युद्ध से बुद्ध तक
लेखक : वेद व्यासगीतकार साहित्य मनीषी एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं
www.daylife.page
रक्त किरणों से नहाये, दूधिया आंगन
लिख रहा है शक्ति से इतिहास युग का मन।
जंग से जो ज़िंदगी के क्रम बदलते हैं
सत्य के संदर्भ जिनको मिल नहीं पाते
एक झूठे दंभ के परिवेश में घुटकर
आस्था के द्वार तक जो चल नहीं पाते।
मृत्यु की परछाइयों से रेंगते लघु तन
लिख रहा है शक्ति से इतिहास युग का मन।
हर नये संघर्ष से विष बीज जो बोते
दृष्टि जिनकी भावना को छू नहीं पाती
बांधते हैं जो दिशाओं को अंधेरे से
पांखुरी उनके ह्रदय को छल नहीं पाती।
टूटता है सृष्टि का विस्तार हर इक क्षण
लिख रहा है शक्ति से इतिहास युग का मन।
युद्ध को हम और अब जीने नहीं देंगे
फिर चुनौती है हमारी, झूठ के बल को
यूं नहीं उड़ पायेंगे, बारूद के बादल
मान्यता देंगे नहीं हम, ध्वंस के कल को।
ज्योति रेखा से लिखेंगे, एक उद्बोधन
राष्ट्र मरता है नहीं, जागा जहां जन-मन।
जो अमन के जागते स्वर सुन नहीं पाते
हम उन्हें संकल्प का अवसर देते हैं
फिर नये आक्रोश से जागा अगर दानव
हम उसे युग की नई ललकार देते हैं।
एकता के सूत्र में जय भारती के प्रण
सत्य की रक्षा करेगा, देश का हर कण।