(अन्तरराष्ट्रीय महिला-दिवस पर विशेष)
स्नेहा जावड़े
अपने अंदर की खुशबू से काम ले...
मन में खिलते हुए फूल का नाम ले...
उक्त पंक्तियों में आप सभी को एक महिला का चेहरा दिखेगा। इनकी व्यथा-कथा आप सुनेंगे तो पूरी संभावना है कि या तो आपको मुझ पर भरोसा न हो या फिर आपकी आँखों से बहता सैलाब न रूके। उक्त सैलाब महिला की एक ऐसी तस्वीर बना दे जो आपकी नजरों से शायद कभी गायब न हो इनका नाम है स्नेहा जावड़े। फिलहाल निवास मुंबई में लोन से लिए फ्लेट में। करीब 20 साल पहले स्नेहा का विवाह पूरी रीति-रिवाजों, भरपूर दहेज, अन्य घरेलू सामान, सोने और नकदी देकर बैंक अधिकारी पिता ने तब लातूर में तब एक मुंबई के एम.बी.ए. युवक से किया था। शादी के बाद इन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया। बेटा चार साल का भी नहीं हुआ था कि स्नेहा को बार-बार दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाने लगा। स्नेहा इसे सहती रही। इसके बाद आया एक खौफनाक मंजर।
पिछली 28 फरवरी (2020) को स्नेहा ने मुझे फोन पर लम्बे टेलिफोनिक इंटरव्यू में बताया कि लगातार मानसिक अत्याचारों के बाद एक दिन उसकी सास ने उस पर मिट्टी का तेल (घासलेट या रा केल) डालकर उसमें माचिस की जलती हुई तीली लगा दी थी। शरीर ऐसा धूं-धूं करके जलने लगा और किचन में खड़े चार वर्षीय पुत्र के मुँह से ऐसी चीख निकली कि स्नेहा उसे सुनकर स्नेहा बेहाश हो गई और फिर तीन दिनों तक आई.सी.यू. में रहीं। फिर डिस्चार्ज हुईं मगर करीब चालीस फीसद शरीर का खासकर ऊपरी हिस्सा जल चुका था और काले कोयले पड़े उक्त शरीर पर इतने टाँके लगे कि शायद डाक्टर भी गिनती भूल गए होंगे।
टाँकां की संख्या स्नेहा को भी ऐसे में मालूम नहीं रही स्नेहा पति, सास तथा बेटे के बारे में तो पता नहीं क्यों खुलकर नहीं बोलतीं, मगर उस घटना की याद दिलाती हैं कि जब लगभग 20 सर्जरी के बाद एक मर्तबा दस दिन के फासले से घर लौटीं तो उसे उसके घर के बाहर उसका सामान पड़ा मिला। पति ने 500 रू. का एक नोट फेंका और बेटे और अपनी माँ (सास) को लेकर चला गया। शायद स्नेहा के मन में तब भी भोलापन बैठा हुआ था, मगर देखती क्या है कि तीन-चार दिन बाद देहलीज पर खड़ा एक सरकारी आदमी तलाक का नोटिस लेकर, जो पति ने मनगढंत आरोपों के चलते माँगा था लेकर खड़ा हुआ है। स्नेहा बताती हैं कि उन पर मिट्टी का तेल डालकर जलाने की घटना मुंबई में उनके पति के गोरेगाँव उपनगर मं 24 दिसम्बर सन् 1977 को हुई थी।
लम्बे कानूनी दाँव-पेंच के बाद उन्हें तलाक मिल गया और उनके पति की कम्पनी ने उनके इलाज के लिए लगभग 19 लाख रूपए खर्च किए। उनके कई टाँकें तो निकाले जा चुके हैं, लेकिन जो बच गए हैं वे चीख-चीखकर उस दरिंदगी भरी घटना की याद दिलाते हैं। उन्हें पति और सास ने कोयले जैसा काला बनाने के बाद उनके पीहर के किसी व्यक्ति ने उनकी कोई सहायता नहीं की। कह दिया कि ब्याहता बेटी की तो अर्थी भी ससुराल से निकलती हैया तो तू वहीं रह या अपना गुजर-बसर खुद कर। स्नेहा को पिछले साल (2019) की तीन मार्च को इन्दौर के जैन श्वेताम्बर महिला संघ ने मेरी बेटी मेरी शान पुरस्कार से सम्मानित किया था।
स्नेहा कहती हैं कि इस तरह के दूसरे पुरस्कार भी उन्हें मिल चुके हैं, जिससे उनके भीतर जीने की उमंग फिर उठ खड़ी होती है, मगर ऐसे पुरस्कार की हौसला अफजाई भीड़ में बहुत जल्दी खोकर रह जाती है। उन्होंने इंटरव्यू के दौरान फूट-फूटकर मेरे द्वारा खासकर 40 साल की पीढ़ी से पूछा क्या हमें ससम्मान जीने का अधिकार नहीं है। मुझे जला दिया गया तो इसमें मेरा क्या गुनाह है। मेरे बदसूरत हो चुके शरीर पर लोग हँसते क्यों हैं। ऐसे लोग मुझे जीने क्यों नहीं देते । मैं तो कभी किसी से कोई सहायता माँगने नहीं गई। ऐसे में मुझे एक शेर याद आ रहा है यह कहाँ दिखाता है जख्म अपने पगले, यह तो नमक का शहर है। स्नेहा बहुत अच्छी मराठी और पुरअसर अंग्रेजी-हिन्दी बोलने में माहिर तथा डीएचडी तक की शिक्षा प्राप्त हैं। वे पति के साथ रहते कभी स्कूल में पढ़ा चुकी हैं।
उन्हें लातुर में जग-प्रसिद्ध समाज सेवी (नर्मदा घाटी परियोजना विरोधी) और मेगसेसे अवार्डी मेधा पाटकर लातूर के स्कूल में पुरस्कृत भी कर चुकी हैं। वे बार-बार कहती हैं कि यदि एसिड फेंकना दरिंदापन है तो मिट्टी का तेल फेंककर जलाना आखिर अपराध की किस श्रेणी में आता है। तलाक मिलने के बाद स्नेहा की मुलाकात कल्पना जावड़े से हुई। उन्होंने उन्हें टेरोकार्ड के आधार पर ज्योतिष-शास्त्र सिखाया। फिर इसी से संबंधित दूसरी विधाएँ भी सीखीं। स्नेहा बताती हैं कि वे रिलेशनशिप काऊंसलर भी हैं। इसी बीच उनकी मुलाकात समीर धर्माधिकारी (प्रसिद्ध अभिनेता) से हुई।
वे कहती हैं उन्होनं मेरी अचूक रीडिंग को देखते हुए मुझे कई क्लाइंट उपलब्ध कराए । मैं युवा शक्ति नामक संगठन के तहत युवा शक्ति नाम से ही एक चार पृष्ठीय अखबार भी निकालती हूँ जो हार्ड कापी और आन लाइन उपलब्ध हैं। जालना (ला इस जांबाज महिला को जिंदगी की हरेक दगाबाजी को जवाब देना आता है। यही कारण है कि उसने स्वप्ना भावना (प्रसिद्ध ड्रेस डिजाइनर) के साथ मिलकर अंतराष्ट्रीय चर्चित निर्भया काण्ड को केन्द्र में रखकर बनाए गए एक नाटक में काम किया, जिसके 80 प्रतिशत संवाद अंग्रेजी में हैं।
स्नेहा के अनुसार इस नाटक के प्रयोग भारत में कम, विदेशों में ज्यादा हो चुके हैं। स्नेहा टी.वी.शो और मराठी फिल्मों की स्क्रिप्ट राइटिंग भी करती हैं। स्नेहा सवाल उठाती हैं कि एसिड पीड़िताओं की वेदना को उठाना तो अच्छी बात हैं, मगर मेरी जैसी महिलाओं का क्या हो होगा। इसके खिलाफ तो काम-चलाऊ बयानों से काम चला लिया जाता है। स्नेहा के अनुसार कुछ दिनों पहले मराठवाड़ा के पास) मिट्टी के तेल से एक महिला को जलाकर कथित रूप से राख कर दिया गया। उन्हें महाराष्ट्र के विदर्भ में भी इसी तरह की घटना की खबर पिछले दिनों मिली थी।
स्नेहा का बच्चियों, युवतियों, महिलाओं को संदेश है कि वे भरपूर शिक्षा प्राप्त करें, हुनरमंद हों, स्वावलंबी बनें, कुरीतियों का पुरजोर विरोध करें। स्नेहा का मानना है कि लक्ष्मी तो चंचल होती है और इसीलिए आती-जाती रहती है, मगर शिक्षा या सरस्वती कभी आपसे पराई नहीं होती, साए की तरह साथ चलती रहती है। अतः पूर्ण शिक्षा ग्रहण करें, ताकि बुरा वक्त आने पर वे खुद उसके घेरे से बाहर आ सकें। और आखिर में दुआ करें कि ऐसी दसरी स्नेहा मुझे तो कम से कम न मिले और कोई इंटरव्यू न दे । स्नेहा को स्वास्थ्य की शुभकामनाएँ तथा आपका शुक्रिया। आगे कोई पाजिटिव स्टोरी के साथ, वादा रहा। (लेख में लेखक के अपने विचार हैं)
नवीन जैन
(इन्दौर)