुख और शांति से व्यतीत हो रहा है उसके निर्माण में समस्त समाज का हाथ रहा है। इसलिए हमको ऐसा आचरण करना चाहिए जिससे समाज में एकता, प्रेम, सहयोग के भावों की वृद्धि हो और हम दिन-प्रतिदिन उन्नति की और अग्रसर हो सके। सहयोग और मैत्री भाव यह दोनो शब्द लगभग एक ही अर्थ के सूचक है। हमारे मित्र ही हमारे सबसे बड़े सहयोगी हो सकते है। इसके लिए आवश्यकता है नेतृत्व शक्ति का विकास। यदि समाज के किसी व्यक्ति में अच्छी नेतृत्व शक्ति है तो वह समाज को एक साथ आगे लेकर बढ़ सकता है। हम देखते है कि एक छोटा सा तिनका कमजोर होता है, बलहीन होता है जिसे पानी आसानी से बहा ले जाता है। लेकिन जब ढेर सारे तिनके एकत्रित हो जाते है तो छप्पर का रूप धारण कर लेते है। फिर उनके द्वारा भारी वर्षा से भी बचाव किया जा सकता है। 



इसी प्रकार जब किसी परिवार या राज्य के लोग अलग-अलग बिखरे होते है तो उनकी शक्ति कुछ भी नहीं रहती लेकिन जब सब मिल जाते है तो उनका समूह अपने से भी अधिक शक्तिशाली शत्रु को पराजित कर देता है। अतः मनुष्यों को संगठित होकर रहना चाहिए। हमारे देश में जब मुगलों का शासन था तो हिन्दुओं का जीना मुश्किल हो गया था। मराठा सरदार शिवाजी ने हिन्दूओं को संगठित किया और मुगल साम्राज्य को समाप्त कर हिन्दू धर्म का पुनरुत्थान इसी प्रकार स्वतंत्रता संग्राम के समय नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने भारतीय लोगों को संगठित करके स्वतंत्रता आंदोलन में जान फूंक दी। गुणवान मनुष्य परिवार या समाज के साथ रहता है तो अपने गुणों से अन्य लोगों को लाभान्वित करता है। इसलिए कहा जाता है कि गुणवान मनुष्यों को अकेला नहीं रहना चाहिए। परिवार समाज से जुड़ कर रहना चाहिए। अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक प्राणी बनना चाहिए। (लेखक के अपने विचार हैं)