लेखिका : रश्मि अग्रवाल
नजीबाबाद, 9837028700
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जरा गौर करें दक्षिण भारत में वैज्ञानिकों ने कृत्रिम वर्षा में महारत हासिल की है लेकिन यह भी तब संभव है जब बादलों में जल हो और वे एक निश्चित दायरे में आएं। इसका मतलब है कि जल तभी पाया जा सकता जब वह हो। जल नहीं होगा तो खाद्यान्न नहीं होंगे, रोजगार भी नहीं होंगे और खुशहाली-बेफिक्री भी नहीं होगी। ऐसे संकट के समय में पहल सरकार को करनी होगी। समाज को फिर से जल के करीब लाना होगा। जल का महत्व और प्रबंधन भूल चुके समाज को उसकी पुरानी आदतें याद दिलाना होगा। तय करना होगा कि जल की पहली जरूरत किसे है और कौन उसके प्रति जवाबदेह?
समग्र नीति बनाने का काम सरकार कर सकती लेकिन जल बचाने का सरकार और समाज को मिलकर करना होगा। सरकार जल की उपलब्धता, जरूरत, उपयोग और संरक्षण की विस्तृत अध्ययन कर नीति बनाएँ ताकि सभी को अपनी जरूरत का जल मिल सके। जल के प्रयोग को लेकर भी स्पष्ट कानून बनाने की जरूरत है। जहाँ कम जल है वहाँ अधिक जल की जरूरत वाली फसलें लगाने और जल के अधिक इस्तेमाल वाले उद्योगों पर रोक लगाई जाये। वाॅटर हार्वेस्टिंग का काम करने वाले लोगों को आर्थिक मदद दी जाए। जल लूटने या बर्बाद करने वालों को दंड दिया जाना चाहिए। देशहित के लिए किया गया कोई भी कार्य सिर्फ सरकारों की नीतियों से प्रभावी नहीं होता जब तक पूरे देश के एक-एक नागरिक का सही दिशा में सहयोग न करें। (लेखिका के अपने विचार हैं)