कर्नाटक का निगम घोटाला और मंत्री का इस्तीफ़ा

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

www.daylife.page 

लगभग एक वर्ष पूर्व राज्य में हुए विधानसभा चुनावों में तब बीजेपी की सरकार में मंत्री ईशवरप्पा पर ठेकेदारों ने यह आरोप लगाया था कि वे उनके बिल पास करने के लिए 40 प्रतिशत रिश्वत माँगते है। चुनावों में कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाया था। उन्होंने बीजेपी सरकार को 40 प्रतिशत वाली सरकार बताया था। तब  एक ठेकेदार ने आत्महत्या की थी तथा आत्महत्या के कारण में मंत्री दवारा 40 प्रतिशत माँगा जाना बताया था। ऐसा माना जाता है कि बीजेपी जिन कारणों से चुनाव हारी उसमें यह आरोप एक बड़ा मुद्दा था। 

अब लगभग 200 करोड़ के एक घोटाले में राज्य की कांग्रेस सरकार में अनुसूचित जनजाति कल्याण, युवा शश्क्तिकरण और खेल विभाग के मंत्री बी नागेन्द्र  को इस्तीफ़ा देना पड़ा। मजे के बात यह है कि उन्होंने इस घोटाले को खुद ही उजागर किया ठाट लेकिन यह नहीं  कहा कि वे भी इसमें कथित रूप से लिप्त  थे। उन्होंने माना कि इस घोटाले का 28 करोड़ वापिस वसूल कर लिया गया है। यह सारा घोटाला सार्वजानिक क्षेत्र के यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया की बंगलुरु स्थित एक शाखा में हुआ था जिसमे बाल्मीकि अनुसूचित जनजाति विकास निगम का खाता था। चूँकि मामला सार्वजानिक बैंक का था और इसमें 3 करोड़ रूपये से अधिक की गड़बड़ी हुई थी इसलिए अपने नियमो के अनुसार सीबीआई ने मामले को जाँच के लिए अपने हाथ में ले लिया। इसके चलते कांग्रेस पार्टी की आलाकमान ने मुख्यमंत्री सिद्धरामिया को निदेश दिया कि वे मंत्री को तुरंत इस्तीफ़ा देने के लिए कहें। 

यह सारा घोटाला भी निगम के एक अधिकारी चंद्रशेखर दवारा आत्महत्या किये जाने के बाद ही  सामने आया। इस अधिकारी, जो लेखा विभाग में अधिक्षक पद पर था, पिछले महीने के आखरी हफ्ते  शिवमोगा  में अपने निवास पर आत्महत्या कर ली थी, आत्महत्या से पहले उन्होंने एक पत्र लिखा था जिसमे उन्होंने आरोप लगाया था कि विभाग के मंत्री सहित कुछ बड़े अधिकारियों उन पर दवाब बना रहे थे कि निगम के बैंक खाते से पैसे को इधर उधर करने  की जिम्मेदारी  वे अपने पर ले लें जबकि पैसों का हस्तांतरण उन्होंने मंत्री और बड़े अधिकारियों के मौखिक आदेशों के आधार किया था। 

पुलिस में लिखवाई प्राथमिकी में यह कहा  गया  है। निगम के खातों से 194 करोड़ रूपये 14 निजी खातो और एक चिटफण्ड कंपनी के खाते में  हस्तांतरित किया गया था। सरकार ने मामले की जाँच के एक-एक विशेष पुलिस टीम का गठन  कर दिया। उधर विभाग के मंत्री नागेन्द्र ने सफाई दी कि उनका इस हस्तातरण से उनका कोई लेना देना नहीं है। निगम के कुछ अधिकारियों ने बैंक की शाखा के साथ मिली भगत तथा फर्जी दस्तावेजों और जाली हस्ताक्षर कर यह राशि निगम के खातों से निजी खतों में हस्तांतरित करदी थी। प्राथमिकी में इन अधिकारियों में निगम के प्रबंध निदेशक जे जी पद्मनाभ और लेखा अधिकारी परशुराम का नाम लिखा गया था। यूनियन बैंक की एम जी शाखा के मुख्य प्रबंधक सुचिमिता रायुल के नाम का उल्लेख है। सरकार ने अपनी ओर से दोनों अधिकारियों को तुरंत निलंबित कर दिया। बैंक ने भी अपने अधिकारी के खिलाफ इसी  तरह की कार्रवाई की।  

राज्य बीजेपी के नेताओं ने इस घोटाले को एक बड़ा मुद्दा बना लिया। एक प्रतिनिधि मंडल राज्यपाल को मिला और उन्होंने एक ज्ञापन देकर घोटाले  की  जाँच सीबीआई के देने की माँग की। इस दवाब के चलते पुलिस ने निगम के दोनों अधिकरियों और बैंक के प्रबंधक को गिरफ्तार कर लिया।  राज्य  सरकार नहीं चाहती थी कि इस मामले की जाँच  सी बी आई करे। केंद्र सरकार को लिखा कि चूँकि सारे मामले की जाँच उच्च स्तरीय विशेष जाँच दल कर रहा है इसलिए मामला  सी बी आई को देने का कोई औचित्य नहीं  है।  

लेकिन बैंक के मुख्यालय ने बिना किसी विलम्ब के सीबीआई का मामला सौंप दिया। नियमों के अंतर्गत इस बैंको में होने वाले इस तरह के घोटालों की जाँच करने का अधिकार है। इस तरह के मामलों में राज्य सरकार के अनुमति अथवा सहमति लेना जरूर नहीं है। 

जब मामला अख़बारों की सुर्ख़ियों में आ गया तथा एक के बाद एक जानकारी सामने आई तो यह लगभग साफ़ हो गया निगम के खातों से इतनी बड़ी राशि का हस्तांतरण अधिकारी अपने मर्जी से नहीं कर सकते। विशेष पुलिस बल को इन अधिकरियों ने बताया कि उन्होंने धनराशि का हस्तांतरण “ऊपर से मिले निदेशों” के बाद ही किया था। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)