लेखक : नवीन जैन
वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार, इंदौर (एमपी)
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इधर के कुछ दशकों की भारतीय राजनीति में उन्मादी, ज़हर बुझी और अमर्यादित जुमले बाजी का प्रवर्तक स्व. कांशीराम को माना जाता है। उन्हीं ने दलितों, वंचितों और समाज की मुख्यधारा से सदियों पहले निकाल दिए गए लोगों की आवाज बनने के लिए बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) का गठन किया, जिसके संस्थापक अध्यक्ष भी वही रहे। उन्हीं की पहली शिष्या थी मायावती ,जो उत्तर प्रदेश की एक से ज्यादा बार मुख्यमंत्री इसलिए भी बनी कि उन्होंने राजनीति में बदज़बानी का ऐसा तड़का लगाया कि लोग लंबे समय तक उनके नाम से भी खौफ खाते रहे। इसी आतंक का फायदा उठाकर कभी चवन्नी भर सीटों के बल पर उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के ख्वाब तक सजा लिए थे, मगर भाजपा, कांग्रेस और दूसरे अन्य दलों के वरिष्ठ नेता तो काफी पढ़े-लिखे, और जिम्मेदार पदों पर बैठे हैं। उन्हें तो सोचना चाहिए कि उनमें चाहे जितना गुस्सा भरा हो ,मगर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की सालों से अध्यक्ष रही सोनिया गांधी के बारे में ये तो न कहें कि डर के मारे लोकसभा का चुनाव न लड़ते हुए राजस्थान के कोटे से राज्यसभा में आ गई। अरे, भई जरा तो दया, और करुणा के भाव से काम लो, जो भारत जैसे महान देश की पुरातन और अनोखी पहचान है।
भाजपा के नेता डॉक्टर सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कुछ साल पहले कह दिया था, कि सोनिया गांधी कैंसर से पीड़ित हैं तो उनकी बात को सस्ते में न लेते हुए सोनिया गांधी के प्रति अतिरिक्त संवेदना भरा व्यवहार किया जाना चाहिए। याद रखा जाना चाहिए कि इसी भाजपा के शिल्पकारों में प्रमुख रूप से शामिल और पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी का किडनी की गंभीर बीमारी में सरकारी खर्च पर तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने अमेरिका भेज कर इलाज करवाया था,तब अटल जी विपक्ष में था।
अब ये अलग से बताने की जरूरत है क्या कि राजीव गांधी किसके पति थे? इतना ही नहीं। जब अटल जी 1952 में उत्तर प्रदेश के बहरामपुर से अपना पहला लोकसभा चुनाव हार गए थे, तो उन्हें संसद में राज्यसभा के मार्फत ही भेजा गया था। अब चूंकि मुस्लिम विरोध के तमाम जुमले घिसे-पिटे हो चुके हैं, तो अप्रत्यक्ष रूप से मुस्लिम समुदाय को यह कहकर नीचा दिखाने की कोशिश की जा रही है, कि जो देश (स्पष्ट रूप से पाकिस्तान) आतंकियों को भेजता था, वो अब आटे के लिए तरस रहा है। एक अच्छे आदमी कि निशानी ये होती है कि वो दुश्मन की भूख का मजाक नहीं बनाता। और आंकड़ों की माने तो बनिस्बत भारत के पाकिस्तान में भुखमरी कम है। और वहां के लोग भारतीयों की अपेक्षा ज़्यादा खुश रहते हैं।
उधर राहुल गांधी, प्रियंका गांधी (वाड्रा) और तेजस्वी यादव को भी ये बोलने से पहले सौ बार सोच लेना चाहिए कि यदि भाजपा फिर से सत्ता में आ गई तो वर्तमान संविधान समाप्त कर देगी, और लोकसभा का ये आखिरी चुनाव होगा। यदि भूल कर भी ऐसा किया गया तो भाजपा में ही इस तरह के निर्णयों के खिलाफ खुलकर विरोध में आने वाले नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह जैसे लोकतंत्र में निष्ठावान लोग बैठे हैं।फिर सुप्रीम कोर्ट के अलावा अन्य सामाजिक या मानव अधिकारों के संरक्षक विभिन्न संगठन भी तो शामिल हैं।हमें अब भी मानना पड़ेगा कि हमारी कुछ खास नीतियां विदेशी महाशक्तियों की इच्छा को देख कर ही बनती है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)