सौर ऊर्जा से ही संभव है स्वच्छ पर्यावरण : सुरेश भाई
लेखक : सुरेश भाई

लेखक जाने माने पर्यावरणविद एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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विश्व में जलवायु परिवर्तन से बढ़ रही गर्मी और आर्थिक गतिविधियों मे आई तेजी के कारण ऊर्जा की खपत दिनों दिन बढ़ती जा रही है। जिसके लिए दुनियां के लोग  जीवाश्म ईंधन (पेट्रोल, डीजल) का 80 फ़ीसदी उपयोग कर रहे है, जो जलवायु संकट पैदा करने के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार है। इसकी खपत कम करने के लिए दुनिया के लोग प्रतिवर्ष जलवायु सम्मेलन में एकत्रित होकर चिंता व्यक्त करते हैं। पिछले दिनों दुबई में हुए 28वें जलवायु सम्मेलन में महसूस किया गया था कि नवीकरणीय ऊर्जा( सौर, पवन, बायोमास, भू- तापीय) के पर्याप्त स्रोत जब तक उपलब्ध नहीं होते हैं तब तक जीवाश्म ईंधन पर बंदिशें लगाना संभव नहीं है। ऊर्जा के इन स्थाई स्रोतों को उपयोग में लाने के लिए इसलिए भी कदम धीमी पड़े हुए हैं कि इससे स्वच्छ ऊर्जा प्राप्त करने के लिए 4.5 अरब डॉलर की आवश्यकता है। जिसको विकसित देश विकासशील देशों को पूरी तरह  देने के लिए राजी नहीं है। भारत में ही जीवाश्म ईंधन से 75.5 प्रतिशत, परमाणु शक्ति से 2.8 प्रतिशत, सौर ऊर्जा से 4.2 प्रतिशत, पवन ऊर्जा से 4.6, प्रतिशत, पन बिजली से 10.7 प्रतिशत,बायोमास 0.5 प्रतिशत ऊर्जा का इस्तेमाल हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी 2070 तक ही शून्य कार्बन उत्सर्जन की लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रतिबद्धता जता रहे है। कोशिश  है कि देश में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में लगातार प्रगति दिखाई दे रही है। जून 2023 के अंत तक के आंकड़े बताते हैं कि भारत एशिया में तीसरे और दुनिया में पांचवें स्थान पर अक्षय ऊर्जा का उत्पादन कर रहा है।

अतः वर्तमान में 70,096 मेगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है। इसमें सबसे अधिक राजस्थान में 17839, गुजरात में 10133, कर्नाटक में 9050, तमिलनाडु में 6892, महाराष्ट्र में 4870, तेलंगाना में 4695, आंध्र प्रदेश में 4552, मध्यप्रदेश में 3021, उत्तर प्रदेश में 2526 मेगावाट के अलावा पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तराखंड आदि राज्यों में भी सौर ऊर्जा के क्षेत्र में वृद्धि करने का प्रयास किया जा रहा है।देश में 2030 तक 280 गीगावॉट सौर ऊर्जा क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा गया  है।वित्तीय वर्ष 2024 के बजट में सौर ऊर्जा क्षेत्र को आईबीईएफ द्वारा पांचवें सबसे आकर्षक वैश्विक सौर ऊर्जा के रूप में मान्यता भी दी गई है। हिमालय क्षेत्र में भी सौर ऊर्जा का विकास ऊर्जा प्रदेश के सपने को साकार कर सकता है।

राजस्थान में पहला सौर ऊर्जा संयंत्र "गोदावरी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड" द्वारा विकसित किया गया है और 50 मेगावाट सौर तापीय विद्युत संयंत्र जैसलमेर के  नौख गांव में स्थापित भी किया गया था। आगे भी राजस्थान में 2025 तक 30 हजार मेगावाट सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित करने की योजना है। इसी तरह गुजरात ने भी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत की क्षमता को 68 हजार मेगावाट तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। केंद्र शासित राज्य दीव 100 प्रतिशत सौर ऊर्जा चलाने वाला पहला केंद्र शासित राज्य बन गया है।

गौरतलब है कि आजकल विभिन्न मीडिया के माध्यम से केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा सौर संयंत्र लगाने के लिए मदद देने की सूचनाएं आ रही है। इसके लिए बैंकों से कहा जा रहा है कि व्यक्ति गत स्तर पर यदि कोई 200 किलोवाट सोलर संयंत्र लगाना चाहता है तो उन्हें संयंत्र लगाने के लिए 50 प्रतिशत से अधिक सब्सिडी पर कर्ज मिल सकता है। इस तरह के सोलर संयंत्र लगाने पर एक करोड़ से अधिक खर्च आता है। यदि संयंत्र लग गया तो प्रतिवर्ष एक लाख रुपए की आय मिल सकती है। और बिजली का बिल भी शून्य हो जाएगा।

यदि कोई अपने घर में सोलर सिस्टम लगाना चाह रहे हैं तो "ओजस" सबसे तेज और विश्वसनीय विकल्प के रूप में बताया जा रहा है। इनके द्वारा स्थापित किए जा रहे संयंत्र से 25 वर्षों तक मुफ्त बिजली मिल सकती है। इसके अलावा "आर्नेट सोलर" का अनुभव भी पिछले 8 वर्षों का है, जो सोलर पैनल को घर की छत के रूप में बना सकते हैं।इससे दोहरा लाभ है। जिससे छत तो मिलेगी साथ ही बिजली भी मुफ्त मिल सकती है। यदि कोई नया घर बना रहा है तो वह अपनी पूरी छत को भी सोलर पैनल की बना सकता है।

पहाड़ी इलाकों में जहां लोगों ने जंगली जानवरों के आतंक के कारण अपनी खेती- बाड़ी बंजर छोड़ रखी है, यदि उन स्थानों पर सोलर पैनल लगाये जाते तो वहां के गरीब, सीमांत एवं छोटे किसानों के लिए यह रोजगार का सबसे बड़ा साधन बन सकता है। लेकिन इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता है कि बैंकों के भरोसे इच्छुक लोगों तक सौर संयंत्र स्थापित करना मुश्किल होगा। अच्छा हो कि सरकार अपनी योजनाओं में उसे स्थान दें।क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत, ग्राम पंचायत के माध्यम से भी सौर ऊर्जा का विकास किया जा सकता है। सोशल मीडिया पर कंपनियां सोलर पैनल लगाने के लिए आश्वासन दे रही है।जिनसे ऑनलाइन संपर्क करके मदद ली जा सकती है।

राजस्थान समेत अन्य राज्यों में जहां सूर्य की किरणें अथाह गर्मी पैदा कर रही है। वहां पर स्थापित सोलर संयंत्र लगने से पर्याप्त ऊर्जा पैदा हो रही हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में भी ऐसे बहुत इलाके हैं जहां हर समय धूप खिली रहती है और वहां की आबादी इसलिए निर्जन हो रही है कि गांव में पर्याप्त बिजली,पानी,  शिक्षा, स्वास्थ्य की सुविधा नहीं है। ये सारी सुविधाएं विद्युत आपूर्ति के बिना अधूरी रह जाती है। इन स्थानों में सुविधाओं के लिहाज से भी सौर ऊर्जा लोगों के जीवन में विकास की नई रोशनी ला सकती है। 

दुनिया में स्वच्छ ऊर्जा के रूप में हाइड्रो पावर को अपेक्षित पहचान नहीं मिल पा रही है क्योंकि नदियों में लगातार जल की मात्रा घट रही है। बरसात में बाढ़ से नदियों के तट बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। नदियों के बहाव को रोकने वाली जल विद्युत परियोजनाएं भी हर साल बड़े पैमाने पर क्षतिग्रस्त हो रही है। बाढ़ में बहने के बाद उसे दोबारा पूर्व स्थिति में वापस नहीं लाया जा सकता है। इसलिए सबसे बड़ा ऊर्जा का विकल्प सौर ऊर्जा है।यह इसलिए भी देखा जा रहा है कि सूर्य की किरण हर जगह उपलब्ध है। अनेक स्थान ऐसे हैं जहां सुबह से अंधेरा ढलने तक सूर्य का प्रकाश धरती को रोशन करती है। अतः सूर्य की रोशनी को सौर ऊर्जा के रूप में उपयोग करना समय की मांग है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)