पुस्तकें समाज का आईना ?


पुस्तकों के बिना घर जैसे बिना खिड़की का मकान


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पुस्तकों को कम शब्दों में परिभाषित करूँ तब पुस्तकें आत्मा को रोशन करतीं, हमारी बौद्धिक और मानसिक क्षमता में वृद्धि करती हैं। पुस्तकों में किसी मनुष्य को परिवर्तित करने की शक्ति होती पर कुछ पुस्तकें केवल स्वाद लेने के लिए होती, कुछ मन में उतरने के लिए हेाती हैं। लेकिन आज, युवा पीढ़ी पुस्तकों से दूर होती जा रही है। वही क्या उनके अभिभावक भी पुस्तकें पढ़ना नहीं चाहते क्योंकि दूर संचार के माध्यम, आधुनिक स्मार्ट क्लास को अधिक महत्व दिया जाने लगा। जहाँ एक क्लिक पर सारा जहाँ सिमट आता पर बिना पुस्तक के प्राकृतिक विज्ञान, स्तब्ध दर्शन लगड़ा, शब्दगूंगे और सभी वस्तुएँ अंधकार में हैं।



गम्भीरता से मंथन करें तो किताबों के अक्षर, वाक्य भाषाशैली भाव व पात्र हमारे व्यक्तित्व पर सीधा प्रभाव डालते हैं क्यों लोग आत्मकथा, संस्मरण, कथा, कहानी लिखते एवं वेदशास्त्र, इतिहास की प्रमाणिकता, क्या कभी कम हो सकती? इसलिए पुस्तकों के बिना घर ऐसा जैसे बिना खिड़की के मकान। (लेखिका के अपने विचार हैं) 



लेखिका : रश्मि अग्रवाल
नजीबाबाद, 9837028700