दक्षिण ने एनडीए, बीजेपी की रखी लाज

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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लोकसभा चुनावों से पूर्व बीजेपी और अपने नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक मोर्चे के रणनीतिकारों के साथ मिलकर चुनावों में मोर्चे की स्थिति पर लम्बा   विचार विमर्श किया था। यह बात सामने आई कि इस बार मोर्चे और विशेषकर इसके सबसे बड़े घटक बीजेपी  को उत्तर भारत में 2019 के लोकसभा चुनावों के मुकाबले कम सीटें आ सकती हैं। दो राज्य- उत्तर प्रदेश और राजस्थान में काफी नुकसान हो सकता है। पार्टी इन दोनों राज्यों में अपने वर्तमान वर्चस्व   बचा नहीं पायेगी। उसी समय रणनीति बनाई गई  कि इस बार दक्षिणी राज्यों में अधिक से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य रखा जाये। इसलिए प्रधान मंत्री   नरेंद्र मोदी, जो आम तौर पर पूर्व के राज्यों से अपना चुनाव अभियान शुरू करते आ रहे हैं, ने इस बार दक्षिण से अपने चुनाव अभियान का आगाज़ करने का फैसला किया। इसी रणनीति के अन्तर्गत उन्होंने कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश तथा केरल में चुनावी सभाओं को संबोधित किया। 

लोकसभा चुनावों में वोटों की गिनती के बाद यह बात साफ़ हो गई कि बीजेपी का अनुमान सही था कि उत्तर भारत में  बीजेपी नीत राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक  मोर्चे के सीटें कम हुई और दक्षिण में इसकी सीटों में इजाफा हुआ। यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर इस गठबंधन की सीटों में दक्षिण से बढ़त नहीं मिलती तो इस बार केंद्र इस गठबंधन शायद ही बहुमत मिलता और यह लगातार तीसरी बार सत्ता में नहीं आ पाती। 

पिछले लोकसभा चुनावों में बीजेपी को दक्षिण के राज्यों की कुल 164 सीटों में से केवल 29 सीटें ही मिली थी। इनमें से अकेले कर्नाटक, जहाँ उस समय बीजेपी की सरकार थी, में कुल 28 सीटों में से 25 सीटें मिली थी। बाकी चार सीटें तेलंगाना से मिली थी। तमिलनाडु और केरल में यह अपना खाता ही नहीं खोल पाई थी। इस बार इन राज्यों से इसकी सीटों में 3 सीटों का इजाफा हुआ है। बीजेपी ने इस बार कर्नाटक में 19 सीटें जीती, तेलगाना में 8 और आंध्र प्रदेश में इसकी जीत का आंकड़ा 4 है। 

दक्षिण के केरल राज्य में बीजेपी ने पहली बार अपना खाता खोला और इसे एक सीट मिली। एक अन्य सीट पर इसका उम्मीदवार बहुत कम मतों से हारा। अब देखते है राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चे को मिली सीटों पर। पिछले लोकसभा चुनावों में बीजेपी को छोड़ कर इसके किसी भी घटक को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। इस बार इसमें भारी इजाफा हुआ है इस बार मोर्चे को कुल 51 सीटें मिली जो पिछली 29 सीटों से 22 सीटें अधिक है। अगर इसमें ओडिशा में मिली 21 सीटों को जोड़ लिया जाये तो यह आंकड़ा 70 को पार कर जाता है। उत्तर भारत में मोर्चे को हुए नुकसान देखा जाये तो यह लगभग 60 सीटों का है। चुनावों से जुड़े लोगों का कहना है कि अगर उत्तर भारत के राज्यों से मोर्चे को पहले की तरह सीटें मिल जाती तो बीजेपी की कुल सीटें 400 के आस हो जाती। 

बताया जाता है कि बीजेपी के मूल संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सलाह पर ही इसके नेताओं ने दक्षिण के राज्यों पर अधिक जोर लगाने की सलाह दी  थी। दक्षिण के लभभग सभी राज्यों में संघ का काम काफी विस्तृत है लेकिन उत्तर भारत की तरह दक्षिण के राज्यों बीजेपी को इसका लाभ अपेक्षा के अनुरूप  नहीं मिलता। अब दोनों के बीच समन्वय बढ़ाने की नीति अपनाई जा रही है। 

बीजेपी नेताओं ने इस बार तमिलनाडु में अपनी पुरानी अन्नाद्रमुक के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ा। इसका दोनों दलों का भारी नुकसान हुआ। राज्य  बीजेपी के अध्यक्ष और पूर्व ईपीएस अधिकारी अनामलाई का कहना था कि इससे बीजेपी को कोई विशेष लाभ नहीं मिलाता जबकि अन्नाद्रमुक को ही फायदा होता रहा है। उनकी सलाह पर राज्य में बीजेपी को छोटे और स्थानीय दलों को अपने साथ जोड़ा गया। इन दलों का अपने अपने जातीय समुदायों काफी प्रभाव माना जाता है। इस नई रणनीति का न तो बीजेपी को कोई  लाभ मिला और न ही अन्नाद्रमुक को कभी राज्य सत्तारूढ़ दल रही अन्नाद्रमुक इस बार राज्य में अपना खाता भी नहीं खोल पाई। बीजेपी का आंकलन था कि छोटे दलों के साथ मिलकर पार्टी 5-6 सीटें आसानी से जीत सकती हैं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।   उधर सत्तारूढ़ दल द्रमुक ने कांग्रेस सहित कईं अन्य दलों के साथ मिलकर राज्य की सभी 39 सीटों पर कब्ज़ा कर लिया। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)