लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार यह कहते हुए नहीं थकते कि वे जन्मजात कांग्रेसी है और मरते दम तक इसी पार्टी में रहेंगे। लेकिन राज्य की राजनीति में जिस ढंग से वे अपने मोहरे चल रहे हैं उसको देखते हुए ये कयास लगाये जा रहे है कि अगर पार्टी ने जल्द ही उनको मुख्यमंत्री नहीं बनाया तो वे पाला बदल सकते है। पिछले कुछ महीनों से जिस ढंग से वे अपने आप को हिंदुत्व से जोड़ने की बात कर रहे है वे साफ संकेत देते है कि उनके कदम धीरे-धीरे बीजेपी की ओर बढ़ रहे है।
हाल ही में समाप्त हुए राज्य विधानसभा के मानसून स्तर में एक संदर्भ में उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दैनिक शाखायों में की जाने वाली प्रार्थना की पहलली दो पंक्तियों “नमस्ते सदा वत्सले मात्रभूमे” को पढ़ा तथा कहा कि वे इस प्रार्थना को पूरी तरह से जानते है। हालाँकि इसको लेकर उन्हीं के पार्टी के सदस्यों ने आपत्ति दर्ज करवाई लेकिन उनके भाषण का यह अंश सदन की कार्यवाही से नहीं निकाला गया। पिछले कुछ समय से वे यह दोहराते रहे है कि भले ही वे कांग्रेस में हैं लेकिन अपने आप को पहले हिन्दू समझते है। कुछ महीने पहले जब प्रयाग में महाकुंभ चल रहा था तो भाग लेने गए। इससे वे स्थानीय समाचारों की सुर्ख़ियों में आये थे। उन्होंने संगम में स्नान करने की तस्वीरें खुद सोशल मीडिया पर डाली भी थी। मोटे तौर पर कांग्रेस के सभी बड़े नेता महाकुम्भ से दूर रहे थे क्योंकि वे मानते थे कि यह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ का आयोजन है। केवल कुछ दिन पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेंगलुरु में मेट्रो की नई लाइन का उदघाटन करने गए तो शिव कुमार उनके साथ रहे। उन्होंने भेंट के रूप में गणेश की एक सुंदर प्रतिमा भी उन्हें दी।
शिवकुमार उप मुख्यमंत्री के साथ साथ प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी है। उन्हें 2023 विधानसभा चुनावों से कुछ समय पूर्व यह जिम्मेदारी दी गई थी। इन चुनावों में कांग्रेस पार्टी बड़े बहुमत से सत्ता आई थी। इस जीत का श्रेय आमतौर पर उन्हें ही दिया जाता है। उनको लगता था कि इस बार मुख्यमंत्री का पद उन्हें ही मिलेगा। लेकिन पार्टी ने सिद्धारामिया को फिर से राज्य का मुख्यमंत्री बनाना तय किया। शिवकुमार को उप मुख्यमंत्री का पद दिया गया। यह भी तय हुआ शिवकुमार 2024 के लोकसभा चुनाव होने तक राज्य पार्टी के अध्यक्ष भी बने रहेंगे। उस समय ये संकेत दिए गए थे कि ढाई साल बाद उनको राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया जायेगा। सिद्धारामिया का ढाई साल का कार्यकाल इस साल के अंत में खत्म हो रहा है। शिवकुमार और उनके समर्थक पिछले कुछ महीनों से इस पद के लिए मुहीम चलाये हुए है। उधर सिद्धरामिया का दावा है कि चुनावों के बाद इस तरह की कोई सहमति नहीं बनी थी तथा वे अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे। जब दोनों के बीच झगडा खुल कर सामने आ गया तो पार्टी आला कमान ने दोनों पक्षों को चुप रहने के लिए कहा।
कुछ समय पहले शिव कुमार ने बिना किसी संदर्भ के यह यह कहा था कि उनके पास “बहुत विकल्प है”। तभी से यह चर्चा चल पडी कि वे पाला बदल कर बीजेपी में जा सकते है। कांग्रेस पार्टी के 135 विधायकों में से शिव कुमार के साथ एक बड़ी संख्या है। 225 के सदन में बीजेपी के पास 70 सदस्य है इसलिए दोनों मिलकर सरकार बना सकते है। ऐसी स्थिति में मुख्यमंत्री का पद शिवकुमार को मिल सकता है। राज्य की राजनीति के जानकारों का मानना है कुछ समय पूर्व महाराष्ट्र में हुए घटना क्रम को कर्नाटक में भी दोहराया जा सकता है। उस समय शिव सेना के नेता एकनाथ शिंदे ने अपनी पार्टी से बगावत की थी। तब राज्य राज्य में उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी।
हालाँकि के उनके पास बीजेपी की तुलना में आधे विधायक थे पर बीजेपी उनको मुख्यमंत्री का पद देने को राजी हो गई थी। लगभग एक दशक पूर्व असम में भी हुआ था। उसे समय राज्य में कांग्रेस की सरकार थी और केशव गोगोई राज्य के मुख्यमंत्री थे। उस समय हेमंत बिस्वा सरमा, जो दूसरे नंबर बड़े नेता थे, मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। लेकिन गोगोई पद छोड़ने को तैयार नहीं थे। इसके चलते सरमा ने पार्टी से बगावत कर बीजेपी के साथ हो गए। बीजेपी ने उनको मुख्यमंत्री के पद से नवाजा। इस समय वे उत्तर पूर्व के राज्यों में बीजेपी के सबसे बड़े है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है )