अलग-अलग होती है प्रत्येक व्यक्ति के लिए भाग्य की परिभाषा...!


किसी कन्या का विवाह अच्छे घर में हो जाये तो कहते है कि ये उसका भाग्य है। किसी को अच्छी जॉब मिल जाए, किसी की पदोन्नति हो जाये और टेस्ट में अंक सिर्फ उतने ही आये हो जितने की (cut off list ke) लिए आवश्यक हो तो ऐसे इंसान को लगता है कि ये उसका भाग्य ही था। जिसने साथ दिया। इसी तरह से अनेक घटनाएं है जिन्हें प्रत्येक व्यक्ति अपना भाग्य (मुकद्दर) ही मानता है।


मानव जन्म मिलने से पूर्व, मनुष्य जीवन प्राप्त करने के बाद, जीवन पर्यन्त, मरणोपरांत ये हम सबका भाग्य ही है। जो सदा हमारे साथ चलता है


और उसके अनुसार ही हम कर्म फल भोगते हैं। किन्तु मेरे विचार में सबसे बड़ा भाग्योदय तब होता है, जब हम अपना अहम् त्याग कर ईश्वर भक्ति में ही सच्चा सुख तलाश करते हैं, हम सब गृहस्थ हैं, पारिवारिक ज़िम्मेदारियों से मुख नहीं मोड़ सकते किन्तु इन ज़िम्मेदारियों के चलते ही जब अधिक समय ईश्वर की शरण में रहेंगे तो ईश्वर की कृपा भी अवश्य ही मिलती रहेगी।


वैसे तो ईश कृपा प्रत्येक प्राणी पर  है ही


जिसने भी इस धरती पर जन्म लिया है।


किन्तु जब हमें ईश्वर की परमसत्ता और उसके अस्तित्व का आभास होने लगे तो बस उसी क्षण से हमारा भाग्योदय भी होने लगता है। भाग्य की जीवन में अहम् भूमिका है, सभी कर्म, उपाय और सुख भी तभी प्राप्त होता हैं जब भाग्य साथ देता है। अन्यथा कुछ भी नहीं....!!


.....औषधि मणि मंत्राणां ....


.....नक्षत्र ग्रह तारिका....


.....भाग्यकाले भवेतसिद्धि...


.....अभाग्यम् निष्फलं भवेत्....।।


 


ज्योतिषाचार्या रश्मि चौधरी


कोटद्वार (Uttarakhand)


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