गरीबी या मक्कारी : अतुल मलिकराम

लेखक : अतुल मलिकराम 

राजनीतिक रणनीतिकार, इंदौर 

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गरीबी, एक ऐसा शब्द है जो सुनने में जितना साधारण लगता है, वास्तविकता में उतना ही भयावह और गंभीर है। यह एक ऐसी सामाजिक बुराई है जिसने न केवल व्यक्ति विशेष बल्कि पूरे समाज, देश और यहाँ तक की वैश्विक स्तर पर मानवता को जकड़ रखा है। गरीबी को सही मायनों में एक अभिशाप कहा जाए तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि यह व्यक्ति के जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है। इससे उसका स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक स्थिति और यहाँ तक कि उसका आत्मसम्मान भी प्रभावित होता है। लेकिन गरीबी केवल एक वित्तीय परिस्थिति नहीं है बल्कि यह एक विचारधारा है। आज दुनिया भर में फैली गरीबी में जितने लोग गरीब हैं उनमें से अधिकतर ऐसे मिल जाएँगे जो शारीरिक और मानसिक रूप से इस स्थिति में बाहर आने में पूरी तरह सक्षम हैं लेकिन वे आना ही नहीं चाहते हैं। इसे गरीबी कहेंगे या मक्कारी....... 

आजादी के बाद से ही हमारे देश की सरकार गरीबी उन्मूलन के लिए लगातर योजनाएं लागू कर रही है , जिसमें कभी सरकार ने मुफ्त घर, अनाज इत्यादि दिए तो कभी अलग-अलग योजनाओं में पैसा बांटा। कभी कम ब्याज दर पर लोन दिया, जिससे गरीबी रेखा के नीचे आने वाले लोग आत्मनिर्भर हो सकें। चाहे जिस किसी भी पार्टी की सरकार रही सबने अपने-अपने तरीकों से गरीबी से लड़ने के लिए प्रयास किये लेकिन आजादी के 78 सालों बाद भी हम गरीबी से निजात नहीं पा सके। आधिकारिक आंकड़ों की मानें, तो आज भी देश में करीब 37 प्रतिशत आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे है। ऐसे में प्रश्न यह उठाता है कि इतने प्रयासों के बाद भी आज तक देश का इतना बड़ा तबका गरीबी रेखा के नीचे कैसे है। भारत जो विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। वहाँ आज तक गरीबी से निजात क्यों नहीं पाया जा सका...?

क्योंकि गरीबी से निकलने के लिए सिर्फ पैसे या सहायता की जरुरत नहीं होती है। इसके लिए जरुरत होती है सकारात्मक विचारधारा की। जब सरकार की ओर से आपको मुफ्त खाना, आवास और सहयोग राशी मिल रही हो तो क्यों इस स्थिति से बाहर निकला जाए। जी हाँ! हमारे देश में गरीबों का एक तबका इस सोच के साथ ही जी रहा है। यही कारण है कि हम आज तक इस समस्या से निकल नहीं पाए हैं। उदाहरण के लिए सरकार ने शहरी इलाकों में झुग्गी झोपड़ियों को ख़त्म करने के लिए आवास योजना लागू की, जिसमें झुग्गी-बस्तियों में रह रहे लोगों को पक्के मकान मुहैया कराए गये ताकि उनके जीवन स्तर को सुधारा जा सके लेकिन इसका नतीजा यह हुआ कि लाभार्थियों ने आवास योजना में मिले मकानों को किराए पर दे दिया और अपने लिए फिर नई झोपडी बना ली। मतलब स्थिति जस की तस ही रही। सरकार ने शिक्षा के अवसर भी प्रदान किये ताकि आगे आने वाली पीढ़ी गरीबी से निकल सके लेकिन इस वर्ग में शिक्षा को लेकर भी जागरूकता नहीं है। साथ ही आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा का भी अभाव है। 

इस स्थिति को आप क्या कहेंगे यह तो सरासर मक्कारी है क्योंकि मुफ्तखोरी की आदत लग चुकी है। लोग अपने लिए कोई प्रयास करने की बजाय सहायता पर निर्भर हैं। वरना इंसान चाहे तो क्या कुछ नहीं कर सकता है। अगर मेहनत की जाए तो क्या गरीबी से निकला नहीं जा सकता....। हमारे पास ऐसे कई उदाहरण हैं जिनका बचपन चाहे गरीबी में बीता हो लेकिन उन्होंने अपनी सकारात्मक विचारधारा और मेहनत से ना सिर्फ गरीबी को हराया है बल्कि देश का नाम भी रोशन किया है। मैं आपको ऐसे कई नाम गिनवा सकता हूँ जिन्होंने गरीबी को हराया है फिर चाहे वो हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम हों या हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी हों। गरीब पैदा होना किस्मत हो सकती लेकिन सारी जिंदगी गरीबी में ही रहना ये सरासर मक्कारी है। 

खुद कुछ ना करने की स्थिति में अपनी गरीबी को दोष देना और अपने स्तर में सुधार ना करना। व्यक्ति का अपना दोष है। इसके लिए सरकार को, किस्मत को या किसी और को दोष देना किसी तरह से सही नहीं है। इसलिए अगर सच में गरीबी को हराना है तो सबसे पहले इस विचारधार को बदलना होगा। बिना इसके कितनी भी योजनाएं लागू कर दी जाए स्थिति सुधरने वाली नहीं है। इसके लिए सरकार को भी अपनी मुफ्त योजनाओं पर लगाम लगाना चाहिए क्योंकि यह योजनाएं गरीबी से लड़ने में सहायक हो रही हों या नहीं लेकिन यह मक्कारी को बढ़ावा जरुर दे रही हैं। इसलिए जब तक मुफ्तखोरी और मक्कारी  की प्रवृत्ति पर लगाम नहीं लगाई जाएगी, तब तक गरीबी से लड़ाई में सफलता मिलना मुश्किल है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)