जी हां ! यह प्रश्न हमारे समाज में बहुत विकराल रूप ले रहा है, जिंदगी हमें ईश्वर से मिली है, और जरूरतें हम प्रतिदिन जुटा रहे है और इन जरूरतों की भूख मिट ही नहीं रही है। यह कहाहाँ तक पहुँचेगी कुछ अन्दाजा नहीं है शायद जरूरतों की भी अपनी भूख है जो मिटती ही नहीं। हम यह कहे कि यह मन का ऐसा भाव है कि मानव बेबस है, वर्तमान समय में कुछ एक ऐसी घटनाएं पढ़ने सुनने में आ रही जो बेहद खौफनाक है, कुछ समय पहले की बात जिसे मैं स्वयं नहीं भूल पा रही हूँ।
एक परिवार जिनके पास आराम सुख, सुविधाओं भरी जिंदगी थी। पर कुछ बिजनेस में घाटा आ गया। कुछ और कारण आमदनी कम हो गई पर फ्लैट, गाड़ी और सारी सुख सुविधायें थी, एक बेटा आठवीं कक्षा का छात्र, और बेटी कालेज में आप समझ सकते है कि दोनों बच्चे बड़े ही है। वो जिंदगी को समझ सकते थे, पर अफसोस इनके माता, पिता ने बेटे का गला काटा और बेटी को गला दबा कर मार देते है, और खुद भी मौत को गले लगा लेते है। यह बहुत दुःखद और बहुत बड़ा प्रश्न है आज के समय का इस प्रश्न पे हमें बहुत गम्भीर होना है।
आज हमारे अन्दर एक जल्लाद जगने लगा है। अपने बच्चों को मारने के लिए हाथ कैसे उठे? प्रश्न उठता है कि एक बार के लिए वो नहीं जीना चाहते थे, पर बच्चे जो सब समझ सकते थे। अकेले जी भी सकते थे। उन्हें मारने की क्या वजह थी? इसके पीछे यही सोच की हमारे बाद बच्चों की सुख, सुविधाएं कम हो जाएंगी। यह कैसी सोच है? अब माँ, बाप के स्नेह का क्या स्वरूप है। यह प्रश्न आज के समय के माँ, बाप के लिए है। (यह लेखिका के अपने निजी विचार हैं)
लेखिका : ममता सिंह राठौर
(गाज़ियाबाद)