आज हमें बड़ा क्षोभ हो रहा था। आते ही तोताराम का कोर्ट मार्शल कर दिया- हद हो गई तोताराम, ये अमरीका वाले अपने आप को समझते क्या हैं। सब धान बाईस पंसेरी। न आदमी देखते हैं, न मौका। यहाँ हम हिलेरी के स्वागत को लेकर हिले जा रहे थे और इन्होंने हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान को ही हिला कर रख दिया। आतंकवादी तो सँभाले नहीं जाते और कलाम जैसे भले आदमी का जुलूस निकाल दिया। अरे, और कुछ नहीं तो कम से कम उनकी उम्र का तो ख्याल किया होता। छोटे-मोटे राजदूत के साथ भी ऐसा नहीं किया जाता। ये तो भारत के पूर्व राष्ट्रपति और संसार के आदरणीय वैज्ञानिक भी हैं।
तोताराम बोला- ज़्यादा उत्तेजित होने की आवश्यकता नहीं है। तूने तो ख़बर आज पढ़ी है पर यह घटना तो ठीक तीन महीने पुरानी है। तिस पर साहब ने कोई शिकायत भी नहीं की।
हमने कहा- यह तो कलाम साहब की सज्जनता है। वे उस दो पैसे के आदमी के क्या मुँह लगते। पर नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल को तो यह सूचना मिल गई थी कि एयर लाइन के अदने से कर्मचारी ने और वह भी कलाम साहब का परिचय मिलने पर भी उनकी तलाशी ली है फिर भी उन्होंने कार्यावाही नहीं की। इसका क्या मतलब है?
तोताराम ने हमें समझाया- देखो। ज़ल्दी का काम शैतान का होता है और अपने पटेल जी शैतान थोड़े ही हैं तिस पर प्रफुल्ल भी, इसलिए छोटी-मोटी घटनाओं से अपनी प्रफुल्लता को क्यों त्यागते। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि गुस्सा आए तो कोई कार्यवाही करने से पहले एक गिलास ठंडा पानी धीरे-धीरे पीओ या फिर दस तक गिनो। तलाक़ के मामले में भी कहा गया है कि तीन महीने का ब्रेक लगाओ, हो सकता है कि तुम्हारा निर्णय जल्दबाजी में हो और इस अवधि में तुम्हारा विचार बदल जाए। हो सकता है, पटेल साहब दस तक गिन रहे हों।
हमने कहा- क्या दस गिनने में तीन महीने लग जाते हैं?
तोताराम बोला- तीन महीने क्या तीस साल लग सकते हैं, देखते नहीं, पाकिस्तान को जवाब देने के लिए भारत की अब तक दस तक की गिनती कहाँ पूरी हुई। और फिर उस समय चुनाव भी तो चल रहे थे। बिना बात स्टेटमेंट देकर क्यों रिस्क लेते। क्या पता ऊँट किस करवट बैठता। यह तो मरे हिन्दी के एक अख़बार ने ख़बर उछाल दी वरना अब भी मामला दबा ही पड़ा था।
हमने कहा- लेकिन बात थी तो महत्वपूर्ण तभी तो सारा सदन एक साथ बोल पड़ा।
तोताराम ने कहा- सदन कोई एकमत नहीं है। यह तो एक प्रकार से संप्रग को लताड़ने का मौका मिल गया वरना जब अडवाणीजी और फर्नांडीज के कपड़े उतरवाए थे तब इनकी मर्दानगी कहाँ गई थी। अरे, जब लन्दन में गाँधी जी को कहा गया कि उन्हें ब्रिटेन के सम्राट से मिलने के लिए विशेष दरबारी पोशाक पहननी पड़ेगी तो गाँधी जी ने कहा कि यदि सम्राट इसी पोशाक में मिलना चाहते हैं तो ठीक है वरना मुझे मिलने में कोई रूचि नहीं है। और गाँधीजी अपनी उसी आधी धोती में सम्राट से मिले।
तोताराम बोलता चला गया - तेरी बात ठीक हो सकती है पर समय पर कोई कुछ बोले तो सही। सोमनाथ दादा ही अच्छे जिन्होंने आस्ट्रेलिया जाना छोड़ दिया पर तलाशी नहीं दी। और फिर भइया, अमरीकावाले बुश पर चलने के बाद सबसे ज़्यादा जूतों से ही डरे हुए हैं। अमरीका एक और जूते चलानेवाले अनेक - क्या ईराक, क्या अफगानिस्तान, क्या ईरान, क्या तालिबान।
और फिर कोंटीनेंटल एयर लाइन वाले ने माफ़ी माँग तो ली। वैसे आल इंडिया रेडियो ने तो इस माफ़ी का समाचार तक नहीं दिया और तू वैसे ही हलकान हुआ जा रहा है। (लेखन 2009/07/22) (लेख में लेखक के अपने विचार हैं)
पता : रमेश जोशी (वरिष्ठ व्यंग्यकार, संपादक 'विश्वा' अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, अमरीका)
आइडिया टावर के सामने, दुर्गादास कॉलोनी, कृषि उपज मंडी के पास, सीकर -332001
(मो० ) 9460155700]