daylife.page
आज तोताराम ने जो प्रश्न किया वह बहुत ही विचित्र और कुतर्कपूर्ण था। यह प्रश्न वैसा ही था जैसे कोई हमसे पूछे- जब गाँधी जी को गोली मारी गई थी तब तू क्या कर रहा था? अब क्या बताएं क्या कर रहे थे ? कोई छह साल के थे। एक शादी में गए हुए थे |जीम रहे थे। गाँधी जी की खबर के बाद फेरे तो खैर हो गए लेकिन रंग में भंग पड़ गया।
तोताराम का प्रश्न था- जब प्रतापसिंह खाचरियावास निक्कर पहनते थे तब तुम क्या कर रहे थे?
हमने कहा- किसी के कुछ करने का किसी के निक्कर पहनने से क्या संबंध है?
बोला- है। है क्यों नहीं ? इसीसे किसी योग्यता सिद्ध होती है कि वह अमुक के निक्कर पहनने के समय कोई क्या कर रहा था। जैसे प्रतापसिंह खाचरियावास देशभक्त, पक्के कांग्रेसी, काबिल और अनुभवी नेता हैं क्योंकि जब सचिन पायलट निक्कर पहना करते थे तब ये छात्रसंघ के अध्यक्ष थे। तो अब तेरी काबिलियत जानने के लिए यह पता करना बहुत ज़रूरी है कि जब खाचरियावास निक्कर पहना करते थे तब तू क्या क्या कर रहा था ?
हमने कहा- सबसे पहले तो इस प्रसंग में कुछ और बातें सुन-समझ ले कि खाचरियावास कोई सरनेम नहीं है। यह एक गाँव का नाम है जो हमारे जिले सीकर की दांता रामगढ़ तहसील में है। ये भी पहले भाजपा में थे लेकिन वहाँ जब लाभ का सौदा नहीं लगा तो कांग्रेस में आ गए। इनके ताऊ जी भैरों सिंह शेखावत थे जिनसे हम दो बार मिले हैं। इनके छोटे भाई बिशन सिंह शेखावत थे जो अध्यापक और लेखक-संपादक थे और जीवन भर सेवा से मेवा वाली राजनीति नहीं बल्कि पसीना बहाने वाला काम करते रहे। हमारा उनसे 1978 से संबंध रहा जब खाचरियावास जी प्राइमरी में पढ़ते थे और पता नहीं निक्कर पहनते थे या पट्टे वाली नाड़ेदार चड्डी। और जब इनका जन्म हुआ था और ये पोतड़ों में ही थे तब हम कालेज में प्रवक्ता बन गए थे।
जहां तक हाफ पेंट पहनने का संबंध है तो जब हम चालीस साल की सेवा के बाद रिटायर हो चुके थे तब हमने सर संघ संचालक के एस सुदर्शन जी को निक्कर पहने देखा है, वह भी अटली जी और मोदी जी और भागवत जी की तरह केवल शाखा में नहीं, बल्कि हजारों की सभा में मंच पर भाषण देते हुए देखा-सुना है।फोटो में तो हमने गोलवलकर जी को भी निक्कर पहने देखा है।
बोला- अब, बस भी कर। हमने भी जैन धर्म के तीर्थंकर महावीर को निर्वस्त्र देखा है।
हमने कह- तो बस, इसीसे समझ ले कि अक्ल का संबंध न तो उम्र से है और न ही पहनावे से। सभी चक्रवर्ती सम्राट बिना अस्त्र-शस्त्रों और मुकुट के ही पैदा होते हैं। तभी राम का जन्म नहीं हुआ, वे प्रकट हुए-
भए प्रकट कृपाला दीन दयाला।
और फिर माँ के अनुरोध पर शिशु लीला की।
सूट-बूट और टाई वाले बैरिस्टर करमचंद गाँधी से लँगोटी वाला बाबा कहीं अधिक बड़ा है।
टुच्चे लोग कुर्सी से बड़े बनते है और बड़े आदमी कुर्सी को पवित्र करते हैं। (लेखक के अपने विचार हैं)
लेखक : रमेश जोशी
प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए.