भारतीय जनसंचार संस्थान की विदेशों में बढ़ी प्रतिष्ठा

लेखक : रामजी लाल जांगिड 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं विभिन्न मामलों के ज्ञाता

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विकासशील देशों के लिए पहले स्नातकोत्तर पत्रकारिता डिप्लोमा पाठ्‌यक्रम में 22 प्रशिक्षु थे। इनमें से थाईलैंड के तीन, ईरान, मारीशस, युगांडा, और ज़ाम्बिया से दो दो, अफगानिस्तान, इथियोपिया, नेपाल, सूडान और युगोस्लोवाकिया के एक एक प्रशिक्षु थे। I

यानी दस देशों के सोलह प्रशिक्षु पहले ही पाठ्यक्रम में आ गए। शेष छह प्रशिक्षु भारतीय थे । यह। सितम्बर 1969 को शुरू हुआ था। सरकार को लगने लगा कि इस क्षेत्र में भारत को अच्छी पुस्तकें चाहिए।

संस्थान के प्रो. एन. एन. पिल्लई को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने 'विज्ञापन और अभियान योजना' पर शोध कर के भारत की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए पुस्तक लिखने के लिए आर्थिक सहायता दी।

दूसरा स्नातकोत्तर पत्रकारिता डिप्लोमा पाठ्यक्रम 20 अप्रैल 1971 को समाप्त हुआ। इसमें मलयेशिया, युगांडा,

नाइजीरिया, घाना और लेबनान के प्रशिक्षु थे। भारतीय प्रशिक्षुओं सहित कुल 22 प्रशिक्षु थे। इन दोनों पाठ्‌यक्रमों में मिलाकर पंद्रह देशों के पत्रकारों को भारतीय पत्रकारों के अलावा प्रशिक्षण का लाभ मिला।

मार्च 1973 से पहलीबार communicator का सहायक सम्पादक (श्री वि. सुंदरेसन) बनाया गया। इसके पहले केवल निदेशक ही सम्पादक बने थे । संस्थान अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में संकाय सदस्यों को भेजने लगा।

संस्थान जन संचार के क्षेत्र में कई संस्थाओं के साथ मिलकर भी कार्यक्रम कर रहा था। नवम्बर 1973 में उसने योजना आयोग के साथ मिलकर प्रेस में आ रहे आर्थिक और सामाजिक

परिवर्तनों की रपट करने के बारे में संगोष्ठी की। इसमें दिल्ली के अलावा जयपुर, जालंधर और पटना के पत्रकारों ने भी भाग लिया था। दिसम्बर 1973 में प्रेस इंस्टिट्यूट आफ इंडिया के साथ मिलकर 'भारत में सिनेमा के 75 वर्ष' पर प्रदर्शनी लगाई।

जनवरी 1969 में communicator को चार साल हो गए थे। इसे समाचार पत्रों के पंजीयक से पंजीकृत नहीं कराया गया था। इस अंक को टाइप किया गया था। इसमें निदेशक ही संपादक थे। एक संकाय सदस्य प्रकाशक थे। मई - जुलाई 1973 तक टाइप होता रहा। अक्टूबर 1973 अंक पहली बार IIMC Press में छपा। इसमें संपादक (निदेशक

श्री एम.वि. देसाई), सहायक संपादक (श्री वि.सुंदरेसन) प्रकाशक (प्रो. प्राणनाथ मल्हन) और मुद्रक (राजीव कृष्ण खन्ना) छपा था।  रिहाइशी इलाके में छापाखाना खोलने पर लगी पाबंदी के कारण जनवरी 1974 अंक में IIMC (Laboratory) Press छापा गया। अक्टूबर 1974  अंक से Laboratory शब्द हटा दिया गया।