(डे लाइफ डेस्क)
कोविड -19 का इलाज इंदौर में शायद छह माह की प्रायोगिक अवस्था के लिए तो ढूंढ लिया गया है। इस इलाज़ को प्लाज़्मा थेरेपी कहा जाता है। प्लाज़्मा मानव रक्त में पाया जाने वाला एक प्रदार्थ होता है, जो कोविड - 19 के संक्रमित मरीजों को चढ़ाए जाने की उच्च स्वीकृति इंदौर के अस्पतालों को मिल गई है। यह प्लाज़्मा उन मरीजों के रक्त से निकाला जाएगा जो कोविड - 19 की बीमारी से मुक्त हो चुके हैं। पूरे मध्यप्रदेश में फिलहाल इसके प्रयोग की योजना है, जिसकी स्वीकृति मेडिकल कॉउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च ( आई. सी. एम. आर. ) ने इंदौर के जग प्रसिद्ध महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज को दे दी है। प्लाज़्मा थेरेपी की हरी झंडी मिलने के तत्काल बाद उक्त कॉलेज में संबधित रक्त का दान लिया जाना प्रारंभ भी कर दिया गया है।
पहले प्लाज़्मा थेरेपी को समझ लिया जाए। विशेषज्ञों और डॉक्टर्स का कहना है कि जब किसी अनजान वायरस का मानव शरीर पर अटैक होता है तो उक्त शरीर एंटी बॉडी बनाने लगता है। ये एंटी बॉडी वायरस से लड़कर उसका खात्मा कर देती है। जो मरीज़ कोरोना को मात दे चुके है, उनमें इसी प्लाज़्मा को इंजेक्ट किया जाता है। यही प्रक्रिया बाकायदा मरीज को अस्पताल में भर्ती करके की जाती है और जब प्लाज़्मा इंजेक्शन के मार्फ़त कोरोना के रोगी के शरीर में जाता है तो उक्त वायरस को निष्प्रभावी बना देता है और मेरी कोरोना से स्वस्थ होने लगता है।अच्छी बात यह है कि उक्त थेरेपी को स्वस्थ हुए मरीज दूसरे संक्रमितों को प्लाज़्मा दान कर सकते है। प्लाज़्मा का यह परीक्षण प्रायोगिक अवस्था में फिलहाल रखी गई है और छह माह के दौरान इस थेरेपी में प्लाज़्मा दान कर चुके मरीज़ तथा इंजेक्ट किए जा चुके मरीज़ को गहन निगरानी में रखा जाएगा।
सबसे सुखद बात यह है कि इस लाइलाज मानी जा रही बीमारी पर प्लाज़्मा थेरेपी को अपनाने के चलते कुल 3 मरीज़ स्वस्थ करके घर भेजे जा चुके है , जिनके नाम है - अनीश जैन (23 वर्ष ) यह बंदा पांच दिन में ही स्वस्थ हो गया। दूसरी मरीज़ का नाम है प्रियल जैन ( 26 वर्ष ) यह युवती साठ प्रतिशत फेफड़ों से संक्रमित थी, जिसका संक्रमण प्लाज़्मा थेरेपी से 20 प्रतिशत रह गया है। इंदौर विकास प्राधिकरण के उच्च अधिकारी कपिलदेव भल्ला पर मात्र दो दिन बाद ही प्लाज़्मा थेरेपी कमाल दिखाने लगी और शरीर मे ऑक्सीजन की मात्रा का संतुलन भी ठीक होने लगा है तथा उन्हें घर भेज दिया गया है। इसी तरह पारुल जैन को भी इसी थेरेपी से 26 अप्रैल को घर भेज जा चुका है। इन सभी मरीज़ों को कोरोना संक्रमित डॉक्टरों ने रक्त दान किया था। खास बात यह है कि जिस अरविंदो अस्पताल से उक्त पेशेंट्स को डिस्चार्ज किया गया , उन्हें मिलाकर वहां से डिस्चार्ज होने वाले मरीजों की संख्या सौ से कुछ बाहर हो चुकी है। इस अस्पताल के चेस्ट एंड टीबी विभाग के अध्यक्ष डॉ. रवि डोसी का कहना है कि हमने चार मरीज़ों का ट्रायल किया था। इनमें से तीन को घर भेजा जा रहा है। हमें उम्मीद नहीं थी कि यह थेरेपी असर दिखाएगी, वह भी इतनी जल्दी। वैसे पहले इस थेरेपी पर केंद्रीय स्तर पर ना - नुकूर की गई थी, मगर फिर प्रयोग की मंजूरी मिल गई।
प्लाज़्मा इंजेक्ट करने के संबंध में डॉक्टर्स और विशेषज्ञों की राय है कि पहले शारीरिक जांच की जाएगी। फिर दो ब्लड सेंपल लेकर सम्पूर्ण जांच होगी। यदि रिपोर्ट संतोषजनक निकली तो डोनर को दूसरे दिन बुलाया जाएगा। आईसीएमआर द्वारा प्रत्येक रक्त दाता एक दान कोड दिया जाएगा। व्यक्ति से लिखित और मौखिक सहमति भी ली जाएगी, जिसकी ऑडियो वीडियो रिकॉर्डिंग की जाएगी। दाता को एकरेसिस मशीन जिसमें से रक्त से प्लाज़्मा निकाला जाता है, वहां ले जाकर उसके शरीर के रक्त में से तीन बार प्लाज़्मा निकालकर बचे हुए रक्त को वापस उसी व्यक्ति के शरीर में यही मशीन पहुंचाएगी। रक्तदाता के रक्त में से 500 मिलीमीटर प्लाज़्मा निकाला जा सकता है।
इस प्लाज़्मा को माइनस चालीस डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर सहेज कर रख लिया जाएगा। अंतिम चरण में जो कोरोना के मरीज है उन्हें इसे अस्पताल में भर्ती की दशा में इंजेक्ट किया जाएगा। कोरोना के इलाज़ में प्लाज़्मा थेरेपी को फिलहाल रामबाण औषधि, संजीवनी बूटी या अमृत तक माना जा रहा है। फिलहाल इसके तीस मरीज़ों को प्लाज़्मा चढ़ाने की अनुमति मिली है और आईसीएमआर को इसके सभी आंकड़ों से लगातार छह माह तक अवगत कराते रहना अनिवार्य है। यह अनुमति मिलते ही स्थानीय मेडिकल कॉलेज एक्शन मोड़ में आ गया और पहले प्लाज़्मा दानी बने ट्रेनी आईपीएस अधिकारी आदित्य मिश्रा। इस थेरेपी की अनुमति ग़ांधी मेडिकल कॉलेज को भी मिली है। जिस भी रोगी ने कोरोना को मात दी है वह इन अस्पतालों में ब्लड बैंक इंचार्ज से संपर्क करके प्लाज़्मा दान कर सकता है , मगर उसकी आयु 18 से अधिक तथा वजन पचपन किलो से अधिक होना ही चाहिए।
इंदौर के एमवायएच के ब्लड बैंक के इंचार्ज अशोक यादव का कहना है कि यह प्लाज़्मा परीक्षण देशभर में एक साथ चलेगा तथा तय आंकड़े को पार करने बाद आगे की अनुमति संबंधित विभाग से ली जाएगी। प्लाज़्मा कोरोना मरीज़ की दो निगेटिव रिपोर्ट भी जरूरी है। प्लाज़्मा दान करने वाले और प्लाज़्मा इंजेक्ट किए जाने वाले मरीज पर सतत निगरानी रखी जाएगी। डॉ. यादव का कहना है कि देश भर के परिणाम आईसीएमआर को भेजे जाएंगे। वहां विश्लेषण होगा कि कोरोना के इलाज में प्लाज़्मा थेरेपी कितनी और कहां तक कारगर है। (लेखक के अपने विचार है)
नवीन जैन, इंदौर