लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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जमीन के एक टुकड़े के स्वामित्व को लेकर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारामिया विवादों के घेरे में आ गए हैं। अपने लम्बे राजनीतिक जीवन, जिसमें वे दो बार दक्षिण के इस राज्य के मुख्यमंत्री बने है, वे पहली बार इस तरह के वित्तिय विवाद में फंसे है। विपक्षी बीजेपी और जनता दल (स) ने इसको एक बड़ा मुद्दा बना दिया हैं। इस की गूंज राज्य विधान सभा में भी सुनी गई। विपक्ष का आरोप है कि सिद्धारामिया ने पद का लाभ उठाते हुए अपनी पत्नी पार्वती के नाम मैसूरू शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) से नियमों को ताक पर रख कर बहुत अधिक मुआवजा लिया हैं। सिद्धारामिया का कहना है का उनकी पत्नी को जो मुआवजा मिला वह नियमानुसार था। यह मुआवजा भी तब मिला जब राज्य में बीजेपी की सरकार थी।
केंद्रीय उद्योग और इस्पात मंत्री एच.डी. कुमारस्वामी का कहना है कि सिद्धारामिया ने इस जमीन के टुकड़े, जिसका रकबा 3.16 एकड़ का है, की खरीद को काफी समय तक छुपाये रखा। नियमों के अनुसार जब कोई व्यक्ति चुनाव लड़ता है तो उसे अपने नामांकन के साथ-साथ अपनी और अपने परिवार के सदस्यों की सम्पति का पूर्व विवरण देना होता है। लेकिन सिद्धारामिया यह विवरण नहीं दिया कि उनकी पत्नी के पास मैसूरू के एक उप नगर में 14 आवासीय भू-खंड है जिनका बाज़ार मूल्य लगभग 64 करोड़ रूपये है।
यह सारा मामला लगभग एक माह पूर्व उस समय उजागर हुआ जब मुडा के एक पूर्व अधिकारी ने मैसूरू के जिलाधीश के. वी राजेन्द्र को एक पत्र लिखा जिसमे यह शिकायत की गई थी कि मुख्यमंत्री के पत्नी को मुआवज़े के रूप में मैसूरू के महंगे इलाके में 14 भूखंड दिए गए थे। बाद में एक सूचना के अधिकार के एक सक्रिय व्यक्ति ने सारी जानकारी प्राप्त कर उसे समाचारों पत्रों के माध्यम से उजागर कर दिया।
इसके अनुसार मैसूरू के बाहरी इलाके में कासारे में जावर नामक के आदिवासी की जमीन थी। उसने लगभग 15 साल पहले इसके एक हिस्से के रूप 3.16 एकड़ जमीन मलिकार्जुन नाम के एक व्यक्ति को बेच दी। मलिकार्जुन और कोई नहीं मुख्यमंत्री की पत्नी पार्वती के भाई है। कुछ समय बाद मलिकार्जुन ने जमीन यह टुकड़ा अपनी बहिन को तोहफे के रूप दे दिया। इसी बीच मुडा ने शहर का विस्तार करने के लिए कासारे के आसपास की भूमि का अधिग्रहण करना शुरू किया। जमीन के मुआवज़े का भुगतान स्थानीय बाज़ार भाव से किया जाना था। एक प्रावधान यह भी था कि अगर भूमि का मालिक चाहे तो उसकी अधिग्रहित की जानी वाली जमीन के बदले किसी विकसित जमीन का आधा हिस्सा ले सकता है।
जमीन के बदले जमीन वाले मुआवज़े के प्रावधान संबधी नियमों में कई बार सरकार ने बदलाव किये। 2015 तक मुआवज़े का प्रावधान यह था कि भूमि के मालिक को उसकी भूमि का प्राधिकरण द्वारा विकास करने के बाद इसके मूल मालिक को विकसित भूमि का आधा हिस्सा दिया जायेगा।
लेकिन पार्वती के मामले में मुआवजा अलग ढंग से दिया गया। उन्हें विकसित भूमि का आधा हिस्सा देने की बजाये मैसूरू के एक महंगे इलाके में 14 आवासीय भूखंड दिए गए। इन भूखंडो का इस समय बाज़ार मूल्य लगभग 64 करोड़ रूपये है। जब विवाद ने तूल पकड़ लिया तो सिद्धारामिया के ओर से यह कहा गया कि उनकी पत्नी अपने यह सभी भूखंड मुडा को वापिस देने को तैयार है बशर्ते मुडा उनको 64 करोड़ का भुगतान कर दे।
ऐसा माना जाता है कि मुडा के कुछ अधिकारियों निरस्त किये गए नियमों के आधार पर ही पार्वती को भूखंडो का आवंटन कर दिया। यह कहा जा रहा है कि सारा मामला सरकारी दस्तावेजों में ही छिपा रहता अगर मुडा का एक पूर्व अधिकारी जिलाधीश को शिकायत नहीं करता। न शिकायत होती और न ही जिलाधीश ने मुडा के अधिकारियों से सारी जानकारी मांगी होती। मामला जिलाधीश के सामने आने के बाद ही सब कुछ खुलकर सामने आ गया।
जब यह मामला स्थानीय अख़बारों की सुर्खियों में आ गया तो सरकार ने बिना किसी विलम्ब के जिलाधीश का वहां से स्थानातरण कर दिया। राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि मामले को उजागर करने में सिद्धारामिय के धुर विरोधी और उनके उप मुख्यमंत्री डीके शिव कुमार का हाथ है। हालाँकि सिद्धारामिया ने मामले की जाँच करने के लिए एक न्यायिक आयोग का गठन कर दिया है लेकिन फिलहाल मामला ठंडा होने का नाम ही नहीं ले रहा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)