आतंकवाद : समस्या और समाधान


प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़ 
पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्विद्यालय, राजस्थान


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आतंकवाद आज एक बहुत बड़ी समस्या बन गया है। विश्व के अनेक देश इस समस्या से ग्रसित हो गये है। कही धर्म के नाम पर, कही सम्प्रदाय के नाम पर, कही देश के किसी हिस्से को तोड़ने के नाम पर, कही किसी देश की सम्प्रभुता को विखंडित करने के नाम पर, कही धर्म निरपेक्षता के नाम पर आतंकवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत एक लोकतंत्रात्मक देश है। इस देश पर कई बार विदेशी आक्रमण हो चुके है। विदेशी आक्रांताओं से मुक्त होने के बाद इस देश को प्रजातंत्रात्मक धर्म निरपेक्ष समाजवादी गणराज्य के रूप में मान्यता दी गई। धर्म निरपेक्षता शब्द जोड़ने के पीछे भावना यह थी कि धर्म को केवल व्यक्ति तक सीमित रखा जाये। धर्म को किसी भी रूप में देश के साथ न जोड़ा जाये। परन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत। 


विगत वर्षों में धर्म निरपेक्षता की व्याख्या उसके वास्तविक उद्देश्य से हटकर की गई है। राजनीतिज्ञों ने इसे अपने स्वार्थ साधन का माध्यम बना लिया है। अल्पसंख्यकों के हितों की दुहाई देते हुए। जिस साम्प्रदायिक तुष्टीकरण की नीति को अपनाया गया है। उसके कारण धर्म निरपेक्षता को बहुत बड़ा धक्का लगा है। अल्पसंख्यकों के हितों के नाम पर जातिवाद, सम्प्रदायवाद, धर्मवाद को विकृत रूप में प्रस्तुत कर दिया गया। जिसकी अंतिम परिणति आतंकवाद के रूप में दिखाई दे रही है। भारत में चाहे कश्मीर समस्या हो, पंजाब समस्या रही हो, गोरखालैंड समस्या अथवा अन्य समस्याएं आतंकवाद का तांडव सर्वत्र दिखाई दिया है। कश्मीर में पाकिस्तान आयोजित आतंकवाद वहां के नवयुवकों को धर्म के नाम पर प्रेरित कर हिंसा कराता रहता है। आये दिन सुरक्षाकर्मियों और वहां के स्थानीय नागरिकों तथा दो चार आतंकवादियों की दुष्प्रेरणा से हत्याएं होती रहती है। सुरक्षाबल बहुत ही संयम पूर्वक काम करते है। भारतीय लोकतंत्र को साम्प्रदायिकता के हिसाब से मुक्त कराने के लिए बहुत प्रयास किये जा रहे है। भारत मंे रहने वाले विभिन्न धर्मावलम्बियों में व्याप्त सभी प्रकार के संदेह अविश्वास और अपने भविष्य के प्रति उत्पन्न आशंकाओं को समाप्त करने की दिशा में प्रयास किये जा रहे है। 



सांकेतिक फोटो 


संवैधानिक व्यवस्थाओं और उदात्त घोषणाओं के बाद भी साम्प्रदायिकता एवं उससे उत्पन्न हिंसात्मक दंगों के प्रति देश में चिंता जताई जाती है। भारत के विभाजन के मूल में दो धर्मों की सांस्कृतिक पहचान का आग्रह था। परन्तु दुर्भाग्य यह रहा कि सांस्कृतिक चिंताएं राजनीतिक शक्ति को अर्जित करने की चिंताएं बन गयी। इस प्रकार देश के विभाजन के बाद साम्प्रदायिकता राजनीतिक हथियार के रूप में देखी जाने लगी। जो लोग साम्प्रदायिकता को धार्मिक समस्या के रूप में लेते है वे यह भूल जाते है कि साम्प्रदायिकता की वैशाखी राजनीति है। इससे अधिक बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि भारत में वोट की राजनीति ने सत्ता प्राप्त करने के लिए सदैव साम्प्रदायिक शक्तियों का सहारा लिया है। वोट की राजनीति के कारण रिश्ते इतने विकृत हो गये है कि धर्म का अस्तित्व ही नहीं रहा है न राजनीति का धर्म है और न धर्म की राजनीति है। केवल सम्प्रदाय और कट्टर साम्प्रदायिक भावनाएं हमारी नियत बनकर रह गयी है। जब एक सम्प्रदाय सुनियोजित ढ़ंग से धार्मिक-सांस्कृतिक भेदों के आधार पर राजनीतिक मांगे रखने का निर्णय करता है तब साम्प्रदायिक चेतना सम्प्रदायवाद के रूप में एक राजनीतिक सिद्धांत बन जाती है। सत्ता और साम्प्रदायिकता के इस अपवित्र गठबंधन में धर्म निरपेक्षता की जड़े खोखली कर दी है। 


भारत में प्रत्येक राजनीतिक आंदोलन और मोर्चे की शुरूआत शांति के नाम पर होती है और फिर हिंसा, अराजकता एवं आगजनी का सहारा लिया जाता है। न केवल राजनीति अपितु जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सामान्यतः संयम, नियम, संतुलन और उन्मुक्त विचारों के समन्वय का मार्ग ग्रहण नहीं किया जाता। धर्म के नाम पर गठित साम्प्रदायिक सेनाओं को बढ़ावा दिया जाता है। धर्म निरपेक्ष लोकतंत्र में साम्प्रदायिक आतंकवाद को समाप्त करने के लिए यह प्रयास किया जाना चाहिए कि साम्प्रदायिक विशिष्टता के आग्रह को राजनीतिक रंग न बनने दे। राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए किसी वर्ग को अपनी सांस्कृतिक पहचान खोने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु जहां देश की एकता और प्रसन्नता का प्रश्न उठता है वहां प्रत्येक की राष्ट्रीयता केवल भारतीय होनी चाहिए। हिन्दू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध, सिक्ख, ईसाई नहीं।


आतंकवाद की समस्या का एक बहुत बड़ा कारण बेरोजगारी भी है। जब पढ़े-लिखे लोगों को रोजगार नहीं मिलता तो वे असामाजिक बन जाते है और असामाजिक कार्य करने लग जाते है। आतंकवाद को एक सामाजिक बुराई के रूप में देखा जाना चाहिए। इसको स्थायी रूप से दूर करने के लिए अपनी शिक्षा पद्धति में आवश्यक परिवर्तन करना चाहिए। नैतिकता के बीजों का बपन, भावनात्मक एकता का विकास, न्याय की उचित व्यवस्था, व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठकर राष्ट्रहित को प्राथमिकता प्रदान करना, पारस्परिक अविश्वास को दूर करना, विश्वजनीन संस्कृति एवं कला के प्रति जागरूकता आदि उदात्त गुणों की शिक्षा देकर राष्ट्रहित की भावना को बढ़ावा देना चाहिए। धर्म निरपेक्षता को साम्प्रदायिक निरपेक्षता समझे और उसमें निहित भावना पर नये सिरे से विचार करे। धर्म निरपेक्षता का अर्थ है कि हम सब धर्मों की समानता करते है और फिर अल्पसंख्यक के नाम पर धर्म को महत्व देते है। यह दुरंग नीति अविलम्ब समाप्त होनी चाहिए। किसी सम्प्रदाय या पंथ को महत्व न देना ही धर्म निरपेक्षता है। (लेखक के अपने विचार हैं)