सांभर जिले का दंभ भरने वाले नेता तहसील का नाम तक सही नहीं करा सके

सांभर तहसील के नाम शुद्धिकरण का मामला पूर्व सीएम गहलोत ने ठंडे बस्ते में डाला

शैलेश माथुर की रिपोर्ट 

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सांभरझील। राजस्व रिकॉर्ड में तहसील फुलेरा मुख्यालय सांभरलेक के स्थान पर तहसील सांभर शुद्ध कराने के लिए वर्ष 2012 से लगातार प्रयास कर रहे राजस्व विभाग के पूर्व लिपिक शैलेश माथुर के अंतिम प्रयासों पर पानी फेरते हुए पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने इस पत्रावली को ठंडा बस्ते में डाल कर तमाम प्रशासनिक बड़े अफसरों की रिपोर्ट को भी पूरी तरह से नजर अदाज कर विराम लगा दिया, जबकि इस मामले में शासन सचिवालय की रिपोर्ट भी पूरी तरह से इसके पक्ष में रही है। 

तहसीलदार, उपखंड अधिकारी जिला कलेक्टर वह राजस्व मंडल भी यह बात लिखित में सरकार को बता चुके हैं कि वर्ष 1952 से तहसील कार्यालय, सांभर मुख्यालय पर ही संचालित हो रहा है तथा इस बात का कभी कोई दस्तावेजी साक्ष्य व ठोस प्रमाण तमाम जांच के बाद प्राप्त नहीं हुआ कि तहसील कार्यालय कभी भी फुलेरा संचालित हुआ हो, इस बात का खुलासा खुद सरकार ने भी आरटीआई में मांगी गई  सूचना के आधार पर उपलब्ध भी करवाई है। 

राजस्व विभाग के तमाम अधिकारियों ने सरकार को यह भी लिखा कि तहसील दूदू मुख्यालय मोजमाबाद की भी यही टेक्निकल प्रॉब्लम थी जिसे सरकार ने 2012 से पहले ही राज्यपाल की आज्ञा से गजट नोटिफिकेशन जारी कर इस भूल को सुधार चुकी है, इसको भी आधार बनाकर सिफारिश की गई लेकिन बताया जा रहा है कि पूर्व सीएम गहलोत की अंदरूनी राजनीतिक नाराजगी इस कदर रही की उन्होंने सांभर के इस महत्वपूर्ण मसले को ही हल करने के बजाय इस पर पूर्ण विराम लगा दिया। 

आश्चर्य तो इस बात का है कि वर्ष 1952 से ही सांभर को जिले का दर्जा दिलाने का दंभ भरने वाले नेताओं ने सात दशक में कभी भी इस समस्या को न तो उठाया और नहीं सरकार के समक्ष पुरजोर तरीके से इसकी पैरवी कर सके, लिहाजा यह मामला आज भी लंबित है। पूर्व लिपिक माथुर का कहना है कि अब इस मामले को राजस्थान उच्च न्यायलय में जनहित याचिका दायर कर ले जाएंगे, क्योंकि यहां के नेताओं के बस की बात नहीं है कि वह इसको हल करवा सके।