प्लास्टिक कचरा  जानलेवा बनता जा रहा है


हमारी सरकार ने राष्ट्रीय खेल दिवस यानी 29 अगस्त से पूरे देश में लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए 'फिट इंडिया मूवमेंट' के साथ ही प्लास्टिक के खतरों से आगाह करने का जन अभियान शुरू किया है। इसकी घोषणा हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने बीते माह अपने मन की बात कार्यक्रम के दौरान की थी। प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत का दो मोहन से नाता रहा है। एक सुदर्शन चक्रधारी श्रीकृष्ण और दूसरे चरखाधारी महात्मा गांधी। श्रीकृष्ण जगतगुरू के रूप में जाने जाते हैं तो महात्मा गांधी के जीवन से सेवाभाव की बात सदा जुड़ी रही है। इसलिए वह प्लास्टिक के खिलाफ महात्मा गांधी के जन्म दिवस आगामी दो अक्टूबर को इस नए जन आंदोलन की नींव रखेंगे। इस अभियान के समस्त कार्यक्रम प्लास्टिक जनित प्रदूषण की रोकथाम पर केन्द्रित होंगे। प्रधानमंत्री ने लोगों से अपील की है कि वे महात्मा गांधी की इस वर्ष 150वीं जयंती को भारत को प्लास्टिक से मुक्त बनाने के दिवस के रूप में मनाएं। साथ ही उन्होंने नगर निकायों, गैर सरकारी संगठनों और कारपोरेट सैक्टर का आह्वान किया कि वह प्लास्टिक कचरे का दीपावली से पहले निस्तारण करने के लिए आगे आये। उन्होंने स्वतंत्रता दिवस पर भी देश की जनता से एक ही बार प्रयोग होने वाले प्लास्टिक का प्रयोग बंद करने का आह्वान किया था। केन्द्र सरकार का यह प्रयास प्रशंसनीय ही नहीं सराहनीय भी है। लेकिन क्या यह कवायद पूर्व की भांति केवल रस्म अदायगी भर बन कर रह जायेगी। हालात तो यही गवाही देते हैं। 


असलियत यह है कि प्लास्टिक कचरे की समस्या से आज समूचा विश्व जूझ रहा है। इससे मानव ही नहीं बल्कि समूचा जीव-जंतु एवं पक्षी जगत प्रभावित है। यदि इस पर शीघ्र अंकुश नहीं लगाया गया तो आने वाले समय में स्थिति और विकराल हो जायेगी और तब उसका मुकाबला कर पाना टेड़ी खीर होगा। तात्पर्य यह कि उस समय प्राणी जगत यानी जीव-जंतुओं एवं पक्षियों का अस्तित्व ही समाप्ति के निकट होगा। देखा जाये तो आज प्लास्टिक कचरा पर्यावरण और जीव-जगत के लिए गंभीर खतरा बन चुका है। आस्ट्र्ेलिया की मर्डोक यूनीवर्सिटी और इटली की सीमा यूनीवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अध्ययन जो टेंड्स इन इकौलाॅजी एंड इवाल्युशन पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं, में चेतावनी देते हुए कहा गया है कि अतिसूक्ष्म प्लास्टिक के कण नुकसानदायक हो सकते हैं कारण इनमें जहरीले रसायन बहुतायत में होते हैं। हमारे समुद्र में विशेषकर बंगाल की खाड़ी जैसे प्रदूषित स्थलों में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक से मंता रे और व्हेल, शार्क जैसे विशालकाय समुद्री जीवों को खतरा अवष्यंभावी है। उनकी मानें तो अतिसूक्ष्म प्लास्टिक के कण एवं जहरीले पदार्थ तक जलीय जीवों की पहुंच के बीच निश्चित संबंध की पुष्टि होती रहती है। समुद्री पक्षियों और छोटी मछलियों में यह संबंध अधिकतर पाया गया है। ये मछलियां दूषित जल से सीधे-सीधे या दूषित शिकार से अप्रत्यक्ष रूप से सूक्ष्म प्लास्टिक को ग्रहण कर लेती हैं। 


असलियत है कि यह समुद्री नमक में भी जहर घोल रहा है। इससे मनुष्य के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव अवश्यंभावी है। कारण प्लास्टिक एक बार समुद्र में पहुंचने के बाद विषाक्त पदार्थों और प्रदूषकों के लिए चुम्बक बन जाते हैं। अध्ययन प्रमाण हैं कि अमरीका के लोग हर साल प्लास्टिक के 660 से अधिक कण निगल रहे हैं। धरती पर घास-फूस पर अपना जीवन निर्वाह करने वाले जीव-जंतु और समुद्री जीव-जंतु, मछलियां और पक्षी भी इससे अपनी जान गंवाने को विवश हैं।  इसमें दो राय नहीं कि दुनिया के तकरीब 90 फीसदी समुद्री जीव-जंतु-पक्षी किसी न किसी रूप में प्लास्टिक खा रहे हैं जो उनके लिए जानलेवा साबित हो रही है। यह प्लास्टिक प्लास्टिक के थैलों, बोतल के ढक्कनों और सिंथेटिक कपड़ों से निकले प्लास्टिक के धागे शहरी इलाकों से होकर सीवर और शहरी कचरे से बहकर नदियों के रास्ते समुद्र में आती है। समुद्री पक्षी प्लास्टिक की इन चमकदार वस्तुओं को खाने वाली चीज समझकर निगल लेते हैं। नतीजतन उन्हें आंत से सम्बंधित बीमारी होती है, बजन घटने लगता है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्दी ही समुद्र में किसी भी तरह से आ रहे प्लास्टिक पर रोक नहीं लगाई गई तो आगामी तीन दशकों में पक्षियों की बहुत बड़ी तादाद खतरे में पड़ जायेगी। आस्ट्र्ेलिया और न्यूजीलैंड के बीच का तस्मानिया सागर का इलाका इससे सर्वाधिक प्रभावित है। पीएनएएस जर्नल में प्रकाशित अमरीकी वैज्ञानिक एरिक वैन सेबाइल और क्रिस विलकाॅक्स के शोध के मुताबिक 1960 के दशक से लेकर अब तक समुद्र में पक्षियों के पेट में पाये जाने वाले प्लास्टिक की मात्रा दिनोंदिन तेजी से बढ़ रही है। 1960 में पक्षियों के आहार में यह केवल पांच फीसदी ही पायी गयी थी। 2050 में 99 फीसदी समुद्री पक्षियों के पेट में प्लास्टिक मिलने की संभावना होगी। यदि इसी तरह से समुद्र में प्लास्टिक फैंका जाता रहा तो 2050 तक यह 12 अरब मीट्र्कि टन का आंकड़ा पार कर जायेगा। चूंकि इसका जैविक क्षरण नहीं होता लिहाजा यह सच है कि आज पैदा कचरा आने वाले सैकड़ों साल तक हमारे साथ रहेगा।


हमारे देश में हर साल 56 लाख टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। 9205 टन प्लास्टिक रिसाईकिल किया जाता है। यही नहीं 6137 टन प्लास्टिक हर साल फैंकी जाती है। पूरे देश के हालात की बात तो दीगर है ,केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार देश के अकेले चार मेट्र्ो शहरों यथा- दिल्ली में 690 टन, चेन्नई में 429 टन, कोलकाता में 426 टन और मुम्बई में 408 टन प्लास्टिक कचरा हर रोज फैंका जाता है। देश की राजधानी दिल्ली में प्लास्टिक की थैली रखने पर पांच हजार रुपये जुर्माना देने की व्यवस्था है। एनजीटी के आदेशानुसार 50 माइक्रोन से भी कम मोटाई वाली प्लास्टिक की थैलियों के इस्तेमाल किये जाने प्रतिबंध है। इस तरह की प्रतिबंधित प्लास्टिक पाई जाने पर 5000 रुपये की पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति देनी होगी। एनजीटी ने आदेश के बावजूद पूरे राजधानी क्षेत्र में प्लास्टिक का अंधाधुंध इस्तेमाल जारी है। यह जानते हुए कि यह जलभराव और पानी को प्रदूषित करने का बड़ा कारण है। प्लास्टिक के इस्तेमाल से नाले बंद हो जाते हैं। जलभराव से डेंगू और चिकनगुनिया के मच्छर पनपते हैं लेकिन इसके बावजूद सरकार का मौन समझ से परे है।


गौरतलब है कि इस मामले में हमारा देश बांग्लादेश, आयरलैंड, आस्ट्रेलिया और फ्रांस से बहुत पीछे हैं। बांग्लादेश ने तो अपने यहां 2002 में ही प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया था। कारण वहां के नाले प्लास्टिक के चलते जाम हो गए थे। आयरलैंड ने प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल पर अपने यहां 90 फीसदी तक टैक्स लगा दिया । नतीजतन प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल में काफी कमी आयी। प्लास्टिक पर बंदिश के कारण मिले टैक्स से प्लास्टिक के रिसाइकिलिंग के काम में तेजी आयी। आस्ट्रेलिया में वहां की सरकार ने अपने देशवासियों से स्वेच्छा से प्लास्टिक के इस्तेमाल में कमी लाने काी अपील की। नतीजतन वहां इसके इस्तेमाल में 90 फीसदी की कमी आयी। फ्रांस ने अपने यहां इसके इस्तेमाल पर 2002 से पाबंदी लगाने का काम शुरू किया जो 2010 तक देश में पूरी तरह लागू हो गया। दुनिया में समय-समय पर हुए अध्ययन और शोधों ने यह साबित कर दिया है कि प्लास्टिक हमारे दैनंदिन इस्तेमाल के मामलों में हमारे समाज में बड़े पैमाने पर घुस चुका है। यह हर जगह है। इसने हमारे पर्यावरण में भी व्यापक रूप से पैठ बना ली है। बहरहाल अब यह निर्विवाद कटु सत्य है कि जब तक हम धरती पर प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम नहीं करते, तब तक समुद्र में प्लास्टिक की मात्रा के कम होने का सवाल ही नहीं है। समुद्र का प्रदूषण हमारी जीवन शैली का ही दुष्परिणाम है। इसके चलते समुद्री जीव-जंतु अकाल मौत के मुंह में जाने को विवश हैं। इसके लिए हम ही दोषी हैं। इसलिए हमें ही कुछ करना होगा।  इन हालात में हमें इसके उत्पादन, निस्तारण को लेकर गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा, साथ ही आने वाले खतरों के मद्देनजर प्लास्टिक रहित दुनिया के विषय में भी सोचना होगा। तभी कुछ बात बनेगी। इस दिशा में प्रधानमंत्री मोदी जी का कदम प्रशंसनीय है। वह कहां तक प्रभावी होगा, यह भविष्य के गर्भ में हैं।


ज्ञानेन्द्र रावत 
वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद्
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