नेताओं को देशहित के लिए जनता चुनती है। लेकिन नेता अपने पद की गरिमा के साथ-साथ लोकतंत्र के मंदिर की गरिमा का भी अपमान करते है। अगर जाने अनजाने किसी भी दल का कोई सदस्य अगर एक शब्द भी गलत बोल जाता है तो दूसरे दल उसे अपनी प्रतिष्ठा का मामला बनाकर हंगामा करते रहते हैं। इंदिरा गांधी को दादी कहने पर चार-पांच रोज से विधानसभा की कार्रवाई सुचारू रूप से नहीं चल रही है। इतना हंगामा हुआ कि सदन को चार बार स्थगित करना पड़ा।
आरोप प्रत्यारोप की राजनीति की जा रही है। आम जनता की खून पसीने की कमाई को बर्बाद किया जा रहा है। देश के विकास व हित के कोई मायने नहीं रह गए हैं। नेता अपने पद व सदन की गरिमा को बनाए रखें लोकसभा व विधानसभा की कार्रवाई को बाधित न करें। सत्ता पक्ष व विपक्ष मिलकर आपस में विचार विमर्श की शैली अपनाए तो हर समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।
लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)।