राजयोग शुरू : रामजी लाल जांगिड

लेखक : रामजी लाल जांगिड़ 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं विभिन्न मामलों के ज्ञाता 

वर्ष 1q964 भी वर्ष 1962 की तरह मेरे जीवन का महत्वपूर्ण वर्ष था। इस वर्ष तीन महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं। पहले राजस्थान साहित्य अकादमी ने मुझे  चौबीस वर्ष की आयु में वर्ष का सर्वश्रेष्ठ लेखक घोषित कर दिया । दूसरी उपलब्धि 26 अप्रैल 1964 को राजस्थान विश्वविद्यालय में पी. एचडी उपाधि के लिए शोधार्थी के रूप में पंजीकरण हो जाना थी। इसके बाद मैं सामग्री जुटाने के लिए नई दिल्ली के जनपथ स्थित राष्ट्रीय अभिलेखागार में दिन भर बिताने लगा। चार जुलाई 1964 को सुमेर प्रकाशन, बिरला लाइंस, कमलानगर, दिल्ली के साथ चौथी पुस्तक 'इतिहास के स्फुट लेख' की रायल्टी के लिए समझौते पर हस्ताक्षर हुए, हालांकि पुस्तक इसके पहले छप चुकी थी मगर मैं जयपुर चला गया था इसलिए समझौते पर हस्ताक्षर नहीं कर पाया था। हालांकि मुझे आज तक रायल्टी का एक पैसा नहीं मिला। I मुझे यह जानने का समय भी नहीं मिला कि यह

कितनी पुस्तकें बिकी हैं और न मैंने बाद में मालूम किया कि वह फर्म चल रही है या बंद हो गई है। 26 अगस्त 1964 को डा. संपूर्णानंद जी ने मेरी चौथी पुस्तक पर अपनी राय लिखी थी। तब मैं उनसे मिला नहीं था।

27 अक्टूबर 1964 से मेरा राजयोग शुरू हुआ।

मैं उस दिन अपने वाइस चांसलर प्रोफेसर (डॉ.)  मुकुट बिहारी माथुर को अपनी चौथी पुस्तक भेंट करने गया था | उन्होंने अपने पी. ए. को तत्कालीन राज्यपाल डा. सम्पूर्णा नंद जी के नाम पत्र लिखवाया और मुझे कहा- "तुमने मुझे अपनी पुस्तक भेंट की है। मैं इसके बदले में तुम्हारी दूसरी नौकरी लगा रहा हूँ। यह मेरा लिफाफा लेकर महामहिम राज्यपाल महोदय से मिलो। वह तुम्हें नियुक्ति पत्र देंगे।" मैंने पूछा - "करना क्या है ? उन्होंने कहा-" उनसे यह पूछने की हिम्मत मुझमें तो है नहीं'। तुम ही पूछ लेना। अब सीधे राजभवन जाओ।" 

मैं सीधे राजभवन पहुंच गया और राज्यपाल के निजी सचिव को वह लिफाफा दे दिया। वह लिफाफा लेकर माननीय राज्यपाल के पास गए। उन्होंने अपने निजी सचिव को मेरा नियुक्ति पत्र लिखवा दिया और मुझे अपने कमरे में बुला लिया। मैंने प्रणाम किया और बैठ गया। उन्होंने पूछा -"कहां रहते हैं?" मैंने उत्तर दिया- "सवाईमानसिंह मेडिकल कालेज के पास किराए के मकान में रहता हूं।" " उन्होंने कहा- "मैं रोज शाम को चार से पांच बजे तक आपसे बात करूंगा। इसलिए आज से आप मेरे अतिथि है। आपको मैं राजभवन में ही सुएट दे रहा हूँ। आप उसी में मेरे साथ  रहिए। और मेरा राजयोग शुरू हो गया। मुझे डूंगरपुर सुएट दे दिया गया।

राजयोग जारी (1)

जीवनी लिखने के पहले शोध जरूरी थी। इसलिए मैंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में कांग्रेस के योगदान और गांधी जी तथा दूसरे बड़े नेताओं की भूमिका के बारे में ज्यादा से ज्यादा सामग्री एकत्र करने के लिए हिन्दी एवं अंग्रेजी की पुस्तकें पढ़ी।विशेषतः उत्तरप्रदेश कांग्रेस के उन नेताओं की भूमिका को समझना जरूरी था, जिनका स्वर्गीय पंडित गोविन्द वल्लभ पंत से विशेष संबंध था। इसलिए मैंने माननीय डा. सम्पूर्णानंद जी से 14 नवम्बर 1964 को एक पत्र ऐसे 29 नेताओं को भेजने की प्रार्थना की, जिनके पास स्वर्गीय पंत जी का कोई पत्र या उनसे सम्बन्धित कोई सामग्री या जानकारी हो। 

ये नेता थे- 1. श्री मोरारजी देसाई 2 श्री गुलजारी लाल नंदा 3 श्री लाल बहादुर शास्त्री 4 श्री जगजीवन राम 5 श्री कमलापति त्रिपाठी 6 श्री महावीर त्यागी 7 श्री चंद्रभानु गुप्ता 8 श्री अजीत प्रसाद जैन 9 श्री श्रीप्रकाश 10 श्री सत्य नारायण सिंह 11 श्री आत्माराम गोविंद खेर 12 श्री केशव देव मालवीय 13 श्री राम मूर्ति 14 श्री कृष्ण दत्त पालीवाल 15 श्री श्रीमन्नारायण अग्रवाल आदि।

इस पत्र में लिखा गया -" स्वर्गीय पं. गोविन्द वल्लभ पंत ने एक महान देशभक्त, असाधारण नेता, उद्भट संसद शास्त्री और कुशल प्रशासक के रूप में हमारे देश की जो सेवायें की है, उन्हें देखते हुए उनके बहुमूल्य योगदान के पूर्णत: उपयुक्त कोई स्मारक बनाना तो कठिन है, फिर भी देशवासियों की कृतज्ञता ज्ञापन के लिए यह निश्चय किया गया कि जिन कार्यों की पूर्ति के लिए वे अपने जीवन काल में सतत प्रयत्नशील रहे, उन्हें प्रोत्साहित किया जाये। इस लक्ष्य को ध्यान में रख इस वर्ष के प्रारंभ में "गोविन्द बल्लभ पंत स्मारक समिति" की स्थापना की गई। इस समिति के प्रथम अध्यक्ष हमारे प्यारे नेता स्वर्गीय पं. जवाहरलाल नेहरू थे। उनके योग्य निदेशन में समिति ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिये। समिति के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में प्राविधिक और तकनीकी शिक्षण संस्थाओं की स्थापना, देश के विभिन्न स्थानों पर उनके स्मारक खड़े करना आदि के अलावा उनके एक बृहद और प्रामाणिक जीवन चरित्र का प्रकाशन भी सम्मिलित है।

राजयोग शुरू (2)

माननीय राज्यपाल से भेंट कराने के बाद उनके निजी सचिव मुझे डुंगरपुर सुएट में ले आए। इसमें दो कमरे रसोईघर और टायलेट था। इसमें मेज कुर्सी और सभी आवश्यक सुविधाएं थीं। इसके आगे वाला बांसवाड़ा सुएट था। उसमें श्रीमती इंदिरा गांधी ठहरती थीं। होली के समय 1965 में इंग्लैंड की महारानी के पति ड्यूक आफ एडिनवर्ग आए थे। वह भी ऐसे ही सुएट में

ठहरे थे। मुझे उनके साथ होली खेलने का सौभाग्य मिला था। निजी सचिव ने बताया कि माननीय राज्यपाल को पुस्तकें पढ़ने का जबर्दस्त शौक है। दिनभर  लेखक, कवि,संगीतज्ञ ज्योतिषी, आयुर्वेद विशेषज्ञ, संस्कृति विशेषज्ञ,रंगकर्मी और कलाकार आते रहते हैं। उन्होंने बहुत अच्छा पुस्तकालय बनवाया है। इसमें हिन्दी, संस्कृत, उर्दू और अंग्रेजी की काफी विषयों की पुस्तकें हैं। आप इस पुस्तकालय का लाभ ले सकते हैं। बहुत सारे लेखक और कवि राज्यपाल महोदय को अपनी पुस्तकें भेंट करने भी आते हैं। आपके सुएट से टेलीफोन किया जा सकता है। मैं पेंट्री (भंडार) के प्रभारी को भेजता हूँ। आपको जो भी चाहिए, वह लाकर देगा। भंडारी मेरे कस्बे फतेहपुर शेखावाटी के पास के गांव का ही निकला। लिहाजा वह ज्यादा ही ख्याल रखता था।

राज्यपाल महोदय ने भी आपका साक्षात्कार ले लिया है इसलिए आपको नियुक्त कर दिया गया है।निजी सचिव से मैंने पूछा- "मुझे करना क्या है ? उन्होंने बताया कि सात मार्च 1961 को भारत के गृहमंत्री पंडित गोविन्द वल्लभ पंत का स्वर्गवास हो गया था। उनकी स्मृति बनाए रखने के लिए प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 'गोविन्द बल्लभ स्मारक समिति' बनवा दी थी। उसे कार्यक्रम बनाने थे। मगर वर्ष 1962 में देश का ध्यान चीन के कपट पूर्ण हमले से रक्षा में लग गया और 27 मई 1964 को पंडित नेहरू का स्वर्गवास हो गया। इस तरह की परिस्थितियों के कारण स्मारक समिति की बैठकें नहीं हो सकीं। पंडित नेहरू के बाद श्री लाल बहादुर शास्त्री जी प्रधानमंत्री और इस समिति के अध्यक्ष बने। अब समिति ने तय किया कि पंत जी की जीवनी तैयार कराई जाए। इसके लिए डा० सम्पूर्णानंद जी को प्रधान सम्पादक बनाया गया है, क्योंकि वे पंतजी के साथ वर्ष 1938 से मंत्री रहे हैं। डा. सम्पूर्णानंद जी ने आपको एक अक्टूबर 1964 से यह जीवनी तैयार करने के लिए चुना है। इस बारे में उन्होंने राजस्थान विश्व विद्यालय के वाइस चांसलर से ऐसे व्यक्ति का नाम मांगा था, जिसने इतिहास पढ़ा हो, लेखक हो, हिंदी अंग्रेजी जानता हो। और शोध का अनुभव हो। उन्होंने लिखा है कि आप मे वे सारी योग्यताएं हैं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)