डॉ. सरिता अग्रवाल के प्रेरणादायी जीवन को लेकर चितौड़ की लता अग्रवाल की खास बातचीत
(डे लाइफ डेस्क)
डॉ. सरिता अग्रवाल, आजकल अपने वैश्विक गुरु कमलेश पटेल (दाजी) के मार्गदर्शन में हार्टफुलनेस ध्यान पद्धति द्वारा ध्यान करना सिखाती हैं | इस पद्धति से ये तब जुडी थी, जब ये भारतीय सेना में कैपटन थी | कैपटन सरिता मेवाड़ की पहली महिला हैं, जिन्होंने भारतीय सेना में अधिकारी के रूप में कमिशन लिया, इसके लिए इन्हें मेवाड़ के महाराजा ने विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया | एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी इस चौथी बेटी ने जीवन की हर विषम परिस्थिति को अपने अनुकूल बना लिया | बनस्थली विद्यापीठ से एम.एस.सी. कंप्यूटर साइंस की उपाधि लेकर इन्होने आई.आई.टी. कानपुर में रिसर्च प्रोजेक्ट में कार्य किया, और इसी दौरान उनका सेना में चयन हो गया | शारीरिक रूप से बहुत दुर्बल, भावनात्मक रूप से अति संवेदनशील सरिता ने अपनी बुद्धिमता और इच्छा-शक्ति के बल पर 6 महीने का कठिन प्रशिक्षण सफलता पूर्वक पूरा किया और अपने परिवार का गौरव बन गयी |
5 वर्षों के अपने कार्यकाल में इनका हर क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन रहा, जिसके बाद इन्होंने गुजरात के छोटे से शहर में गाँव से आये विद्यार्थियों को पढ़ाने की चाह से एक BCA कॉलेज में कार्य किया और प्रेरणास्त्रोत बनी | इनके विद्यार्थी आज देश-विदेश में अच्छे पदों पर कार्यरत हैं | इसी दौरान घर की जिम्मेदारियों में सहयोग देते हुए इन्होंने अपनी बड़ी बहन की उच्च-शिक्षा और विवाह में योगदान दिया |
2006 में इनके इकलौते छोटे भाई की मृत्यु हो गयी, उस समय ये एक सॉफ्टवेयर कम्पनी में कार्यरत थीं और मुंबई में गंभीर रूप से अस्वस्थ थीं, लेकिन हिम्मत रखते हुए अपने माता-पिता को हौसला दिया और उन्हें भी आध्यात्मिकता से जोड़ दिया | आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों के कारण विवाह नहीं कर पाई |
अपने पिता के सहयोग और प्रेरणा से Information Security के क्षेत्र में Ph.D. की | इस दौरान ये दो बार तकनीकी चर्चा और विचार आदान-प्रदान हेतु स्पेन के विश्वविद्यालय गयी | इसी कार्यकाल में इनकी कमर में चोट लगने से इन्हें तीन महीने बिस्तर में रहना पड़ा | आत्म-बल कमजोर पड़ने लगा, किन्तु मित्रों और आध्यात्मिक प्रशिक्षण के बूते पर ये फिर उठी और अपनी Ph.D. पूरी करने की ठानी |
रिसर्च कार्य ख़तम होने को ही था कि पता चला कि इनकी वृद्ध माँ के दोनों गुर्दे ख़राब हो गए हैं | बड़ी बहनें थीं तो सहारा मिला रहा | हस्पताल में माँ के सिराहने बैठकर अपनी रिसर्च की आख़िरी रूपरेखा (final synopsis) के प्रस्तुतीकरण की तैयारी की और जयपुर से गुजरात वापस जाकर प्रस्तुति दी | उसके बाद 8 दिन तक माँ ICU में और अपनी बहन के साथ दिसंबर की भरी सर्दी में अस्पताल की गैलेरी में दिन-रात गुजरे | माँ चल बसी और उसी दर्द को दिल में दबाये, 3 महीने में thesis लिखी, जिसके लिए अमूमन 6 महीने का समय दिया जाता है |
Ph.D. के बाद एक नए सिरे से कैरियर की शुरुआत करने ही जा रही थी कि स्तन कैंसर ने आ घेरा | अपनी मौसेरी बहन और उसके परिवार के सहयोग से इंदौर में उपचार लिया | बीमारी ने उनके सर से बाल और शरीर की सुन्दरता भले ही छीन ली, लेकिन इनका आत्मबल और मुस्कान नहीं छीन पाई | उपचार के दौरान भी अपने भांजे द्वारा संचालित नशा मुक्ति और मनोचिकित्सा केंद्र में जाकर हार्टफुलनेस ध्यान सिखाया और रोगियों का मनोबल बढ़ाया | अपने आर्मी और इंडस्ट्री के अनुभव के आधार पर केंद्र की कार्यप्रणाली समझी और उसमें कुछ बेहतरी में सहयोग दिया |
अपनी गंभीर बीमारी से पूरी तरह से उबरने के इस समय में सरिता अपने वृद्ध पिता की देखभाल कर रही है, जिन्होंने हमेशा उसका मनोबल बढ़ाया और प्रोत्साहन दिया |
सरिता एक कवियत्री भी हैं | विद्यार्थी जीवन काल से ही किसी भी विषय पर तुरंत कविता लिख लेने की कला से इन्होंने सबका मन जीता और अपनी कविताओं से अपना और औरों का मनोबल बढ़ाया है | उनकी स्व-प्रेरणा ये पंक्तियाँ हैं – “जब जब भी डगमगाए कदम तेरे, और खोने लगे तू आत्मविश्वास, चट्टानों से लड़ सकती है याद रख, तेरा नाम ही है तेरी हर आस !”
आज भले ही सरिता के पास कोई राष्ट्रीय स्तर की उपलब्धि नहीं है, लेकिन, जीवन की कठिन से कठिन परीक्षा से सफल होकर निकली है और अपनी निश्छल मुस्कान, सद्भाव से अपने आस-पास सदा खुशियाँ बिखेरती रही है |
लता अग्रवाल
चितौड़गढ़