उत्तर आघातीय तनाव विकृति (PTSD)

आज के दौर में स्टूडेंट, युवा, पारिवारिक महिला-पुरूष, दम्पत्ति, व्यापारी, नौकरीपेशा व्यक्ति या घर में बैठे बुजुर्ग अनचाही बीमारियों, डिप्रेशन एवं बढ़ती बीमारियों से इसके शिकार हो जाते हैं, और वे तनाव के चलते ना जाने कितनी असाध्य बीमारियों से भी ग्रसित हो जाते हैं। जिसे उत्तर आघातीय तनाव विकृति (Post Traumatic Stress Disorder) भी कहा जाता है। यदि हम सचेत और सावधान रहे तो इनसे बच सकते हैं। इस विषय पर हमने मनोविज्ञान की जानीमानी शख्सियत युवा डॉ. शिवाली मित्तल (क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट) से बातचीत की। प्रस्तुत है :
आजकल बढ़ते हुए तनाव, के प्रति व्यक्ति अपनी प्रतिक्रियाओं को इतना बढ़ा लेता है कि वह अपने अच्छे व्यवहार के प्रति कुंठित हो जाता है। वह अपने ही आवरण को ही एक घेरा बना लेता है जिसमें वह बाहर नही निकलना चाहता है तो आज हम इसी बात पर अपने विचार और उसके कारण व उपचार पर अपने दृष्टिकोण प्रस्तुत करेंगे।


उत्तर आधातीय तनाव विकृति
जैसा कि नाम सुनते ही लगता है कि आखिर यह किसी बीमारी का नाम है। यह एक ऐसी Anxiety disorder है, जिसकी उत्पति विभिन्न विभिन्न घटना (Specific event) से होती है। कुछ हालातों में तो यह विशिष्ट घटना (catastrophe) जैसे अकाल, भूकंप, बाढ़, युद्ध आदि से होता है, तो कुछ हालातों में विवाह-विच्छेद, प्रियजनों की मृत्यु, किसी को जान से मार देना, बलात्कार आदि से होता है, अगर ऐसी स्वाभाविक विशिष्ट घटना के बाद व्यक्ति में सावेगिक एव मनोवैज्ञानिक समस्याए उत्पन्न हो जाती है जो उसके व्यवहार को कुसमायोजित बना देता है तो इसे ही PTSD कहा जाता है। इसका प्रमुख कारण व्यक्ति न होकर विशिष्ट घटना है।


लक्षण 
व्यक्ति को अपने दिन-प्रतिदिन की जिंदगी में गंभीर तनाव से उत्पन्न मानसिक आघात (Trauma) की याद बार-बार आती है। यहा तक उस व्यक्ति को वह घटना नीदं व स्पन्न बार-बार याद आती है। व्यक्ति उन उद्दीपकों (Stimuli) से दूर भागने की कोशिश करता जो उसे मानसिक आघात उत्पन्न करते है।
व्यक्ति मे हमेशा उच्च स्तरीय उत्तेजन (Arousal) जैसे तनाव (Chronic Tension) तथा चिड़चिड़ापन का अनुभव होता है। साथ ही उसमें नींद की शिकायत हो जाती है तथा उसमें चिड़चिडापन का स्तर इतना बढ़ जाता है कि वह छोटी से छोटी बात को सहन नहीं कर पाता है। व्यक्ति से एकाग्रता (Concentration) की शिकायत हो जाती है। तथा स्मृति लोप (Amnesia) तीव्र हो जाती है। तथा दर्द संवेदनाओं के प्रति सुन्नता (Numbing) का गुण पाया जाता है।
व्यक्ति में Depression का स्तर बढ़ जाता है। वह धीरे-धीरे सामाजिक संपर्क से दूर होता जाता है।


कारण 
जैविक कारण  : इसमें मानसिक आघात (Traume) जो किसी तरह के तनाव या प्रतिबल का प्रतिफल है, से नारएड्रीनरजिक तंत्र (Nor adrenergic system) प्रभावित हो जाता है जिससे रक्त में नोरपाइनफाइन का स्तर बढ़ जाता है और व्यक्ति में उत्तेजक एवं आक्रामकता अधिक होती है।


जैविक कारण : कुछ मनोवैज्ञानिक कारक है जिनकी उपस्थिति मानसिक अध्ययन से व्यक्ति प्रभावित होता है, उसे PTSD की विकृति विकसित हो सकती है। जैसे माता-पिता से कम उम्र में ही बिछुड़ जाने पर दर्द विकृति एवं मनोग्रसित – बाध्यता विकृति तथा महिलाओं में मानसिक आघात होने पर PTSD के होने की संभावता अधिक बढ़ जाती है।


सामाजिक कारण : इसमें अधिक तीव्र एवं जान जाने वाली धमकीपूर्ण परिस्थितियों से PTSD के उत्पन्न होने की संभावना काफी तीव्र हो जाती है। जैसे युद्ध में सैनिको का घायल होना, तथा हत्या का दृष्य देखना, उस महिला में जिस पर बलात्कार (Rape) का प्रयास हो चुका हो, दैहिक रूप से आक्रमण होने पर या उस पर जानलेवा लैगिंक आक्रमता होती है तो उसमें भी PTSD की विकृति विकसित होने की संभावना तीव्र हो जाती है।


PTSD के निवारण एवं उपचार 
मानसिक आघात उत्पन्न होने के महीनों या सालों के बाद PTSD का लक्षण विकसित होना प्रारम्भ हो सकता है, परंतु अधिकतर केसेज में मानसिक आघात के कुछ ही दिना बाद कठिनाई प्रारंभ हो जाती है। PTSD के उपचार की दिषा मे पहले कुछ आपतकालीन उपाय (emergency measure) पर विचार किया जाता है, इस आपतकालीन उपायों में गहरी वैयक्तिक परामर्ष से लेकर सामूहिक परिचर्चा का सहारा लिया जाता है।


PTSD के उपचार में कुछ मनाट्रोपिक औषधी का भी उपयोग किया जाता है। विभिन्न तरह के (Anti anxiety drugs) तथा (Anti depressant drugs) का उपयोग करने पर PTSD के लक्षणों में कुछ कमी देखी गयी है। तथा पीड़ित व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक तरीके से कॉउंसलिंग भी की जाती है। व्यक्ति के साथ एक विश्वसनीय चिकित्सीय संबंध कायम करना, मानसिक आघात से निबटने की प्रक्रियाओं के बारे में व्यक्ति को शिक्षा देना, तनाव-प्रबंधन प्रशिक्षण मानसिक आघात को पुर्नअनुभव करने का साहस उत्पन्न करना, आदि तथा व्यक्ति को पारिवारिक माहौल अच्छा देना तथा उसको पूरी तरह से समझने की कोशिश करना तथा उसके साथ सामाजिक व्यवहार तथा व्यक्तिगत काउंसलिंग का होना जरूरी होता है। तथा व्यक्ति के साथ ग्रुप डिस्कशन ज्यादा से ज्यादा होना चाहिऐ। मनोवैज्ञानिक तरीके से पीड़ित व्यक्ति के मानसिक आघात को कम किया जा सकता एवं औषधी से भी इसको कम किया जा सकता है। लेकिन इसके साथ परिवार का माहौल परिवार का सहयोग, सामाजिक सहयोग, उस व्यक्ति से बार-बार बात करना इससे इंसान के मानसिक आघात को बहुत कम किया जा सकता है तथा उसके सही होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है। 
 
यदि आपकी भी कोई ऐसी समस्या हो तो आप इन्हें 9414543057 नम्बर पर कॉल करके सुझाव ले सकते हैं।