हमारे अधिकार और कर्तव्य


प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़ 
पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्विद्यालय, राजस्थान


प्रोफेसर (डाॅ.) सोहनराज तातेड़ के अनुसार उत्तरदायित्व एवं अधिकार एक दूसरे के पूरक है। देश के नागरिकों का यह कर्तव्य है कि वे अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन सतर्कता से करें। उत्तरदायित्व का तात्पर्य है कर्तव्य। सभी व्यक्ति यदि अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन जिम्मेदारी से करे तो किसी को किसी प्रकार की समस्या न आवे। किसान का उत्तरदायित्व है खेती करना, अध्यापक का उत्तरदायित्व है छात्रों को मनोयोग से पढ़ाना, चिकित्सक का कार्य है रोगी व्यक्ति की सेवा करना, अधिकारियों का कार्य है जनता की सेवा करना, राजनेताओं का उत्तरदायित्व है पुरे राष्ट्र का विकास करना, सैनिक का उत्तरदायित्व है देश की रक्षा के साथ-साथ सीमाओं की सुरक्षा करना। यदि ये सभी अधिकारी, कर्मचारी, राजनेता अपने कार्यों का अच्छे प्रकार से उत्तरदायित्व समझ करके निर्वहन करते है तो निश्चित ही देश का विकास दिन दूनी रात चौगुनी गति से हो सकता है।


 इसी प्रकार जहां तक अधिकार की बात है वहां हमारे देश में दो प्रकार के अधिकार है- संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार, प्राकृतिक अधिकार। मौलिक अधिकार सभी भारतीय नागरिक को जन्मजात ही प्राप्त हो जाते है। कोई भी भारतीय नागरिक जिसका जन्म भारत की सीमा के अंतर्गत हुआ है उसे यह अधिकार प्राप्त है। मौलिक अधिकार वह अधिकार है जिसे संविधान में मूल रूप से लिख दिया गया है। इसके अतिरिक्त बहुत से अधिकार है जिसे नागरिकों को प्राप्त है। प्राकृतिक अधिकार वह अधिकार है जो प्रकृति प्रदत्त है। भारत के सभी नागरिकों को हवा, पानी, सूर्य का प्रकाश, जीवन जीने का अधिकार इत्यादि अधिकार प्रकृति प्रदत्त है। नदियों, झरनों, तालाबों, वर्षा ऋतु से होने वाली वर्षा का जल सभी अपनी इच्छानुसार प्रयोग कर सकते है। हवा का उपयोग सभी इच्छानुसार कर सकते है। सूर्य के प्रकाश का उपयोग भारत के सभी नागरिक अपनी इच्छानुसार कर सकते हैं। इसमें कोई किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकता, क्योंकि यह प्रकृति प्रदत्त है। प्रकृति मानव की चिरसहचरी है। 



मानव ने जब से आंखे खोली वह प्रकृति के गोंद में ही पैदा हुआ, बड़ा हुआ, खेलाकूदा और अंत में प्रकृति के गोंद में ही विलीन हो गया। प्रकृति ने मानव को खाने-पीने, रहने और स्वच्छ हवा का आनन्द लेने का ऐसा अमूल्य खजाना प्रदान किया है कि यदि मानव अपनी आवश्यकतानुसार इनका प्रयोग करे तो यह अक्षय रूप से चलता रहेगा। किन्तु इच्छा आकाश के समान अनंत होती है इसकी पूर्ति कभी नहीं की जा सकती। मानव यदि अपनी इच्छाओं को बढ़ाता जायेगा तो निश्चित ही एक दिन ऐसा आयेगा जब प्रकृति का विनाश संभव है और प्रकृति के विनाश के साथ मानव का भी विनाश निश्चित है। यदि मानव को शुद्ध हवा आॅक्सीजन के रूप में न मिले तो उसका श्वास लेना दूभर हो जायेगा। इसी प्रकार प्रकृति में हस्तक्षेप मनुष्य को विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर देगा। इसलिये हमारा यह कत्र्तव्य है कि हम अपनी आवश्यकतानुसार ही प्रकृति का दोहन करे। भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कत्र्तव्य है कि वह संविधान का, राष्ट्रध्वज का एवं राष्ट्रगान का सम्मान करे। राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों का पालन करे। भारत की एकता, अखंडता और प्रभुता की एवं वन, झील, नदी और वन्य जीवों की रक्षा करे। राष्ट्र की सेवा करे। नारी सम्मान के विरूद्ध कुप्रथाओं का एवं धर्म भाषा प्रदेश एवं वर्ग के आधार पर भेदभाव न करे। प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखे। हिंसा से दूर रहे। सार्वजनिक सम्पति की रक्षा करे।
 
वैज्ञानिक दृष्टिकोण का, मानवतावाद का सुधार की भावना का विकास करे। भारत के सभी लोगों में समरसता और सम्मान एवं भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे। व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में बढ़ने का प्रयास करे। इस प्रकार सभी नागरिकों को अधिकारों के प्रति जागरूक और कत्र्तव्यों के प्रति समर्पित रहना चाहिए। हमारे देश का दृष्टिकोण मानवतावादी है। मानवतावाद से तात्पर्य मानव के विकास के लिए तत्पर रहना और जियो और जीने दो की भावना को बढ़ावा देना। वैदिक काल से लेकर आज तक का भारत का इतिहास मानवीय विकास का इतिहास है। हमारे देश की संस्कृति अनेकता में एकता को बढ़ावा देने वाली है। यहां पर अनेक वर्गों, जातियों, धर्मों और मतमतांतरों के लोग बड़े ही सौहार्द्रपूर्वक रहते है। यहां की संस्कृति आत्मदीपोभव की भावना से प्रेरित है। हमारे आदर्श पुरुष भगवान राम, भगवान कृष्ण का जीवन चरित्र हमारे लिए प्रेरणास्रोत है। अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए भगवान राम ने राजसिंहासन त्यागकर वन गमन स्वीकार कर लिया।



 
इसी के साथ ही ‘न्यायार्थ अपने बंधु को भी दंड देना धर्म है’ यह भी हमारा आदर्श है। सम्पूर्ण महाभारत इसी गाथा की कहानी है। महाभारत में अर्जुन जब अपने कत्र्तव्य से भाई बंधुओं को देखकर विमुख हो रहे थे तो भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें उनके कत्र्तव्य का बोध दिलाया और कत्र्तव्य कर्म करने के लिए प्रेरित किया। हमारी संस्कृति में ‘जो जस करइ सो तस फल चाखा’ अर्थात् जो जेसा कर्म करता है उसे वैसा फल मिलता है यह सत्य है। यदि आदमी पुण्य कर्म करता है तो उसे पुण्य की प्राप्ति होती है, और यदि बुरा कर्म करता है तो उसे पाप का भागी बनना पड़ता है। इन आदर्श वाक्यों को जीवन में उतारते हुए भारत के सभी नागरिकों का यह परम कर्तव्य है कि वे सभी अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहे। अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे के पूरक है। (लेख में लेखक के अपने विचार हैं)