राजस्थान के राजभवन में राज्यपाल द्वारा नववधू को आशीर्वाद

लेखक : रामजी लाल जांगिड 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं विभिन्न मामलों के ज्ञाता

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प्रो. सत्या के बड़े भाई प्रो (डा.) गोपालकृष्ण विश्वकर्मा ने हम दोनों के लौटने के लिए नई दिल्ली से जयपुर तक के हवाई जहाज के दो टिकट थमा दिए। जब मैं सामान जमा रहा था, तब प्रो. सत्या ने कहा कि मेरी पी. एच. डी की थीसिस का ड्राफ्ट जरूर रख लेना। मैं जयपुर में उसे अंतिम रूप दूंगी। नववधू न गहने ले जाना चाहती थी, न क्रीम, न पाउडर | उसे केवल चिंता थी अपनी शोध पूरी करने की। खैर हम लोग जयपुर पहुंच गए। बाकी बारातियों के लिए रेलगाड़ी से लौटने की व्यवस्था थी। अपने रिश्तेदारों से परिचय कराने के लिए मैंने अपने घर पर प्रीतिभोज रखा। उसमें राजस्थान के राज्यपाल डा. सम्पूर्णानंद जी ने अपने ए. डी.सी. कैप्टन निर्मल सरकार के साथ मेवे, फल, मिठाई और दोनों के लिए कपड़े भेजे। स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण वह नहीं आ सके।

अगले दिन मैं प्रो. सत्या को राजभवन में राज्यपाल महोदय का आशीर्वाद लेने और लंच करने के लिए ले गया। डा. सम्पूर्णानंद जी और उनके परिवार ने काफी गर्मजोशी से हम दोनों का स्वागत किया और काशी की बेटी होने के नाते उसे विशेष स्नेह दिया। दोनों को ही काशी से गहरा प्रेम था।

राजस्थान में पुत्रवधू अपने ससुर के सामने आते समय मुंह साड़ी से थोड़ा सा ढकती है। मैंने अपने बापू से कहा कि सत्या को समाज से शिक्षा का लाभ मिला है। इसलिए उसे समाज का ऋण उतारने के लिए पढ़ाना चाहिए। 

अब वह नौकरी करेगी तो पर्दा नहीं कर सकती है। मेरे बापू ने कहा- सत्या मेरी पुत्रवधू नहीं, मेरी बेटी है और बेटियां अपने घर में पर्दा नहीं करती हैं। जब सत्या ने 25 जुलाई 1968 को कालिन्दी महिला कालेज, पूर्वी पटेलनगर, नई दिल्ली में नौकरी शुरू की। तब हमने कालेज के पास ही सतनगर में किराये पर घर लिया। जिससे वह पैदल ही कालेज बिना थके हुए जा सके। वह दुबली पतली थी। मेरे बापू उसे इतना प्यार करते थे कि वह आगे चलती थी और वह उसकी किताबों का थैला लेकर पीछे चलते थे। साथ में माला ले जाते थे। जब तक वह पढ़ाती थी, वह कालेज के दरवाजे के सामने के घर के चबूतरे पर बैठकर माला जपते रहते थे। लौटते में फिर किताबों का थैला पकड़े रहते। सत्या ने उनकी इतनी सेवा की कि वह कहते थे यह पिछले जन्म में मेरी मां रही होगी । उन्होंने सत्या की गोद में ही अंतिम सांस ली। यही उनकी अंतिम इच्छा थी। उन्हें बीड़ी पीने के कारण फेफड़े का कैंसर हो गया था। उनका निधन सतनगर, करोलबाग, नई दिल्ली में ही हुआ। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)