लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।
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पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा सिंधु जल समझौते का स्थगन पाकिस्तान को अब भारी पड़ने लगा है। दरअसल पाकिस्तान के साथ सीजफायर के फैसले के बाद सैन्य अभियान तो रुक गया लेकिन पहलगाम के आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा पाकिस्तान को लेकर लिए गये तमाम फैसले और प्रतिबंध यथावत लागू रहेंगे। इनमें सिंधु जल समझौते को स्थगित करने, निर्यात और वीजा पर रोक तथा राजनयिकों की कमी जैसे फैसले शामिल हैं। वह बात दीगर है कि सीजफायर के बाद पाकिस्तान को भारत के प्रतिकारी एवं प्रभावी सैन्य अभियान से भले राहत मिल गयी हो लेकिन उसकी मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। सबसे बडी़ दिक्कत तो सिंधु जल समझौते के स्थगन को लेकर है। इसमें अहम सवाल यह है कि भारत नदियों में अपनी इच्छानुसार ही पानी छोडे़गा और रोकेगा। यहां इस सच्चाई से मुंह नहीं मोडा़ जा सकता कि सिंधु जल समझौते के तहत सिंधु बेसिन की तीन प्रमुख नदियों यथा झेलम,चिनाव और सिंधु का 80 फीसदी पानी पाकिस्तान को मिलता था। जबकि भारत को सिंधु और उसकी सहायक नदियों से मात्र 19.5 फीसदी पानी मिलता था। यहां यह जान लेना जरूरी है कि भारत अपने हिस्से में से भी 90 फीसदी ही पानी इस्तेमाल करता है। समझौते के स्थगन के बाद भारत ने यह पानी रोक दिया। साथ ही भारत के बांधों में पानी बढ़ने पर उसे बिना पूर्व सूचना के छोड़ना शुरू कर दिया।
असलियत में पाकिस्तान की खेती, पीने के पानी के साथ उसकी अर्थ व्यवस्था का एक बडा़ हिस्सा सिंधु बेसिन से आने वाली नदियों से जुडा़ है। सिंधु बेसिन की पाकिस्तान में जाने वाली छह प्रमुख नदियों में तीन पूर्वी प्रवाह वाली सतलुज,ब्यास और रावी तथा तीन पश्चिमी प्रवाह वाली हैं। पश्चिमी प्रवाह वाली तीन नदियों झेलम, चिनाव और सिंधु का अधिकांश जल पाकिस्तान को मिलता था लेकिन सिंधु जल समझौते के स्थगित होने के बाद अब भारत न केवल इन तीन नदियों के पानी को रोक रहा है बल्कि कभी भी बिना सूचना दिए छोड़ भी रहा है। नतीजन इससे पाकिस्तान के खेती के साथ-साथ उसके दूसरे कामकाज बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। हकीकत तो यह है कि इससे पाकिस्तान के हालात दिनोंदिन बिगड़ने लगे हैं। देखा जाये तो भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ सीमा पर संघर्ष विराम का जो निर्णय लिया है,उसके बहुतेरे अंतरराष्ट्रीय कारण हैं। यह स्थिति चूंकि पाकिस्तान द्वारा लाई गयी थी, इसलिए इस मसले पर पाकिस्तान के पीछे हटने पर भारत को सीजफायर मानना पडा़। वह बात दीगर है कि अब भारत सिंधु जल समझौते को स्थगित करने से मिली अनुकूल परिस्थितियों का लाभ उठायेगा जो स्वाभाविक भी है। इसमें दो राय नहीं है। फिर भारत यह स्पष्ट कर चुका है कि आपरेशन सिंदूर केवल स्थगित किया गया है,खत्म नहीं। प्रधानमंत्री मोदी भी यह साफ कर चुके हैं कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकता। इससे यह साफ है कि भारत सरकार फिलहाल सिंधु जल समझौता बहाल करने को तैयार नहीं है।
यहां गौरतलब है कि इस दौरान पाकिस्तान ने इस मुद्दे को विश्व बैंक ले जाने का प्रयास किया था लेकिन वहां पाकिस्तानन को मुंह की खानी पडी़ है। हकीकत में विश्व बैंक ने इस मसले पर पाकिस्तान को गहरा झटका देते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि विश्व बैंक इस मसले में एक मध्यस्थ की भूमिका में था। इसके आगे विश्व बैंक की कोई भूमिका नहीं है। इसके बाद अब पाकिस्तान इस मसले को संयुक्त राष्ट्र ले जाने की तैयारी में लगा है। इस बारे में भारत यह स्पष्ट कर चुका है कि उसने समझौते के प्रारुप के तहत ही समझौते के स्थगन का कदम उठाया है। जबकि पाकिस्तान का इस संदर्भ में कहना है कि अगर सिंधु जल समझौते को भारत द्वारा खत्म किया जाता है और उसकी तरफ आने वाले पानी को रोका जाता है तो वह इसे युद्ध मानेगा और अपनी ओर से हरसंभव पूरी ताकत से इसका विरोध करेगा। यहां इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता और यह विचार का विषय भी है कि एक ओर पाकिस्तान इस मुद्दे का पुरजोर विरोध करने की बात कर रहा है,वहीं वह भारत सरकार के जलशक्ति मंत्रालय से समझौते के स्थगन के फैसले पर पुनर्विचार करने की गुहार भी लगा रहा है। यही नहीं पाकिस्तान सिंधु जल संधि पर अब भारत से सीधे बातचीत के लिए भी तैयार है। पाकिस्तान के जल संसाधन सचिव सैय्यद अली मुर्तजा ने इस बाबत संकेत भी दिये हैं।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी दिल्ली की दीर्घकालीन चिंताओं पर चर्चा करने के इच्छुक हैं। पाकिस्तान के अनुरोध पत्र को भारतीय जलशक्ति मंत्रालय ने इस समझौते के लिए अधिकृत विदेश मंत्रालय को भेजा जिस पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने कह दिया है कि इस मुद्दे पर पुनर्विचार का सवाल ही नहीं उठता। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के अनुसार यह संधि सद्भावना और मित्रता की भावना में हुयी थी लेकिन पाकिस्तान ने सीमापार आतंकवाद को बढा़वा देकर उन सिद्धांतों को ही तार-तार कर दिया। भारत अब इन तीन नदियों के पानी को अपने लिए इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है। इस पर काम भी जारी है। साथ ही मध्यकालिक और दीर्घकालिक योजनाओं को भी अंतिम रूप दिया जा रहा है। भारत और पाकिस्तान के बीच भले चर्चाओं की बाबत पाकिस्तान की पेशकश की बात की जा रही हो लेकिन हकीकत यह है कि मौजूदा हालात में भारत की स्थिति में बदलाव की कोई उम्मीद नहीं है। भारत सरकार के जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत भी कह चुके हैं कि सिंधु जल संधि के मामले में भारत के हितों के साथ खिलवाड़ नहीं किया जायेगा और भारत के हिससे की एक- एक बूंद भारत में ही रहेगी। उसे किसी को देने का सवाल ही नहीं उठता।
गौरतलब है कि सिंधु जल समझौता स्थगित होने से देश को काफी लाभ होगा। इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता। समझौता स्थगन के दौर में भारत सिंधु बेसिन के तहत आने वाली छह नदियों का पानी अपने हिसाब से इस्तेमाल करेगा। पाकिस्तान को आवश्यक पानी देने की प्रतिबद्धता समाप्त होने के बाद भारत में जम्मू काश्मीर, हरियाणा,पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश को अपनी खेती और पेयजल के अलावा दूसरी जरूरतों को पूरा करने हेतु ज्यादा पानी मिलेगा। रावी, ब्यास और सतलुज के इस पानी का लाभ समझौते के स्थगन के मौजूदा हालात में इन राज्यों को वर्तमान में मिल भी रहा है। राजस्थान की इंदिरा गांधी नहर में भी इस समय पानी की आवक बढ़ गयी है। इसके साथ ही हरियाणा और पंजाब के बीच बरसों से जारी जल विवाद भी थम जायेगा क्योंकि उस हालत में किसी भी राज्य में पानी की दिक्कत नहीं होगी।
फिर उत्तर भारत में ज्यादा पानी मिलने से भाखडा़ सहित विभिन्न बांधों में बिजली उत्पादन में भी खासी बढो़तरी होगी। इससे बिजली की कमी भी दूर होगी। सबसे बडी़ बात सिंधु जल समझौता स्थगन से पाकिस्तान में संकट बढे़गा जो स्थिति के अनुकूल न होने पर विकराल रूप धारण कर लेगा। उसकी बहुत बडी़ आबादी के लिए पेयजल संकट भयावह रूप धारण कर लेगा। क्योंकि दूसरे मुद्दों को यदि छोड़ भी दें तो पानी इतना बडा़ मुद्दा है जो पाकिस्तान को कुछ ही महीनों में भारत के आगे घुटने टेकने को मजबूर कर देगा। उसे भारत के इस बाबत फैसले की तपिश अभी से महसूस होने लगी है, वह बेचैन है और घबराया हुआ है। कारण भारत ने पाकिस्तान को जाने वाले पानी को नियंत्रित करने के साथ ही नदियों से संबंधित डाटा भी साझा करना बंद कर दिया है।जबकि प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्र के नाम अपने संदेश में स्पष्ट कर चुके हैं कि 1965, 1971 और कारगिल युद्ध के बावजूद भारत ने सिंधु जल संधि का सम्मान किया लेकिन अब भारत इस पर कोई समझौता नहीं करेगा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)