अब मोदी जी ने वोट पाने के लिए नया अभियान शुरू किया है। 9 जून से घर-घर सिंदूर बांटा जाएगा। मोदी जी को सिंदूर का महत्व पता नहीं है। क्योंकि पारिवारिक जीवन से उनका लेना देना नहीं है।
भारत के हर घर में कुछ हो ना हो सिंदूर की डिब्बी तो जरूर मिल जाएगी। रमजान के महीने में मुस्लिम भाइयों को ईदी बांटी गई। बहुत खुशी की बात है लेकिन असल मकसद कुर्सी बनी रहे और मुस्लिम भाइयों का वोट बैंक भी इनको मिल जाए। सिंदूर बांटो या रमजान में ईदी बांटो पैसा तो देश की जनता का है उनके क्या फर्क पड़ता है। ये सब करने की बजाय अपने व्यक्तित्व को इतना दबंग बनाएं की किसी विदेशी ताकत अमेरिका की हिम्मत ना हो कि पाकिस्तान और भारत के युद्ध के सीजफायर की घोषणा वह अपनी जमीन से करें। तीन दिन के युद्ध में मोदी जी ने ऐसे भाषण दिए की मानो सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह की जगह मोर्चे पर खुद फायरिंग करके आए हो। यह देश के पहले प्रधानमंत्री है जिनको विदेशी यात्राओं से फुर्सत नहीं है। नतीजा क्या रहा? युद्ध के समय भारत के साथ कितने देश खड़े थे ?
पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने द्वारका जाकर समुद्र के अंदर की द्वारकापूरी को देखा होगा। जब तक सत्ता है जितने शौक पूरे कर सकते हो कर लो। लेकिन अब इतने मीठे मीठे और लंबे भाषणों से जनता ऊब चुकी है। और सच्चाई भी जान चुकी है। पहले प्रधानमंत्री है जो "मन की बात" करते है उस पर करोड़ों रुपया खर्च होता है। पैसा जनता का है। जनता ने उनके मन की बात सुनने के लिए प्रधानमंत्री नही बनाया था। अपने मन बात करने के लिए प्रधानमंत्री बनाया। खुद को फकीर कहते है पर सबसे खर्चीले प्रधानमंत्री हैं। करोड़ों रुपए की परियोजनाए बनाते हैं इनका गरीब व आम व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं है। गरीबों को रोजगार और पेट भर के रोटी खाने को चाहिए। घर-घर सिंदूर अभियान को स्थगित कर दे। यह भारतीय महिलाओं का अपमान है और जो घर-घर सिंदूर देने जाएगा उसका भी अपमान होगा। क्यों देश का पैसा, समय और मानव संसाधन बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। इससे महिलाए बहकावे में नहीं आएगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)
लेखिका : लता अग्रवाल चित्तौड़गढ़।