"भारतीय शास्त्रीय संगीत में लहरा-वादन" का विमोचन

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जयपुर।  "30वें अखिल भारतीय ध्रुवपद-नाद-निनाद विरासत समारोह" स्थान - राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर, झालाना डूंगरी, जयपुर में मोहन नायक द्वारा लिखित पुस्तक "भारतीय शास्त्रीय संगीत में लहरा-वादन" का विमोचन गुरुजन एवं विभिन्न विद्वतजनों द्वारा किया गया । 

इस पुस्तक का प्रतिपाद्य अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण इस दृष्टि से भी है क्योंकि लहरे का कथक नृत्य और विभिन्न एकल ताल वाद्यों के साथ संगति के संदर्भ में महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। लहरा-वादन ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के एकल वादन और नृत्य के क्षेत्र को और भी समृद्ध एवं विकसित कर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की है, लेकिन फिर भी लहरा-वादन से संबंधित अध्ययन सामग्री बहुत ही कम देखने को मिलती है।

अतः इस महत्वपूर्ण विषय को ध्यान में रखते हुए मैं अपनी इस पुस्तक 'भारतीय शास्त्रीय संगीत में लहरा-वादन' के अंतर्गत लहरा-वादन से संबंधित अध्ययन सामग्री, इसका क्रियात्मक और सैद्धांतिक पक्ष, लहरा का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ, ऐतिहासिक एवं क्रमिक विकास, आधुनिक तकनीकी प्रयोग से विकसित लहरा-वादन, लहरा संरचनाकारों एवं वादकों की विशेषताओं का अनुशीलन, लहरा-वादक के गुण-अवगुण, लहरे की बन्दिशें एवं स्वरलिपियाँ तथा लहरे के उपलब्ध प्रमुख प्रस्तोता वादक-कलाकारों की जानकारी आदि कुछ महत्वपूर्ण जानकारी इस पुस्तक के माध्यम से  संगीत-जगत के साधकों, पाठकों, विद्यार्थियों, शोधार्थियों एवं शिक्षकों आदि सभी के समक्ष प्रस्तुत की है।  पुस्तक महत्वपूर्ण उपयोगी साबित होगी।