'साहित्य वाचस्पति' से सम्मानित किये गये पद्मश्री डा. विजय दत्त श्रीधर

 हिन्दी साहित्य जगत के सर्वोच्च सम्मान 


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आणंद (गुजरात)। भारत में हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि के व्यापक प्रचार और प्रसार के उद्देश्य से स्थापित हिन्दी साहित्य सम्मेलन,प्रयाग के 76वें अधिवेशन में बीती 23 मार्च को गुजरात के आणंद में माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान, भोपाल के संस्थापक- संयोजक प्रख्यात पत्रकार 'पद्मश्री' सम्मान से विभूषित डा. विजयदत्त श्रीधर को हिन्दी जगत के  सर्वोच्च सम्मान 'साहित्य वाचस्पति' से सम्मानित किया गया है| श्रीयुत श्रीधर को यह सम्मान यहां वल्लभ विद्यानगर स्थित सरदार पटेल विश्वविद्यालय के सभागार में प्रदान किया गया। डा. श्रीधर के साथ यह सम्मान संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान एवं पूर्व कुलपति 'अभिराज' राजेन्द्र मिश्र और सरदार पटेल विश्वविद्यालय के कुलपति निरंजन कुमार पूरनचंद पटेल को भी प्रदान किया गया।

उक्त सम्मान हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति आचार्य सूर्यप्रसाद दीक्षित और सम्मेलन के प्रधानमंत्री कुंतक मिश्र ने प्रदान किया। सम्मान के पूर्व डा श्रीधर  की प्रशस्ति का वाचन हुआ जिसमें पत्रकारिता और साहित्य में उनके महत्वपूर्ण योगदान का जिक्र किया गया।

डा. विजय दत्त श्रीधर ने सम्मानित होने के बाद उपस्थित विद्वानों, अधिवेशन के प्रतिनिधियों और प्रबुद्ध जनों को सम्बोधित किया। अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा कि सम्मेलन के जिस मंच पर खड़ा होना सौभाग्य का विषय हुआ करता है, वहां सम्मानित होना मेरे लिए गौरव की बात है। उन्होंने कहा कि आज आवश्यकता इस बात की है कि समय रहते महत्वपूर्ण संगठनों में समय रहते युवा नेतृत्व को सामने लाया जाये। सम्मेलन में डा श्रीधर को राष्ट्रभाषा परिषद के सभापति का  दायित्व भी सौंपा गया। ज्ञातव्य है कि सम्मेलन के इस सत्र के सभापति का दायित्व निभाने वालों में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भी रहे हैं| इसी तरह साहित्य वाचस्पति की मानद उपाधि ग्रहण करने वालों में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित मदन मोहन मालवीय, माधव राव सप्रे और श्री कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी जैसी विभूतियां भी शामिल रहीं हैं।

दरअसल हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग की स्थापना महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में सन 1910 में हुयी।  राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन सम्मेलन के प्रधानमंत्री थे। महात्मा गांधी, डा. राजेन्द्र प्रसाद, गणेश शंकर विद्यार्थी आदि महापुरुषों ने सम्मेलन की अध्यक्षता कर उसके उद्देश्यों को शरीयत और गौरव प्रदान किया। मध्य प्रदेश के महापुरुषों में विष्णु दत्त शुक्ल, माधव राव स्प्रे, माखनलाल चतुर्वेदी, सेठ गोविन्द दास ने भी सम्मेलन के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। 

पूर्व में पत्रकारिता इतिहास के गहन अध्येता और भारतीय भाषा सत्याग्रह के सूत्रधार डा. विजयदत्त श्रीधर  को 2011 में भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, 2012 में पद्मश्री, 2013 में मध्य फ्रदेश का महर्षि वेदव्यास सम्मान, 2015 में छत्तीसगढ़ का माधवराव सप्रे राष्ट्रीय रचनात्मकता सम्मान से सम्मानित किया गया है। भारतीय पत्रकारिता कोश, पहला संपादकीय, माधवराव सप्रे रचना संचयन, समकालीन हिन्दी पत्रकारिता, विश्ववंधु गांधी, एक भारतीय आत्मा, संपादकाचार्य नारायण दत्त और कर्मवीर के सौ साल आपकी बहुपठित पुस्तकें हैं। 1981 से आप पत्रकारिता एवं जनसंचार और विज्ञान संचार  की शोध पत्रिका आंचलिक पत्रकार का संपादन कर रहे हैं। आप 2005 से 2010 तक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्व विद्यालय में शोध निदेशक रहे हैं। 

'अपनी भाषा पर अभिमान, सब भाषाओं का सम्मान,' की भाव भूमि पर केन्द्रित भारतीय भाषा सत्याग्रह के अंतर्गत तीन आयामों पर आप मध्य प्रदेश में एक विस्तृत टीम के साथ कार्यरत हैं। पहला आयाम है 'हिन्दी और समृद्ध लोकभाषाएं', दूसरा आयाम है 'हिन्दी और समुन्नत भारतीय भाषाएं',  तीसरा आयाम है 'हिन्दी और प्रमुख विश्व भाषाएं', भारतीय भाषा सत्याग्रह परस्पर स्वीकार्यता पर आधारित सकारात्मक अनुष्ठान है। इस विषय पर भी विजयदत्त श्रीधर ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के आणंद अधिवेशन में प्रस्ताव प्रस्तुत किया है जिसकी सर्वत्र सराहना हो रही है। यहां इस बात का उल्लेख करना आवश्यक होगा कि वर्तमान में भारतीय भाषा सत्याग्रह के मार्गदर्शक की भूमिका आचार्य डा सूर्य प्रसाद दीक्षित और आचार्य डा. रामाश्रय रत्नेश निभा रहे हैं। डा. विजयदत्त श्रीधर जी को साहित्य वाचस्पति सम्मान मिलने पर समूचा हिन्दी साहित्य जगत जहां गौरवान्वित है, वहीं पत्रकार जगत इस सम्मान से हर्षित है, प्रफुल्लित है और डा. श्रीधर को इस हेतु शत शत बधाई देता है। देश के पत्रकारों का मानना है कि डा. श्रीधर का सम्मान वास्तव में देश की पत्रकारिता के उन मूल्यों और परंपराओं का सम्मान है जिनका मान डा. श्रीधर ने अपने जीवन में सदैव रखने का काम किया है।