पशु और मानव में अंतर?


मनुष्य समझें या न समझें परंतु वैज्ञानिक रूप से स्पष्ट हो गया कि जैसे हम दैनिक जीवन में खाते-पीते, सोते-जागते, उठते-बैठते, मैथुन करते, स्वयं की रक्षा करते, वैसे पशु भी करते हैं। फिर हम में और पशु के अनुभव में क्या अंतर है?


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पशु बोल नहीं सकता पर किसी न किसी माध्यम से अपनी सांकेतिक भाषा मानव तक अवश्य पहुँचाता है। वहीं उसके पास विचार अनुभव करने की क्षमता व प्रजनन क्रिया व परिवार को चलाने की क्षमता मनुष्य जैसी होती है। मानव बोलकर स्वयं को सुरक्षित करने हेतु कुछ कर सकता है। पशु नहीं।


लोग माने या न मानें पर अनेक दृष्टिकोणों से पशु मनुष्यों जैसे हैं। बोल न पाएँ तो क्या? जैसे माँसाहारी लोगों का नज़रिया पशुओं के प्रति कठोर होता, वो उन्हें प्राणवान न समझ पौष्टिक खाद्य पदार्थ, जो धन से खरीदा जा सकता, के समान व्यवहार करते हैं। माँसाहारी लोग अपने खाद्य पदार्थ पर पूर्ण जानकारी चाहते हुए अनजान बनकर जानना नहीं चाहते अपितु सामान्य भोजन खाने जैसा विचार रखते हुए खाते हैं। इसलिए वो विश्वास नहीं कर पाते कि पशु मनुष्य की भाँति सुख-दुःख अनुभव कर सकते हैं।



कुछ लोग मानते कि सुख-दुःख का अनुभव बुद्धि से होता और मानव की अपेक्षा पशु की मस्तिष्क छोटा व बुद्धि कम होती है। इसलिए वो अनुभव की प्रक्रिया को नहीं समझ पाता। पर ये तर्क ठीक नहीं। चेतन व स्वस्थ पशुओं में स्पष्ट रूप से सुखी रहने की इच्छा देखी जा सकती है, जैसे... अधिक सर्दी पड़ने पर गाय, भैंस आदि अपना मुँह ऊपर की ओर करके सूर्य को देखते नज़र आते, तब स्पष्ट हो जाता कि वो सर्दी की पीड़ा से बचने हेतु गर्मी चाहते हैं। क्या ये व्यवहार किसी मनुष्य से कमतर जान पड़ता है।


तात्पर्य है कि मनुष्य समझें या न समझें परंतु वैज्ञानिक रूप से स्पष्ट हो गया कि जैसे हम दैनिक जीवन में खाते-पीते, सोते-जागते, उठते-बैठते, मैथुन करते, स्वयं की रक्षा करते, वैसे पशु भी करते हैं। फिर हम में और पशु के अनुभव में क्या अंतर है?जैसे हमारे अंदर आत्मा विद्यमान, सोचने, समझने की शक्ति, वह पशु में नहीं। ये मूक प्राणी के प्रति हमारा नज़रिया, क्योंकि वो पीड़ा को कहकर जता नहीं पाता, व्यक्त नहीं कर पाता, मनुष्य के व्यवहार से स्वयं को बचा नहीं पाता, जो मनुष्य कर पाता है। जैसे- कसाई के हाथों में पशु स्वयं को समर्पित कर देता, वहीं मानव बोलकर व बल प्रयोग कर जीत जाता है- बस ये ही अंतर है मनुष्य और पशु में और माँसाहारी व्यक्तियों के विचारों में। (लेखिका का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)



लेखिका : रश्मि अग्रवाल
वाणी अखिल भारतीय हिन्दी संस्थान
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