दीवाने इश्क


 
तुमसे मिलना और बिछड़ना याद आता है।
चेहरे पे जुल्फों का उड़ना याद आता है।
मीठी मीठी सर्दियों की
हल्की हल्की धूप में
यू तेरा छत से गुजरना याद आता है।
पलको की पगडंडियों पे
शामियाने जीस्त के
हाथ थामे चल रहे थे
हम दीवाने इश्क के
नजरो से तेरा मुकरना याद आता है।
तुमसे मिलना और बिछड़ना याद आता है।
अब भी है वो पेड़
वो दालान भी
अब भी है वो दर वही
सामान भी
बस तेरा होकर न होना याद आता है।
तुझसे मिलना और बिछड़ना 
याद आता है।


लेखन : विजय लक्ष्मी जांगिड़ 'विजया'
जयपुर