दीपावली के दोहे : डॉ. सुधा गुप्त

लेखिका : डॉ. सुधा जगदीश गुप्त 

कटनी मध्य प्रदेश 

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यश वैभव समृद्धि मिले, 

खुशियां मिले अपार।

ज्ञान ज्योति दे तम हरे,

दीपों का त्यौहार।।


धन वैभव यश ऐश्वर्य,

संपन्नता सुख स्वास्थ्य। 

सबके मन हो प्रसन्नता,

विनय यही आराध्य।।


बालक वृद्ध प्रसन्न हों

हों झोपड़ी उजियार।

रोग दोष सब दूर कर,

दीपों का त्यौहार।।


हे हरि हर लीजिए,

रोग दोष संताप।

दीप सदा जलते रहें,

विनती सुनियो आप।। 


बैर क्लेश ना हो कहीं,

गोली की बौछार।

लौ दीपक की कांपती, 

युद्ध है सीमा पार।।


दीवाली का पर्व है,

सुंदर सुखद सुयोग।

अंतर दीपक बालियो,

 प्रसन्न रहें सब लोग।।


लाख झालर जल रहीं

पर्व दीप बिन सून।

झूम झूम लौ चढ़ा रही

जल जल नेह प्रसून।।


दीप जलाओ ज्ञान के,

भागेगा तम दूर।

नेह प्रीत की लौ जला

आशा से भरपूर।।


दीप शिखा जलती रही, 

दीपक साधे मौन।

तम से जूझी रात भर,

घाव देखता कौन।।


दीपक बाती कह रहे,

भली अमावस रात।

तन मन आलोकित करें,

जग देखेऔकात।।