क्या अंबानी परिवार आया था?
लेखक : रमेश जोशी 

व्यंग्यकार, साहित्यकार एवं लेखक, प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए., स्थाई पता : सीकर, (राजस्थान)

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हम बरामदे में खड़े थे। 

दिन भर की हल्की-तेज बारिश के बाद थोड़ा सांस आया तो घर के चबूतरे पर खड़े थे।  देखा कि तोताराम हमारी तरफ ही चला आ रहा है। आते ही हमारे सामने रुका। हालांकि हम आडवाणी जी नहीं हैं जिन्हें उनके ही शिष्य ने घुटने तोड़कर बरामदे में बैठा दिया हो और राम मंदिर के शिलान्यास पर भी न बुलाया हो या त्रिपुरा में बिप्लव देव के शपथ ग्रहण में सामना होने पर भी अनदेखा कर दिया हो। किसी भी विमर्श या चर्चा में बातें जरूर कुछ भी कर जाता है लेकिन तोताराम इतना संस्कारहीन नहीं है।  

हमने कहा- क्या बात है? एक बार की चाय ही बहुत है। यह किसी धनपति का मनोरंजन और प्रदर्शन के लिए देश का धन फूँकने का तमाशा नहीं है जो जब चाहे यह प्री वेडिंग, वह प्री वेडिंग, यहाँ प्री वेडिंग, वहाँ प्री वेडिंग होता रहे। 

बोला- मैं तो वैसे ही सारे दिन घर में बोर हो गया था तो सोचा बाहर निकलकर थोड़ी खुली हवा ले लूँ, खुला आसमान देख लूँ। और लगे हाथ यह भी पता कर लूँ कि कहीं अंबानी परिवार ने दिल्ली से मुंबई जाते रास्ते में तेरे यहाँ ड्रॉप तो नहीं कर दिया। 

हमने कहा- ड्रॉप तो कर सकते थे क्योंकि भले ही उनके समधी अजय पीरामल मुंबई में जन्मे-पले-बढ़े लेकिन अजय के दादाजी पीरामल अपने झुंझुनू जिले के बगड़ कस्बे के ही तो थे। यहाँ उनके कई स्कूल, कॉलेज, दो दो बड़ी बड़ी कोठियाँ अब भी हैं और उनके नाम से बगड़ में जयपुर-लोहरू राजमार्ग कर ‘पीरामल नगर’ बसा हुआ है जिसे लोग ‘शिक्षा नगरी’ के नाम से जानते हैं। हमारा तो उनसे एक और भी निकट का रिश्ता बनता है कि हमारी मौसी के ससुर लक्ष्मीनारायण जी पुजारी सेठ पीरामल के यहाँ मुनीम थे। लेकिन कुछ भी हो निमंत्रण के बिना तो हम जाने वाले नहीं हैं।  

वैसे भी उन्हें टाइम कहाँ है ? एक घंटा तो सोनिया जी के यहाँ समोसे के इंतजार में लग गया। और फिर दो दो प्री वेडिंग के बाद अब मामेरु की रस्म भी तो है। इसे अपने यहाँ ‘भात’ कहते हैं। शायद यह ‘भ्राता’ शब्द से बना है। वर/वधू की माँ के भाई ‘मामा’ की तरफ से जो सामग्री आती है उसे ही गुजराती में ‘मामे’रु (मामा की तरफ से आया हुआ) कहते हैं। इसे मायारा भी कहते हैं। गुजरात के प्रसिद्ध कृष्ण भक्त कवि नरसी मेहता द्वारा नानी बाई की बेटी के लिए भरा गया मायरा प्रसिद्ध है। अपने यहाँ गुजराती में पद्यबद्ध कथा ‘नानी बाई को मायरो’ बाँची भी तो जाती है। 

कहते हैं नरसी मेहता गरीब थे। नानी बाई को उसकी ससुराल में लोग चिढ़ाते थे कि गरीब नरसी क्या भात भरेगा। क्या मायरा लाएगा? कहते हैं नानी बाई के सम्मान की रक्षा के लिए नरसी मेहता की जगह भगवान कृष्ण खुद मायरा लेकर गए और सोने-चाँदी की बरसात कर दी। लेकिन अंबानी परिवार को कृष्ण भगवान की क्या जरूरत है। उदयपुर के साँवलिया सेठ और नाथद्वारा के श्री जी महाराज के पुजारी तो खुद द्वार पर खड़े होकर मोटे  चढ़ावे के लालच में अंबानी परिवार की बाट जोहते रहते हैं। 

बोला- चलो, ढँके भरम रह गए। न उन्होंने बुलाया और न तू गया। वरना बुला भी लेते तो क्या पहनकर जाता?

हमने कहा- क्यों? एक कुर्ता पायजामा तो सितंबर में आने वाले हिन्दी दिवस के लिए प्रेस करवाकर रखा हुआ है। एक और प्रेस करवा लेते। और फिर वहाँ तो हजारों लोग आ रहे हैं। कौन हमारे ही कपड़े देखने के लिए बैठा है। और फिर आजकल तो फटी जींस का फैशन है। जिसकी जितनी अजीब धज होती है उसकी ओर उतना ही अधिक ध्यान जाता है। देखा नहीं, फिल्मी हीरोइनें कैसे कैसे कपड़े पहनकर जाती हैं?

बोला- उनके पास दिखाने लायक, शोभा बढ़ाने लायक आकर्षक देह यष्टि होती है। उनके यहाँ तो सेवक लोग भी 15-15 लाख का सूट, कई लाख का चश्मा पहनकर जाते हैं। तेरे पास एक ढंग की चप्पल जोड़ी तो नहीं है । हो सकता है तुझे इस ड्रेस में एंटीलिया से दस किलोमीटर दूर ही रोक दिया जाए। तुझे पता होना चाहिए इस शादी की पहली प्री वेडिंग लिए जामनगर के एयर फोर्स हवाई अड्डे की तरह मुंबई में विशेष यातायात व्यवस्था की गई है। कई सड़कें बंद की गई हैं जैसे स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में की जाती हैं। और चप्पलें? 

हमने अपनी पिछले साल खरीदी गई बाटा की चप्पलें दिखाईं तो तोताराम ने अपना फोन निकालकर एक फ़ोटो दिखाया जिसमें एक सज्जन के फ़ोटो में उसकी घुटनों तक दो टाँगें और चप्पलें दिखाई दे रहीं थीं। 

हमने कहा- इसका हम क्या करें। यदि ये ईश्वर के द्वारा किसी विशेष प्रयोजन से भेजे व्यक्ति की होती तो हम बिरला जी, धनखड़ जी, वेंकैया जी और चंपत राय की तरह संस्कारों के तहत झुक भी जाते। 

बोला- ये चप्पलें हैं उद्धव ठाकरे जी के सुपुत्र तेजस ठाकरे की। एमरेस के लक्जरी ब्रांड की हैं। और रुपए में इनकी कीमत है 68465 रुपए। तेरी दो महीने की पेंशन।

हमने कहा- छोड़, जब जाना ही नहीं तो फिर यह रामायण किस बात की? यह कौनसा अयोध्या में राम मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा के बावजूद एक दलित अवधेश से भाजपा के हारने जैसा मुद्दा है। हम भी तेरे साथ जयपुर रोड तक टहल आते हैं। नहीं सही सोनिया जी का समोसा, हम तुझे वहाँ इंडस्ट्रियल एरिया के कोने पर शनि मंदिर के पास वाली दुकान से चाय के साथ समोसा तो खिला ही सकते हैं। 

सुना है ‘चार सौ पार’ के स्थान पर मुश्किल से ‘दो सौ पार’ होने से सबक लेकर मोदी जी कोरोना काल में हजम किए गए 18 महीने के डी ए के एरियर की उलटी करने वाले हैं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)