आज़ाद भारत के पहले 20 सालों में हिंदी भाषी राज्य में पत्रकारिता शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी

लेखक : रामजी लाल जांगिड 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं विभिन्न मामलों के ज्ञाता

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नई दिल्ली। मैं स्वास्थ्य सम्बंधी कारणों से 21 अक्टूबर से 13 नवम्बर 2024 तक लिख नहीं सका। अब पूरी तरह स्वस्थ हूँ। इसलिए जिस दिन हिन्दुस्तान दैनिक के संपाद‌कीय विभाग में प्रवेश लिया था, उस दिन से शुरू कर रहा हूँ। 

हिन्दी और अंग्रेजी संपाद‌कीय विभाग में किसी भी पत्रकार ने किसी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की शिक्षा नहीं ली थी। एक भी हिन्दी भाषी राज्य में आज़ादी के बाद के बीस वर्षों तक पत्रकारिता शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी । ब्रिटेन और अमरीका से पत्रकारिता की शिक्षा लेकर श्री पी. पी. सिंह ने अविभाजित भारत के लाहौर में स्थित पंजाब विश्वविद्यालय में पत्रकारिता का पहला विभाग वर्ष 1941 में शुरू किया था।आज़ादी के बाद यह नई दिल्ली में आ गया। इसमें शिक्षण और परीक्षा का माध्यम अंग्रेजी था। एक ऐच्छिक प्रश्नपत्र अंग्रेजी के साथ हिंदी, पंजाबी और उर्दू में था।

वर्ष 1947 में भारत के दूसरे विश्वविद्यालय (मद्रास विश्वविद्यालय) में पत्रकारिता विभाग खुला। इसमें भी शिक्षा और परीक्षा केवल अंग्रेजी में होती थी। वर्ष 1950 में भारत का तीसरा पत्रकारिता विभाग कलकत्ता विश्वविद्यालय में खुला। इसमें भी शिक्षा और परीक्षा केवल अंग्रेजी में होती थी। भारत का चौथा पत्रकारिता विभाग मैसूर विश्वविद्यालय में वर्ष 1951 में खुला। इसमें भी शिक्षा और परीक्षा केवल अंग्रेजी में होती थी। वर्ष 1952 में भारत का पाँचवाँ पत्रकारिता विभाग नागपुर विश्वविद्यालय में शुरू किया गया। शिक्षण का माध्यम अंग्रेजी था। किंतु परीक्षा अंग्रेजी, हिंदी और मराठी में देने की छूट थी। वर्ष 1954 में भारत का छठा पत्रकारिता विभाग उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद में खुला। इसमें शिक्षा और परीक्षा अंग्रेजी में होती थी, मगर एक प्रश्नपत्र तेलुगु पत्रकारिता का था। इसके दस साल बाद वर्ष 1964 में सातवां पत्रकारिता विभाग पूना विश्वविद्यालय में खुला। इसमें बी. जे. पाठ्यक्रम अंग्रेजी में और प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम मराठी में था। शिक्षा और परीक्षा दोनों मराठी में 1968 में शुरू हुई।

वर्ष 1965 में भारत सरकार के सूचना व प्रसारण मंत्रालय की इकाइयों के अधिकारियों (Indian Information Service) (IIS) को प्रशिक्षण देने के लिए तत्कालीन सूचना व प्रसारण मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की अध्यक्षता में बने स्वशासी संगठन के रूप में भारतीय जन संचार संस्थान की स्थापना की गई। वर्ष 2024 में इसे विश्वविद्यालय बना दिया गया है। इसे एशिया में पत्रकारिता और जन संचार शिक्षा का उत्कृष्ट केंद्र माना जाता है। इसमें लगभग 160 देशों के युवा पत्रकार शिक्षा पाने के लिये आते हैं। इसके पास जितने संसाधन हैं, उतने भारत के किसी भी विश्वविद्यालय के पास नहीं है। बाद में इसे मंत्रालय के अधिकारियों के साथ साथ आम लोगों के लिए भी खोल दिया गया। पाठ्यक्रमों की संख्या भी बढ़ा दी गई। इसके बारे में और जानकारी बाद में दी जायेगी। 

वर्ष 1967 में गुआहाटी (गौहाटी)(असम) (शु‌द्ध शव्द है / अहोम) में भारत के आठवें विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग की शुरूआत की गई। माध्यम अंग्रेजी रहा। वर्ष 1968 में कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में वीर शिवाजी विश्वविद्यालय में भारत के नवें पत्रकारिता विभाग की नींव रखी गई। इसमें शिक्षण ओर परीक्षा का माध्यम मराठी था।

भारत का यह पहला विश्वविद्यालय था, जिसने किसी भारतीय भाषा में पत्रकारिता शिक्षा देने का श्रेय लिया। वर्ष 1968 में ही जुलाई में जबलपुर विश्वविद्यालय में भारत का दसवां पत्रकारिता विभाग खुला। इसमें शुरू में सायंकालीन कक्षा लगती थी। शिक्षण और परीक्षा का माध्यम अंग्रेजी और हिन्दी था। हालांकि ज्यादा संख्या हिन्दी समझने वालों की थी।

ऊपर के विवरण से स्पष्ट है कि महाराष्ट्र पत्रकारिता शिक्षा देने में सबसे ज्यादा सजग था। इसलिए उसके तीन विश्वविद्यालयों (नागपुर, पूना और कोल्हापुर में स्थित) में पत्रकारिता शिक्षा शुरू की गई। तीन दक्षिणी राज्यों ( तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश) में भी पहल की गई। दक्षिण के लोग उत्तर से ज्यादा सजग हैं। मध्यप्रदेश पहला हिन्दी भाषी राज्य था, जिसने आज़ादी के बाद 21 वें साल में पत्रकारिता शिक्षा शुरू की। प्रारंभ में एक वर्षीय स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम था। बाद में डिग्री पाठ्यक्रम शुरू किए गए। आज़ादी के बाद हिन्दी को शिक्षा और परीक्षा का माध्यम बनाने वाला यह पहला तथा अकेला हिन्दीभाषी राज्य था। पूर्वी भारत में पश्चिमी बंगाल और असम ( शुद्ध है  अहोम) ने भी इस दिशा में पहल की। वर्ष 1947 से 1968 तक दस पत्रकारिता विभाग खुले। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)