चित्तौड़गढ़, (राजस्थान)
www.daylife.page
जब मैं गलती से ट्रेन के आरक्षित डिब्बे में चढ़ गई।
बात बहुत पुरानी है लेकिन आज भी याद आने पर हंसी आ जाती है। मेरी बेटी डॉक्टर है वह उदयपुर में इंटर्नशिप कर रही थी तो मैं भी उससे मिलने उदयपुर गई। चार-पांच दिन के बाद मुझे वापस चित्तौड़ आना था और क्योंकि मेरी बेटी का फ्लैट रेलवे स्टेशन के निकट था तो उसने कहा मम्मी आप ट्रेन से चले जाओ। मैंने कहा ठीक है और हम स्टेशन पहुंचे और टिकट लिया प्लेटफार्म पर आए तो ट्रेन रवाना होने लगी। मैं भागते हुए ट्रेन के डिब्बे में चढ़ गई। कुछ ही मिनट बाद टिकट चेक करने के लिए टीटी आया और टिकट देखने के बाद बोला की मैडम आप आरक्षित कोच में बैठ गई है, इसके लिए आपको 240 रुपए का जुर्माना देना होगा।
मैं बोली सर मुझे देखते हुए आपको कहीं से भी ऐसा लगता है कि मैं जानबूझकर इसमें आई हूं ट्रेन रवाना हो चुकी थी इसीलिए मैं दौड़कर इस डिब्बे में चढ़ गई। सामने वाली सीट पर एक दंपति बैठे थे उनके लिए रिजर्वेशन थी तो उस व्यक्ति ने कहा इन्हें बैठने दीजिए वैसे ही चित्तौड़ उतर जाएगी। उसके बाद टीटी ने मुझे समझाया की इंजन के पास वाले चार डिब्बे और पीछे के चार डब्बे सामान्य श्रेणी के होते हैं। यह तो मुझे भी ज्ञात था। ये कहकर वे चले गए उसके बाद मैंने उन दंपति को सारा किस्सा सुनाया। यह सुनकर वह दंपति भी हंसने लगे आज भी वह घटना जब याद आती है तो हंसी आ जाती है। (लेखिका का अपना अनुभव, लेखन एवं अपने विचार हैं)