लेखक : रमेश जोशी
व्यंग्यकार, साहित्यकार एवं लेखक, प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए., स्थाई पता : सीकर, (राजस्थान)
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तोताराम आज चुप बैठा था। उसका बोलना, अधिक बोलना सहज है लेकिन उसका न बोलना चिंतित करता है। वैसे ही जैसे कुछ दिनों तक योगी की ओर से कोई सर्वधर्म समभाव का नारा न आए या यती जी कोई हिन्दू धार्मिक अति न करें या मोदी जी नेहरू-गाँधी या इंदिरा परिवार की निंदा न करें या कभी महिने के किसी अंतिम रविवार को ‘मन की बात’ के राष्ट्रीय प्रसारण की सूचना न मिले तो ऐसा लगता है जैसे दिन के बारह बज गए और सूरज नहीं निकला।
ऐसा ही एक उदाहरण हमें अपने गाँव के एक बाबाजी का याद आता है। वे जाति के ओबीसी थे और अगर जाटों की भावना आहत नहीं हो तो जाट थे। पत्नी मर गई, दूसरी शादी हुई नहीं और खेत में खटने में उनका मन नहीं लगता था। मतलब साधु बनने की पूरी संभावना । सो पहन लिया टखनों तक का भगवा चोगा। मंत्र-संस्कृत कुछ जानते नहीं थे, पक्के अंगूठाछाप। बस, ऐसे ही जोर जोर से कुछ अंडबंड चिल्लाते घूमते। अतिरिक्त आकर्षण के लिए एक कुतिया पाल ली। कहते थे यह पिछले जन्म में मेरी माँ थी। लोगों ने भी उनके तमाशे को सामाजिक मान्यता प्रदान की और वे ‘कुत्ती वाले बाबाजी’ कहलाने लगे । हमारे गाँव के 70-75 साल के सभी लोग उनके नाम और काम से परिचित हैं।
वे जब भारत विभाजन से कुछ पहले अशान्ति का माहौल बन रहा था तो अपनी देववाणी में ‘काट काट मार मार’ जैसे शब्दों का उच्चारण किया करते थे और कुछ महीनों बाद विभाजन हो गया। इसके बाद तो लोगों ने उनके शब्दों में उसी प्रकार अर्थ खोजना शुरू कर दिया जैसे सटोरिये किसी बाबाजी के शब्दों में सट्टे का नंबर तलाशते हैं या अनुराग ठाकुर के नारे में सांप्रदायिक सद्भाव।
एक दिन वे अपने प्रिय स्थान गाँव की पुरानी नगरपालिका के चबूतरे पर चुपचाप बैठे थे। लोग घोर आश्चर्यचकित। वहीं सेठों का एक धर्मार्थ औषधालय। जैसे ही वैद्य जी आए तो उन्हें भी आश्चर्य हुआ। पता चला कि बाबाजी का गला खराब है तो उन्होंने दवा दी और दो-चार दिन चुप रहने को कहा। लेकिन अगले दिन ही लोगों ने देखा कि बाबाजी दबी दबी आवाज में अपना मंत्र जाप कर रहे थे। वैद्य जी ने उन्हें याद दिलाया कि उन्हें दो चार दिन दवा लेना और चुप रहना था। बाबाजी ने उत्तर दिया- वैद्यजी, दवा क्या चुप रहने के लिए ली है?
हमने पूछा- तोताराम, क्या बात है? तबीयत तो ठीक है?
बोला- तबीयत तो ठीक है लेकिन गुजरात को लेकर चिंतित हूँ।
हमने कहा- मोदी जी और अमित जी के गुजरात की किसी को चिंता करने की जरूरत नहीं है। गुजरात तो भारत ही क्या दुनिया के लिए मॉडल है। ठीक है अमित जी दिल्ली में हैं, मोदी जी भी गुजरात में नहीं है तिस पर विश्व के नेतृत्व का गुरुतर भार। फिर भी वे सक्षम हैं। तू चिंता मत कर। वे सब संभाल लेंगे। फिर भी चिंता की बात क्या है? क्या कहीं कोई मोरबी जैसा घड़ी वाले द्वारा पेंट करके मरम्मत का काम निबटाया पुल तो नहीं गिर गया? या गुजरात के नकली वेंटीलेटर या नकली रेमडेसीवेयर का मामला उछल गया?
बोला- ऐसा तो कुछ नहीं हुआ लेकिन अब अहमदाबाद में एक नकली न्यायाधीश पकड़ा गया है मॉरिस सेमुअल। उसने नकली कोर्ट लगाकर अहमदाबाद में 100 एकड़ जमीन का अपने नाम ऑर्डर पारित करवा लिया है। इससे पहले नकली सी एम ओ अधिकारी विराज पटेल और नकली पी एम ओ अधिकारी किरण पटेल पकड़ा गया था।
हमने कहा- जहां कई ‘मोदी’ और चौकसी करने वाले चौकसी करने वाले ‘मेहुल भाई’ चौकसी हजारों करोड़ लेकर भाग गए तो ये तो बेचारे ज्यादा से ज्यादा किसी सरकार गेस्ट हाउस में फ्री में ठहरे थे या सरकारी वाहनों या सुविधाओं का लाभ उठाया था। इससे क्या बड़ा फरक पड़ गया?
बोला- मास्टर, ज़माना बहुत खराब है। तुझे कुछ पता नहीं, दुनिया में क्या क्या चल रहा है । क्या पता, मोदी जी विश्वनेता होने के कारण दुनिया के देशों की समस्याएं सुलझाने में लगे रहें, भारत की अर्थव्यववस्था को सौ दो सौ ट्रिलियन की बनाने में लगे रहें और कोई उनकी तरह सफेद दाढ़ी लगाकर, बढ़िया कुर्ता, जैकेट पहनकर देश का क्या कुछ किसी ‘दानी-बानी’ को बेच जाए और किसी को पता ही न चले।
हमने कहा- तोताराम, तुम्हारी बात में दम तो है लेकिन मोदी जी तक सूचना कैसे पहुंचाएं। हमें वांगचुक की तरह मोदी जी का घर तो दूर, राजघाट तक भी नहीं पहुँचने दिया जाएगा। मान ले किसी तरह वहाँ तक पहुँच भी गए तो जिसे असली मोदी जी समझकर शिकायत करें वह नकली मोदी हो और हमें पुलिस हिरासत में भिजवा दे। उसके बाद मृत्यु पर्यंत न जमानत मिले और न कोर्ट में पेशी हो।
और स्टेंस स्वामी की तरह राम नाम सत्य हो जाए। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)