कविता
“ख़्वाबों" के शहंशाह हैं हम
"ख़्वाब" आने से पहले
हमसे पूछते हैं,
हम "ख्वाबों" को नहीं
“ख्वाब" हमको देखते हैं,
आप नींद में "ख़्वाब" देखना
हम वहां भी चले आएंगे ।।
आपके "ख़्वाबों" में हम "ख़्वाब"
अपने छोड़ कर चले आयेंगे,
आपके जिन ख़्वाबों में नहीं होंगे हम
उन "ख्वाबों" को हम आपकी
आंखों से चुरा लायेंगे,
फिर आप देख पायेंगे,
सिर्फ़ वही "ख़्वाब"
जो "ख़्वाब" हम आपको दिखायेंगे ।।
- तिलक़राज सक्सेना
जयपुर