वर्षों पुरानी बात है मैं उदयपुर से चित्तौड़ आ रही थी जिसकी दूरी लगभग 112 किलोमीटर है रास्ते में ही संध्या हो गई थी। मेरे पास वाली सीट पर एक युवक बैठा था। उसने अचानक पूछा_मैडम आपके पास कुछ खाने को है क्या? मेरे रोजा इफ्तार का समय हो गया है और चित्तौड़ आने में अभी देर है ।
मैं जल्दी से हां भरते हुए कहा_एक पारले जी बिस्कुट का पैकेट है यह कहते हुए मैंने पर्स से बिस्कुट का पैकेट निकाल कर उसे दे दिया। उस जमाने में रास्ते में बस स्टैंड पर खाने-पीने का सामान नहीं मिलता था। चाय जरूर मिल जाती थी।
मेरी आत्मा को सुकून मिला। चित्तौड़गढ़ पहुंचने पर उस मुस्लिम भाई ने मुझे पैसे देने चाहा पर मैंने पैसे लेने से इंकार कर दिया। बहुत बाद में मुझे पता चला कि किसी का रोजा खुलवाने से बहुत पुण्य मिलता है। अनजाने ही सही मैंने कुछ पुण्य कमा लिया। जब भी उस घटना को याद करती हूं मन खुशी से भर उठता है।
लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़, (राजस्थान)