मज़दूर


कविता 


अमीरों को आती है
पसीने से बदबू
मज़दूर तो आज भी ख़ुद के
ख़ुद के पसीने से महकता है
ख़ुद के लिए दो रोटी जुटाने
से पहले
झोली अमीरों की भरता है
फिर भी अमीरों की रात
गुजरती चैन से  नहीं
डन लप के गद्दों पर भी
और मज़दूर ईंट के तकिए
पर सारी रात चैन से सोता है 



दीप्ति सक्सेना 
जयपुर (राज़)